National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

पराली पर साजिश की आशंका

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1998 में  दिल्ली में ड्रॉप्सी से हुई तथाकथित मौतों का सहारा लेकर बाजारी ताकतों ने षडयंत्र पूर्वक सरसों के तेल को भारतीय जनमानस में बदनाम कर भयग्रस्त कर दिया गया, बताया गया कि आर्जीमोन के बीजों के मिलने से सरसों का तेल घातक हो गया है। कंपनियों ने डवल-ट्रिपल रिफाइंड तेल के दलदल में लोगो को फसा दिया। खुले रूप से विक रहे शुद्ध सरसो का तेल  प्रतिबंधित होने से पैक्ड तेल की मांग अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई। भारतीय बाजार में विदेशी कंपनियों के ब्रांड धड़ाधड़ बिकने लगे। पैक्ड तेल के फायदों को गिनाते हुए बड़े बड़े लेख प्रिंट मीडिया में छपे। लगभग 20 वर्ष बाद अब समझ में आ रहा है कि हृदय बीमारियों के भारत में वढऩे का एक मूल कारण डवल-ट्रिपल रिफाइंड तेल है। बैज्ञानिक अनुसंधानों ने भी सिद्ध कर दिया है कि बिना डवल-ट्रिपल रिफाइंड किये गए तेल, घी स्वास्थ्य को हानिकारक न होकर लाभ दायक है। भारत में अब लोग कच्ची घानी का तेल खाना चाहते है। ग्रामीण अंचल में देशी कोल्हू का प्रचलन लगभग खत्म सा हो गया है। फिर वही,…घर की बोरी में सरसों – तेल बाजार से। यह सब नॉटकी बजारू शक्तिओं द्वारा भारत के ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चौपट कर डॉलर कमाने के लिए की गई।

अव देश मे Air Quality Inde& को लेकर भी कुछ ऐसा ही एक नया बखेड़ा बजारू शक्तिओं द्वारा किया जा रहा है और किसानों को बादनाम किया जा रहा है, कहीं नहीं सुनाई दे रहा है कि मूल प्रदूषण  ए.सी., कारखानों का धुआं, वाहनों का धुआं, कचरे का प्रबंधन न होना है। पूरे देश में पराली….पराली…पराली। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी पराली मामले में किसानों को राहत देते हुए पराली के उचित प्रबंधन के लिए योजना बनाये जाने के निर्देश दिए है। देश में Air Quality Inde& के नाम पर छोटे-छोटे शहरों को भी पूरी बजारू रणनीति के तहत बदनाम किया जा रहा है। देश में बन रहे भय के बातावरण से समाज को सकारात्मक सीख लेने की जरूरत है, घर घर पौधे लगाने व पौधे बचाने का प्रयास करना आवश्यक है। शहरों में बढ़ते स्टोन कल्चर को रोकना चाहिए, हरियाली को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। देश मे बढते प्रदूषण को रोकने के लिए गंभीर धरातलीय प्रयास हम सबको करना चाहिए। सावधानी हमें यह भी बरतना होगी कि  सरसों के तेल को बदनाम कर हमें ड्रॉप्सी की तरह भय दिखाकर, विदेशी कंपनियाँ घर-घर एयर फिल्टर, मास्क बेचकर डॉलर कमाते हुए रफूचक्कर न हो जाए। अन्यथा वही फिर… अव पछताए होत का, चिडिय़ाँ चुग गई खेत। 

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