राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

दुनिया की पहली अत्यधिक गर्मी सहने वाली अरहर की किस्म विकसित – अब 45 डिग्री तापमान में भी होगी अच्छी पैदावार

ICRISAT द्वारा विकसित नई किस्म ICPV 25444 गर्मियों में 125 दिनों में होती है तैयार, अब अरहर की खेती सिर्फ खरीफ तक सीमित नहीं

09 जून 2025, हैदराबाद: दुनिया की पहली अत्यधिक गर्मी सहने वाली अरहर की किस्म विकसित – अब 45 डिग्री तापमान में भी होगी अच्छी पैदावार –  भारत के किसानों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। अंतर्राष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) के वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली गर्मी-सहिष्णु अरहर की किस्म ICPV 25444 विकसित की है, जो तेज गर्मी—यहां तक कि 45 डिग्री सेल्सियस—में भी बेहतर फल देती है और सिर्फ 125 दिनों में पक जाती है।

यह नई किस्म कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना में सफलतापूर्वक परीक्षणों में प्रति हेक्टेयर 2 टन उपज देने में सक्षम रही है। अब किसान अरहर को केवल खरीफ नहीं, बल्कि गर्मियों में भी उगा सकते हैं—जहां पहले तापमान की वजह से यह संभव नहीं था।

अब अरहर बनेगी सभी मौसमों की फसल

अब तक अरहर की खेती सिर्फ एक निश्चित मौसम तक सीमित थी क्योंकि यह दिन की लंबाई और तापमान के प्रति संवेदनशील थी। लेकिन ICPV 25444 ने इस धारणा को तोड़ दिया है। यह किस्म फोटो और थर्मो-संवेदनशील नहीं है, यानी यह दिन की लंबाई और तापमान से प्रभावित नहीं होती।

“गर्मी में अरहर की खेती की यह उपलब्धि यह दर्शाती है कि जब विज्ञान उद्देश्यपूर्ण तरीके से काम करे, तो किसानों की मुश्किलें आसान हो सकती हैं,” ICRISAT के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा। “यह किस्म देश में दालों की कमी को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकती है।”

स्पीड ब्रीडिंग से 15 साल का काम 5 साल में

ICRISAT की स्पीड ब्रीडिंग तकनीक की मदद से इस किस्म को तैयार किया गया है, जो कि 2024 में विकसित की गई थी। इस तकनीक से वैज्ञानिक साल में चार बार अरहर की फसल तैयार कर सके, जिससे किसी भी किस्म को विकसित करने का समय 15 साल से घटाकर सिर्फ 5 साल कर दिया गया।

“स्पीड ब्रीडिंग की वजह से हमने एक दशक का कार्यकाल कुछ ही वर्षों में पूरा किया,” कहा डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड, डिप्टी डायरेक्टर जनरल (अनुसंधान एवं नवाचार), ICRISAT।

डॉ. प्रकाश गंगाशेट्टी और उनकी टीम ने 4 इंच के गमलों में करीब 18,000 पौधे प्रति सीजन उगाए, जिससे सीमित जगह में ज्यादा बीज उत्पादन संभव हुआ। साथ ही सीड-चिपिंग जीनोमिक तकनीक से गुणवत्तापूर्ण बीजों का चयन भी तेज हुआ।

भारत की दालों की कमी होगी पूरी

भारत में हर साल करीब 3.5 मिलियन टन अरहर का उत्पादन होता है, जबकि मांग 5 मिलियन टन से अधिक है। इस कमी को पूरा करने के लिए देश को हर साल लगभग 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर की दालें आयात करनी पड़ती हैं।

ICPV 25444 के आने से दोहरी रणनीति से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है:

  • खरीफ में ज्यादा उपज देने वाली किस्मों से उत्पादन में वृद्धि
  • रबी और गर्मियों में सिंचाई योग्य खेतों में विस्तार, जैसे कि धान के कटावाले खेत (rice fallows)

पिछड़े सिंचाई क्षेत्रों (tail-end command areas) जैसे स्थानों में, जहां आमतौर पर धान-धान या धान-मक्का जैसी फसलें ली जाती हैं, और दूसरी फसल में नमी की कमी होती है, वहां अरहर की इस किस्म से ₹20,000 प्रति हेक्टेयर तक का अतिरिक्त लाभ हो सकता है।

कर्नाटक में किसानों की राय

बागलकोट, कर्नाटक में हुए फील्ड ट्रायल्स में किसानों ने ICPV 25444 को गर्मियों में लगाया और इसे लेकर उत्साहजनक परिणाम मिले।

किसान हनुमंता मिरजी और बसवराज घंटी ने गाढ़ी बुआई (high-density planting) अपनाई और फसल की अच्छी बढ़वार देखी।

“यह किस्म गर्मी में अरहर की खेती के लिए वरदान है। चार महीने में फसल तैयार हो गई, और किसी प्रकार की बीमारी या कीट नहीं दिखे। हम अगली गर्मियों में ज्यादा उत्पादन करेंगे,” कहा किसान गुरुराज कुलकर्णी ने।

“बागलकोट में खरीफ में ही अरहर होती थी। लेकिन अब यह किस्म गर्मियों में भी सफल हो रही है,” बताया डॉ. विजयेंद्र संगम, प्रमुख, वैरायटल रिसर्च एवं विकास केंद्र, कर्नाटक राज्य बीज निगम, धारवाड़।

भारत से वैश्विक स्तर तक विस्तार

ICRISAT अब 13,000 अरहर की किस्मों की जीन बैंक से वैश्विक विविधता पैनल तैयार कर रहा है। इसका उद्देश्य है कि भारत में बनी यह तकनीक अब एशिया, अफ्रीका, ब्राज़ील, इक्वाडोर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी किसानों के लिए उपयोगी साबित हो।

“हम स्पीड ब्रीडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से जलवायु-लचीली अरहर की नई पीढ़ी तैयार कर रहे हैं,” कहा डॉ. सीन मेयस, ग्लोबल रिसर्च प्रोग्राम डायरेक्टर, एक्सेलरेटेड क्रॉप इम्प्रूवमेंट, ICRISAT।

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