पराली की समस्या: सरकारों और वैज्ञानिकों के लिए चुनौती
लेखक: मधुकर पवार
17 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: पराली की समस्या: सरकारों और वैज्ञानिकों के लिए चुनौती – पराली जलाने की समस्या अब राष्ट्रीय आपदा बनते जा रही है। हर साल पराली जलाने से उत्पन्न प्रदूषण की समस्या से रूबरू होना पड़ता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में तो वायु की गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि खुले में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। प्राय: हर साल ही उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ता है लेकिन जैसे ही प्रदूषण का प्रकोप कम होता है, सब ठंडे बस्ते में चला जाता है। फिर अगले साल वही सब कुछ दोहराता है। वायु की गुणवत्ता खराब होने के कारणों में केवल पराली से निकलने वाला धुंआ ही नहीं है बल्कि उद्योगों और बड़ी संख्या में वाहनों के धुंए की भी भागीदारी होती है लेकिन ठीकरा किसानों के सिर पर फोड़ दिया जाता है। फिर भी पराली का निपटान एक बड़ी समस्या बनी हुई है जिसका अभी तक कोई सर्वमान्य समाधान नहीं निकल पाया है।
हाल ही में खबरें प्रकाश में आई थीं कि मध्यप्रदेश पराली जलाने के मामले में पंजाब और हरियाणा को पीछे छोड़ते हुए देश में पहला स्थान पर पहुंच गया है। विगत 15 सितम्बर से 30 नवम्बर के मध्य यानी खरीफ वर्ष 2024 की फसल के बाद मध्यप्रदेश में पराली जलाने के 16,360 मामले दर्ज किए गए हैं जो पिछले वर्ष की तुलना में करीब 30 प्रतिशत अधिक हैं। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से पराली जलाने के लिये कुख्यात पंजाब में 66 प्रतिशत और हरियाणा में 30 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। इससे यह आशा बलवती हो रही है कि किसान उनके ऊपर लग रहे आरोपों से मुक्त होने की राह पर चलने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह नाकाफी है। जरूरत इस बात की होनी चाहिये कि पराली को जलाने पर पूरी तरह रोक लगाई जाये।
दुख की बात है कि पराली जलाने वाले किसानों पर तो प्रकरण दर्ज किए जा रहे हैं लेकिन इसके लिए सरकारें और वैज्ञानिक भी कम जिम्मेदार नहीं है जिनकी ओर कोई भी ऊंगली नहीं उठाता। सच तो यह है कि पराली के निपटान के लिये वैज्ञानिकों को अनुसंधान करने चाहिये थे, लगता है इस दिशा में अभी तक कोई सार्थक पहल नहीं की गई है। कुछ समय पहले पराली का तापीय विद्युत सन्यंत्रों में उपयोग करने के बारे में चर्चा थी लेकिन इस दिशा में शायद कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ है।
पंजाब के किसानों का तर्क है कि वे पराली ना जलाएं तो उसका क्या करें? किसानों के अनुसार जिन्होंने पराली नहीं जलाई थी और उन खेतों में गेहूं बोया था तो उसमें कीड़ा लग गया है। जिन्होंने पराली में आग लगाई थी, उनकी फसलों में कीड़ा नहीं लगा। इस सम्बंध में व्यापक शोध होना चाहिये ताकि यह पता चल सके कि कीड़ा लगने की असल वजह क्या है ? यह बात तो सही है कि खेतों में आग लगाने या पराली जलाने से कीट नष्ट हो जाते हैं जिनमें फसलों के मित्र कीट भी शामिल होते हैं। इसके अलावा पराली जलाने से भूमि के नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश व अन्य सूक्ष्म तत्व भी जलकर नष्ट हो जाते हैं। जमीन में कार्बन भी मिल जाता है जिससे फसल को नुकसान ही होता है। कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम होती है। इसका सीधा दुष्प्रभाव पराली जलाने के बाद उस जमीन में लगाई जाने वाली फसल पर पड़ता है। उत्पादन भी कम होता है जिसका खामियाजा किसानों को ही भुगतना पड़ता है.
सबसे पहले पराली का किसान स्तर पर क्या उपयोग किया जा सकता है, इस विषय पर विचार विमर्श और अनुसंधान करने की जरूरत है। कुछ लोगों का मानना है कि फसल कटाई के बाद बचे हुए अवशेषों / पराली को जलाने के बजाय, उनसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनाई जा सकती है। इनसे वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद बनाकर खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। पराली का उपयोग लुगदी और कागज उद्योगों के लिए कच्चे माल के साथ जैव ईंधन उत्पादन के लिए भी बायोमास के रूप में पराली का उपयोग किया जा सकता है। पराली से खाद और बायोमास भी मनाई जा सकती है। इसके अलावा सीमेंट और ईंटों के उत्पादन के लिए मिश्रण के रूप में भी किया जा सकता है। भारत के अधिकांश किसानों को पराली के उपयोग के बारे में जानकारी नहीं हैं इसलिए वे इसे जलाना सबसे बेहतर विकल्प मानते हैं। पराली जलाने के स्थान पर यदि अन्य विकल्पों में उपयोग किया जाए तो पराली उनके लिये समस्या नहीं अपितु आय का साधन भी सिद्ध हो सकती है।
मीडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हरियाणा सरकार ने पराली के सही इस्तेमाल के लिए योजना शुरू की है। इससे किसान प्रति एकड़ पराली बेचकर 1000 रुपये तक कमाई कर सकते हैं। अंबाला में किसानों ने पराली जलाने के बजाय उसे बेचकर 1 करोड़ 10 लाख रूपये से अधिक की कमाई की है। योजना के तहत कृषि एवं कल्याण विभाग ने किसानों को प्रति एकड़ एक हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी। किसानों ने बेलर से पराली की गांठ बनवाकर खेत से बाहर निकाला. उन्हें प्रति एक एकड़ एक हजार रुपये दिया गया।
पराली के उपयोग के अनेक विकल्प मौजूद होने और संचार के प्रभावी माध्यम होने के बावजूद आज भी पराली / कृषि अवशेष जलाने की घटनाएं कम होने की बजाए बढ़ते ही जा रही है तो इसे सरकारों की विफलता ही माना जाना चाहिए। सरकारी अमले की कोई कमी नहीं है, कमी है तो केवल ईमानदारी से क्रियांवयन करने की। पराली जलाने के लिये किसानों पर प्रकरण दर्ज करने के स्थान पर उन्हें प्रयोग कर बताया जाए कि पराली उनके लिये कितनी फायदेमंद है। जहां पराली जलाने की अधिक घटनाएं हो रही हैं वहां पराली के उपयोग का व्यवहारिक प्रयोग कर बताया जाए कि पराली जलाने से उनका कितना नुकसान हो रहा है। यदि वे पराली को जलाने के बजाए इसका जैविक खाद, पशु आहार, जैव ईंधन, बायोमास, तापीय विद्युत सन्यंत्रों में उपयोग आदि के लिए किया जा सकता है। पराली के उपयोग पर स्टार्टअप शुरू करने में भी सरकारें मदद कर सकती हैं। किसान उत्पादक संघों के लिये भी प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की जा सकती हैं। देश के सभी जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र हैं जिन्हें नोडल कार्यालय घोषित कर पराली को जलाने पर रोक लगाने और पराली के उपयोग को बढ़ावा देने की पहल की जा सकती है।
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