पशुधन क्षेत्र में निजी निवेश को रफ्तार: सरकार ने खोला सब्सिडी और लोन का रास्ता
20 मार्च 2025, नई दिल्ली: पशुधन क्षेत्र में निजी निवेश को रफ्तार: सरकार ने खोला सब्सिडी और लोन का रास्ता – पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) ने पशुधन क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने के लिए अपनी योजनाओं का खाका पेश किया है। विभाग ने 2013 में तैयार की गई राष्ट्रीय पशुधन नीति के तहत कई चुनौतियों पर काम शुरू किया, जिनमें चारे की कमी, कम उत्पादकता, पशु स्वास्थ्य और बाजार से जुड़े ढांचे की कमी शामिल हैं। इस नीति का मकसद पशुधन उत्पादन को बढ़ाना और किसानों की आजीविका को बेहतर करना है।
केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने बुधवार को राज्यसभा में लिखित जवाब में बताया कि राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) 2014-15 से चल रहा है। 2021-22 में इसे फिर से तैयार किया गया, जिसमें तीन उप-मिशन शामिल हैं। पहले उप-मिशन के तहत मुर्गी, भेड़, बकरी और सूअर पालन में नस्ल सुधार के लिए 50% पूंजी सब्सिडी दी जा रही है। वहीं, चारे की समस्या से निपटने के लिए दूसरा उप-मिशन चारा विकास पर काम कर रहा है, जिसमें निजी कंपनियों के साथ साझेदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है। तीसरे उप-मिशन में पशुधन बीमा और नवाचार पर जोर है, जिसे फरवरी 2024 में घोड़ों, ऊंटों और गधों की नस्लों के संरक्षण जैसे क्षेत्रों तक बढ़ाया गया।
प्रो. बघेल ने कहा, “एनएलएम के तहत 2381.12 करोड़ रुपये की 3295 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिसमें 1098.63 करोड़ रुपये की सब्सिडी शामिल है।” इसके अलावा, चारा बीज उत्पादन के लिए सरकारी और भरोसेमंद संस्थानों को 100% वित्तीय मदद दी जा रही है। विभाग ने निजी उद्योगों के साथ मिलकर एवियन इन्फ्लूएंजा से मुक्त पोल्ट्री डिब्बे भी शुरू किए हैं, जो निर्यात में मदद करेंगे।
इसके साथ ही, पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF) के जरिए निजी निवेश को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है। इस योजना में डेयरी, मीट प्रसंस्करण, पशु चारा संयंत्र और नस्ल सुधार जैसे क्षेत्रों में 3% ब्याज सहायता दी जा रही है। अब तक 353 परियोजनाओं में 16582 करोड़ रुपये का निवेश आया है, जिसमें 293 करोड़ रुपये का ब्याज अनुदान शामिल है।
हालांकि, ये योजनाएं कागज पर भले ही ठोस दिखें, लेकिन जमीनी हकीकत में कितना बदलाव आएगा, यह देखना बाकी है। चारे की कमी और पशु स्वास्थ्य जैसी समस्याएं लंबे वक्त से किसानों के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। क्या ये कदम इन मुश्किलों को सचमुच हल कर पाएंगे, या सिर्फ आंकड़ों का खेल बनकर रह जाएंगे, आने वाला वक्त ही बताएगा।
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