राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

महाराष्ट्र चुनाव में सोयाबीन का मुद्दा: किसान राहत की राह देख रहे हैं।

18 नवंबर 2024, नई दिल्ली: महाराष्ट्र चुनाव में सोयाबीन का मुद्दा: किसान राहत की राह देख रहे हैं। – महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के प्रचार में इस बार सोयाबीन किसानों का संकट मुख्य मुद्दा बन गया है। राज्य के विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे प्रमुख सोयाबीन उत्पादक क्षेत्रों में किसान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। बाजार में सोयाबीन की कीमतें ₹2,800 से ₹3,700 प्रति क्विंटल के बीच हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित ₹4,892 प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 35% तक कम हैं।

कीमतों में इस भारी गिरावट ने किसानों को कर्ज के दलदल में धकेल दिया है, खासकर उन जिलों में जो पहले से ही कृषि संकट और किसानों की आत्महत्याओं के लिए बदनाम हैं। बढ़ती लागत, अनियमित मौसम और गुलाबी सुंडी जैसी कीट समस्याओं ने खेती की लागत भी बढ़ा दी है। नागपुर जिले के कोंढाली गांव के किसान सुरेश मुसले ने अपनी परेशानी बयां करते हुए कहा,”कीमतें गिर रही हैं, खाद के दाम बढ़ रहे हैं, और पानी की किल्लत है। हर साल चुनावी वादे सुनते हैं, लेकिन हमारी हालत बद से बदतर होती जा रही है।”

Advertisement
Advertisement

महाविकास अघाड़ी बनाम महायुति के चुनावी वादे

विपक्षी महाविकास अघाड़ी (एमवीए) ने किसानों को राहत देने के लिए बड़े वादे किए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमरावती की रैली में सोयाबीन किसानों को ₹7,000 प्रति क्विंटल देने का आश्वासन दिया। एमवीए के घोषणापत्र में मूल्य स्थिरीकरण नीति, बेहतर फसल बीमा, और सस्ते आयात पर नियंत्रण का वादा किया गया है।

वहीं, भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने अपनी ‘भवंतर योजना’ के तहत किसानों को एमएसपी से कम कीमत मिलने पर सीधे आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस योजना को ‘गेम-चेंजर’ बताते हुए कहा कि यह सरकार की किसानों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। इसके अलावा, महायुति ने अगले कार्यकाल के लिए सोयाबीन पर ₹6,000 एमएसपी देने का वादा किया है।

Advertisement8
Advertisement

किसान क्यों हैं संशय में?

चुनावी वादों के बीच किसान समुदाय में गहरी निराशा है। नागपुर के कटोल के रिधापुर गांव के किसानों ने कहा कि हर चुनाव में बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन उसके बाद उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता। छोटे किसान रमेश तिजारे ने कहा, “हमें बड़ी-बड़ी घोषणाओं की बजाय तुरंत राहत चाहिए।”

Advertisement8
Advertisement

वरिष्ठ किसान कार्यकर्ता विजय जवंधिया ने दोनों गठबंधनों पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डी-ऑयल्ड केक (डीओसी) की कीमतें तय करती हैं कि घरेलू बाजार में सोयाबीन के दाम क्या होंगे। “₹7,000 प्रति क्विंटल का वादा अव्यावहारिक है। इसके बजाय सरकार को एमएसपी पर 20% अतिरिक्त बोनस देने की नीति अपनानी चाहिए,” उन्होंने सुझाव दिया।

कृषि संकट और चुनावी समीकरण

महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था का केंद्र हैं और चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ग्रामीण मतदाता इस चुनाव में ‘किंगमेकर’ माने जा रहे हैं। एमवीए के ₹7,000 एमएसपी के वादे ने किसानों में उम्मीदें जगाई हैं, लेकिन इसकी व्यवहारिकता पर सवाल उठ रहे हैं। वहीं, महायुति की ‘भवंतर योजना’ ने अल्पकालिक राहत तो दी है, लेकिन कृषि से जुड़ी संरचनात्मक समस्याओं को हल करने में असफल रही है।

सोयाबीन संकट के बीच किसान अब केवल राहत योजनाओं से संतुष्ट नहीं हैं। वे सरकारी खरीद प्रक्रिया को सरल बनाने, आयात पर निर्भरता कम करने, और बेहतर भंडारण सुविधाओं की मांग कर रहे हैं।

जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी वादे किसानों को कितना प्रभावित करते हैं। महाराष्ट्र के किसान इस बार केवल राहत नहीं, बल्कि स्थायी समाधान की आस लगाए बैठे हैं।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Advertisement8
Advertisement

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement