राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

खाद्य तेलों की खपत कम करने की चुनौती !

25 अप्रैल 2025, नई दिल्ली: खाद्य तेलों की खपत कम करने की चुनौती ! – हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से अपील की है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी खाद्य तेल की खपत में कम से कम 10 प्रतिशत की कटौती करे। यदि खाद्य तेल की खपत में 10 प्रतिशत तक कमी आती है तो इससे आयात पर होने वाले खर्च को कुछ तो कम किया जा सकता है। यदि हम खपत में केवल 10 प्रतिशत तक कटौती करने में सफल रहते हैं और उत्पादन में इतनी ही वृद्धि करते हैं तो इससे ना केवल बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि किसानों को तिलहन फसलों के बेहतर दाम भी मिलेंगे।

भारतीय रसोई की खाद्य तेल के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती। वैसे तो पूरे विश्व में खाद्य तेल की सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति सालाना खपत चीन में होती है जबकि अमेरिका दूसरे और भारत तीसरे स्थान पर आता है। भारत में खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति सालाना खपत 20 किलोग्राम से अधिक हो गई है जबकि स्वास्थ्य कारणों से विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा अनुशंसित 12 से 13 किलोग्राम से काफी अधिक है। भारत में सन 1950 से 1960 के दशक में प्रति व्यक्ति तेल की खपत तीन किलोग्राम से भी कम थी। लेकिन हरित क्रांति के चलते तिलहन के उत्पादन में भी वृद्धि हुई जिसके कारण तेल की खपत भी बढ़ी है। बावजूद इसके घरेलू खपत की पूर्ति के लिये बड़ी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करना पड़ रहा है। हालांकि राष्ट्रीय खाद्य तेल-तिलहन मिशन (एनएमईओ-तिलहन घरेलू तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के साथ खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में प्रयास कर रहा है। इस मिशन का उद्देश्य घरेलू तिलहन उत्पादन को 2030-31 तक 697 लाख मीट्रिक टन करना है। वर्तमान में, भारत अपनी खाद्य तेल आवश्यकताओं का 55 से 60 फीसदी हिस्सा इंडोनेशिया, मलेशिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, रूस और यूक्रेन जैसे देशों से आयात करता है। तिलहन उत्पादन में भारत विश्व में पांचवें स्थान पर है, किंतु लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण मांग एवं आपूर्ति का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। इसलिए इस अंतर को कम करने के लिए तिलहन का उत्पादन बढ़ाना अतिआवश्यक है लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कि खपत को कम किया जाए।
भारत खाद्य तेलों का विश्व में सबसे बड़ा आयातक देश है। वर्ष 2022-23 में 164.7 लाख टन तेल आयात किया गया, जिस पर 1.57 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए थे। देश की कुल खपत का 57 प्रतिशत खाद्य तेल आयात से पूरा होता है, जिसमें 59 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ पाम ऑइल का है। पाम ऑइल सस्ता तो होता है लेकिन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक भी होता है क्योंकि इसमें संतृम वसा की मात्रा अधिक होती है। पाम ऑइल का उपयोग ज्यादातर सैक्स, मिठाइयों, बेकरी और स्ट्रीट फूड में इस्तेमाल होता है। तेल का अधिक उपयोग करने से स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इनमें हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा आदि सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। आज भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 127 देशों में 105वें स्थान पर है वहीं साढ़े तेरह करोड़ से अधिक लोग मोटापे से ग्रस्त हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में सन् 2050 तक मोटापा से ग्रस्त होने वालों की संख्या 44 करोड़ से अधिक हो जाएगी। इसका सबसे बड़ा कारण खाद्य तेलों का अत्यधिक सेवन करना भी है। भारत में रिफाईंड सोयाबीन, सूरजमुखी, मूंगफली, सरसों, नारियल आदि तेलों का अत्यधिक उपयोग होता है जिनमें पाम ऑइल भी मिलाया जाता है। पाम ऑइल को मिलाने से तेल की कीमत कम हो जाती है। इसके साथ ही ब्रेड जैसे उत्पादों में भी पाम ऑइल का उपयोग किया जाता है।

भारत में खाद्य तेल की खपत बढ़ाना वास्तव में एक बड़ी चुनौती बनते जा रही है। जानकार मानते हैं कि रिफाइंड खाद्य तेलों के उपयोग से स्वास्थ्य सम्बंधी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं वहीं आयात पर बड़ी मात्रा में राशि का भुगतान करने से अर्थव्यवस्था पर भी भार पड़ रहा है। अब दो विकल्प हैं. पहला खाद्य तेलों की खपत कम करना और दूसरा तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाना। खपत कम करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर जन जागरूकता कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है। खाद्य तेल के अधिक उपयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में देशवासियों को जागरूक करना अतिआवश्यक है। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा की गई अनुशंसा के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष खपत का लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जानी चाहिये लेकिन भारत जैसे विविध खानपान, जलवायु, रीति-रिवाज आदि के चलते इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव भी नहीं है। रही बात तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाना तो यह थोड़ा आसान है। सरकार को तिलहन उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन योजना शुरू करनी चाहिये। तिलहन का न्यूनतम समर्थन मूल्य को आयात किये जाने वाले खाद्य तेलों के अनुपात में रखकर किसानों को तिलहन उत्पादन के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके साथ ही स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए खपत कैसे कम करें, स्वच्छ भारत मिशन की तर्ज पर तेल की खपत करने के लिए मिशन भी शुरू किया जा सकता है।

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