किसान आंदोलन: किसान क्यों उठा रहे हैं भूमि अधिग्रहण कानून के सही क्रियान्वयन का मुद्दा?
26 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: किसान आंदोलन: किसान क्यों उठा रहे हैं भूमि अधिग्रहण कानून के सही क्रियान्वयन का मुद्दा? – पंजाब और हरियाणा के किसान फरवरी से खनौरी और शंभू बॉर्डर पर डटे हुए हैं। उनकी मांगों में फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी दर्जा देना और अन्य दर्जनभर मुद्दे शामिल हैं। इनमें सबसे प्रमुख मांगों में से एक है भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लागू करना।
यह मांग उस वक्त चौंकाने वाली लगती है जब यह कानून पहले से ही लागू है। लेकिन किसान इसके सही तरीके से अमल में न लाने का आरोप लगाते हैं। आइए समझते हैं इस कानून की अहमियत, इसके प्रावधान, और किसानों के विरोध का कारण।
भूमि अधिग्रहण कानून 2013 क्या है?
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता अधिनियम, 2013 (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation, and Resettlement Act, 2013) केंद्र सरकार द्वारा 1894 के पुराने कानून को बदलने के लिए बनाया गया। यह कानून जनवरी 2014 से लागू है और 2015 में इसमें कुछ संशोधन किए गए।
इस कानून का उद्देश्य भूमि अधिग्रहण के लिए एक आधुनिक और पारदर्शी ढांचा तैयार करना है, जो प्रभावित परिवारों को उचित मुआवजा और पुनर्वास प्रदान करे।
कानून की प्रमुख विशेषताएं
इस कानून के तहत भूमि अधिग्रहण में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है। प्रभावित किसानों को बाजार मूल्य से दोगुना मुआवजा शहरी क्षेत्रों में और ग्रामीण क्षेत्रों में चार गुना मुआवजा दिया जाता है। इसके अलावा, सार्वजनिक-निजी साझेदारी (PPP) परियोजनाओं के लिए 70% और निजी कंपनियों के लिए 80% प्रभावित परिवारों की सहमति आवश्यक है।
सरकारी परियोजनाओं के लिए बहुफसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण सीमित किया गया है। यदि ऐसी भूमि अधिग्रहित की जाती है, तो सरकार को उतने ही क्षेत्रफल में बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाना होगा।
कानून में सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (Social Impact Assessment) का प्रावधान है, जिसके तहत भूमि अधिग्रहण के सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभावों का आकलन किया जाता है। इसके अतिरिक्त, प्रभावित परिवारों को पुनर्वास और पुनर्स्थापन के तहत मकान, आजीविका के लिए आर्थिक सहायता, और पुनर्स्थापित क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं जैसे सड़कें, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र प्रदान किए जाते हैं।
किसानों की मांग और सरकार पर आरोप
किसान नेताओं का कहना है कि यह कानून अपनी आत्मा और मूल प्रावधानों के साथ लागू नहीं हो रहा है। भारतीय किसान यूनियन के महासचिव जगमोहन सिंह ने आरोप लगाया कि केंद्र और राज्य सरकारें इस कानून को कमजोर करने में लगी हैं।
उन्होंने नोएडा का उदाहरण दिया, जहां हाल ही में यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध कर रहे 160 किसानों को गिरफ्तार किया गया। जगमोहन का कहना है कि कई राज्यों में इस कानून में संशोधन करके सहमति प्रावधान को कमजोर किया गया है, जिससे विवाद और अदालती मामले बढ़े हैं।
जगमोहन कहते हैं, “यह कानून किसानों के लिए प्रगतिशील है, क्योंकि यह उचित मुआवजा सुनिश्चित करता है और जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उन्हें अधिकार देता है। पुनर्वास प्रावधान उनके जीवनयापन और सम्मान को सुरक्षित करते हैं। लेकिन जब यह पूरी तरह लागू नहीं होता, तो किसान अपनी जमीन और पहचान दोनों खोने के डर में जीते हैं।”
कानून लागू करने में चुनौतियां
विशेषज्ञों का मानना है कि कानून के तहत प्रक्रिया जटिल है, जिससे विकास परियोजनाओं में देरी होती है। इसके अलावा, उच्च मुआवजा राशि से सरकारी और निजी परियोजनाओं का बजट प्रभावित होता है।
विकास और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन बनाना सरकार के लिए हमेशा एक मुश्किल मुद्दा रहा है। इसी कारण इस कानून को पूरी तरह लागू करना चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।
किसानों का आंदोलन: क्या होगा आगे?
भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की मूल भावना को लागू करने की मांग करते हुए किसान आंदोलन की राह पर हैं। उनका कहना है कि यह कानून न केवल उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि उनकी जमीन और अधिकारों को भी संरक्षित करता है।
किसानों की इस मांग ने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर बहस छेड़ दी है। सवाल यह है कि क्या सरकार उनकी बात सुनेगी और इस कानून को सही मायनों में लागू करेगी?
किसान अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं, लेकिन क्या उनकी जमीन और हक की यह लड़ाई किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी? यह देखना अभी बाकी है।
(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़, टेलीग्राम, व्हाट्सएप्प)
(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)
कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
www.krishakjagat.org/kj_epaper/
कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: