राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

उर्वरक संतुलन से ज़्यादा जरूरी है मिट्टी सुधार

लेखक: शशिकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, मो.: 9893355391

06 जनवरी 2025, नई दिल्ली: उर्वरक संतुलन से ज़्यादा जरूरी है मिट्टी सुधार – यूरिया पर भारी सब्सिडी वास्तव में अनाज की पैदावार बढ़ाने की बजाय वायुमंडल में अधिक जहर पैदा कर रही है। इसके अलावा, 20-25 प्रतिशत यूरिया गैर-कृषि उपयोग में डायवर्ट हो रहा है और पड़ोसी देशों में भी लीक हो रहा है।

Advertisement
Advertisement

दिसंबर के पहले पखवाड़े में किसानों ने उर्वरकों के संतुलन और मिट्टी की देखभाल पर विचार-विमर्श किया। 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस की 10वीं वर्षगांठ थी। बहुत से किसान शायद नहीं जानते होंगे कि महज दो-तीन सेंटीमीटर ऊपरी उपजाऊ मिट्टी बनने में हजारों साल लग जाते हैं। इसलिए भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी की देखभाल, निगरानी और प्रबंधन पर चर्चा की गई। दुनिया भर के विशेषज्ञ भारत आये।

इन चर्चाओं में मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में खाद, उर्वरकों की कमी पर भी चर्चा हुई। कई जगह सेमिनार हुए जिनमे यूरिया की कमी पर चर्चा हुई लेकिन यह भी माना गया कि यूरिया पर भारी सब्सिडी वास्तव में अनाज की पैदावार बढ़ाने की बजाय वायुमंडल में अधिक जहर पैदा कर रही है। इसके अलावा, 20-25 प्रतिशत यूरिया गैर-कृषि उपयोग में डायवर्ट हो रहा है और पड़ोसी देशों में भी लीक हो रहा है। इसमें सुधार की आवश्यकता है।

Advertisement8
Advertisement

भारतीय मिट्टी और उर्वरक उद्योग की मौजूदा स्थिति को देखें तो 2024 में भारतीय मिट्टी की स्थिति बताती है कि 5 प्रतिशत से कम मिट्टी में उच्च या पर्याप्त नाइट्रोजन (N) है, 40 प्रतिशत में पर्याप्त फॉस्फेट (P) है, 32 प्रतिशत में पर्याप्त पोटाश (K) है, और केवल 20 प्रतिशत में पर्याप्त कार्बनिक कार्बन है। हमारी मिट्टी में सल्फर, आयरन, जिंक, बोरॉन आदि जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी कमी है, और यह कमी मध्यम से लेकर गंभीर तक है।

Advertisement8
Advertisement

कोविड-19 के बावजूद, वित्त वर्ष 21 से वित्त वर्ष 23 तक के तीन वर्षों में, भारत ने लगभग साढ़े आठ करोड़ टन अनाज का निर्यात किया। यह 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज देने के बाद हुआ। भारत आज दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। इस सफलता के पीछे भारतीय उर्वरक उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत ने तमाम मुश्किलों के बावजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम जैसे सभी प्रमुख आवश्यक पोषक तत्वों को सुनिश्चित किया है, चाहे उन्हें भारत में ही उत्पादित किया जाए या आयात किया जाए।

हालांकि, हमारी मिट्टी, उर्वरक उद्योग और कृषि में सब कुछ ठीक नहीं है। कम से कम तीस फीसदी की कमी है, और कहीं-कहीं तो पचास फ़ीसदी तक भी है। उर्वरक क्षेत्र भारी सब्सिडी पर जी रहा है। यह लगभग 1.88 लाख करोड़ रुपये की राशि है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के केंद्रीय बजट का लगभग चार फीसदी है। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में किसानों को लगभग हर साल यूरिया की कमी का सामना करना पड़ता है। यूरिया की कीमत सरकार द्वारा नियंत्रित की जाती है, जो दुनिया में सबसे सस्ती है।
यूरिया पर भारी सब्सिडी वास्तव में अनाज की पैदावार बढ़ाने की बजाय वायुमंडल में अधिक जहर पैदा कर रही है। इसके अलावा, 20-25 प्रतिशत यूरिया गैर-कृषि उपयोग में डायवर्ट हो रहा है और पड़ोसी देशों में भी लीक हो रहा है। इसमें सुधार की आवश्यकता है। उर्वरक सुधार का अंतिम समाधान इस क्षेत्र को मूल्य नियंत्रण से मुक्त करना है। किसानों को उर्वरक खरीदने के लिए डिजिटल कूपन के रूप में प्रत्यक्ष आय हस्तांतरण दिया जा सकता है। इसके साथ ही, हमें इस उद्योग को विनियमित करने की आवश्यकता है।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

Advertisement8
Advertisement

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement