भारत में PBW 872 और PBW 833 गेहूं किस्मों ने तोड़ा उत्पादन रिकॉर्ड
26 सितम्बर 2025, नई दिल्ली: भारत में PBW 872 और PBW 833 गेहूं किस्मों ने तोड़ा उत्पादन रिकॉर्ड – पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU), लुधियाना की विकसित दो गेहूं किस्मों PBW 872 और PBW 833 ने 2024–25 सीजन के राष्ट्रीय गेहूं किस्म परीक्षणों में श्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। इन किस्मों की सफलता से यह साफ होता है कि पीएयू लगातार ऐसी उन्नत किस्में विकसित कर रहा है जो अधिक उत्पादन के साथ विभिन्न खेती की परिस्थितियों में किसानों के लिए उपयोगी साबित हो रही हैं।
PBW 872 को वर्ष 2022 में नॉर्थ वेस्टर्न प्लेन्स जोन (NWPZ) के लिए अधिसूचित किया गया था। इस जोन में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कठुआ, हिमाचल प्रदेश का ऊना और पांवटा घाटी तथा उत्तराखंड का तराई क्षेत्र शामिल हैं। इस किस्म ने जल्दी बोई जाने वाली और उच्च इनपुट वाली परिस्थितियों में सर्वाधिक उत्पादन दिया। इसकी औसत परिपक्वता अवधि 152 दिन है और पौधे की औसत ऊंचाई लगभग 100 सेंटीमीटर रहती है, जिससे यह गिरने (lodging) की संभावना से बची रहती है। यह पीली और भूरे रतुआ (rust) रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी पाई गई है। किस्म के दाने बड़े और चमकदार हैं तथा 1000 दानों का औसत वजन लगभग 45 ग्राम है, जिससे बाजार में इसे अच्छी कीमत मिलती है। धान–गेहूं प्रणाली अपनाने वाले किसान इस किस्म से अधिक उत्पादन और बेहतर आर्थिक लाभ उठा रहे हैं।
PBW 833 ने नॉर्थ ईस्टर्न प्लेन्स जोन (NEPZ) में देर से बोई जाने वाली परिस्थितियों में अपनी उत्कृष्टता दिखाई है। 2024–25 के राष्ट्रीय परीक्षणों में 13 स्थानों पर इस किस्म ने औसतन 45.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज दी। इसकी तुलना में अन्य किस्में जैसे DBW 107 (42.5 क्विंटल/हेक्टेयर) और HD 3118 (40.9 क्विंटल/हेक्टेयर) पीछे रहीं। इससे यह सिद्ध हुआ कि देर से बोआई की स्थिति में PBW 833 किसानों के लिए अधिक भरोसेमंद और लाभकारी विकल्प है।
पीएयू ने यह भी घोषणा की है कि PBW 872 और PBW 833 के बीज आने वाले किसान मेलों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इन मेलों के माध्यम से किसान न केवल नई तकनीकों और किस्मों से परिचित होंगे बल्कि उन्हें सीधे बीज प्राप्त करने का अवसर भी मिलेगा। राष्ट्रीय परीक्षणों के परिणाम बताते हैं कि ये दोनों किस्में उच्च उत्पादन क्षमता और व्यावहारिक उपयोगिता का संतुलन प्रदान करती हैं, जिससे किसानों को उपज और आय दोनों में बढ़ोतरी का अवसर मिलेगा।
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