राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

कर्ज माफी नहीं, ब्याज में राहत! लेकिन क्या ये किसानों के लिए काफी है?

12 मार्च 2025, नई दिल्ली: कर्ज माफी नहीं, ब्याज में राहत! लेकिन क्या ये किसानों के लिए काफी है? – खेती-किसानी के लिए कर्ज की जरूरत हर किसान को होती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या मौजूदा योजनाएं किसानों की असली दिक्कतों का हल निकाल पा रही हैं? सरकार ने हाल ही में कई योजनाओं में बदलाव किए हैं, जिनका दावा है कि वे खेती को जलवायु के अनुकूल और किसानों के लिए आसान बनाएंगी। यह जानकारी लोकसभा में एक लिखित उत्तर में कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री रामनाथ ठाकुर ने दी।

कर्ज माफी नहींब्याज में राहत– लेकिन कितनी?

किसानों को मिलने वाले कर्ज पर ब्याज दरों में छूट दी गई है। किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के तहत 7% की ब्याज दर पर कर्ज मिलता है, लेकिन जो किसान समय पर चुकाते हैं, उन्हें 3% की छूट मिलती है, जिससे यह दर घटकर 4% रह जाती है। अगर किसी किसान की फसल प्राकृतिक आपदा की वजह से खराब हो जाती है, तो उसके लिए पहले साल तक ब्याज में राहत मिलती है। हालांकि, बड़ी आपदाओं की स्थिति में यह छूट 5 साल तक बढ़ाई जा सकती है। लेकिन असल सवाल ये है कि क्या राहत की ये शर्तें वाकई किसानों को संकट से उबार पाती हैं, या फिर कर्ज का बोझ उनके सिर पर बना ही रहता है?

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कृषि के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने को लेकर एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (AIF) लाया गया है। इसके तहत 9% ब्याज पर कर्ज मिलता है, जिसमें 3% की सब्सिडी दी जाती है। सरकार का कहना है कि इससे किसान खुद के भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाएं बना सकेंगे और बिचौलियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। लेकिन हकीकत ये है कि छोटे और सीमांत किसानों के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे इस तरह की इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं बना पाएं।

AgriStack और Kisan Rin Portal जैसी योजनाओं के जरिए सरकार कृषि क्षेत्र में डिजिटल बदलाव लाने की बात कर रही है। Kisan Rin Portal को 1.89 लाख बैंक शाखाओं से जोड़ा गया है, जिससे किसानों को डिजिटल तरीके से कर्ज लेने में आसानी हो। हालांकि, ज़मीनी हकीकत ये है कि गांवों में अब भी बहुत सारे किसान डिजिटल लेन-देन से दूर हैं, और बैंकिंग प्रक्रियाएं उनके लिए आज भी उलझी हुई हैं।

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जलवायु परिवर्तन और कृषि– क्या किसान वाकई तैयार हैं?

सरकार नेशनल इनोवेशन ऑन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) और ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) जैसी योजनाएं चला रही है, ताकि किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचाया जा सके। इसके अलावा, सरकार ने कार्बन क्रेडिट मार्केट में भी कदम रखा है, और अभी तक 11 प्रोजेक्ट इस सिस्टम में जोड़े गए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या छोटे और मझोले किसान इस तकनीक को समझ पा रहे हैं, या फिर इसका फायदा सिर्फ बड़े कृषि कारोबारी उठा रहे हैं?

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नैनो यूरिया और नैनो DAP के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए कई अभियान चल रहे हैं। सरकार ने महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) को 15,000 ड्रोन देने का लक्ष्य रखा है, जिनमें से अब तक 1,094 ड्रोन वितरित किए जा चुके हैं। इन ड्रोन के ज़रिए फसलों पर नैनो फर्टिलाइज़र का छिड़काव किया जा रहा है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये ड्रोन वाकई छोटे किसानों तक पहुंच रहे हैं, या फिर सिर्फ बड़े किसानों और संगठनों तक ही सीमित रह गए हैं?

सरकार का कहना है कि वह डेयरी उद्योग की तर्ज पर कृषि में एक ऐसा मॉडल बनाना चाहती है, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का 75-80% दाम मिल सके। यानी बिचौलियों का रोल खत्म हो जाए और किसान सीधे बाजार से जुड़ सकें। लेकिन क्या मौजूदा सिस्टम में ऐसा होना मुमकिन है? हकीकत ये है कि कृषि उत्पादों की कीमतें बाजार में बिचौलियों और कंपनियों द्वारा तय की जाती हैं, और किसानों के लिए इस सिस्टम से बाहर निकलना आसान नहीं है।

सरकार कृषि क्षेत्र में नई योजनाओं और डिजिटल बदलाव की बातें कर रही है, लेकिन सवाल ये है कि क्या ये योजनाएं ज़मीनी स्तर पर किसानों तक पहुंच रही हैं? जलवायु परिवर्तन, डिजिटल क्रांति और वैल्यू चेन मॉडल जैसे विचार कागजों पर तो शानदार लगते हैं, लेकिन हकीकत में अगर छोटे किसानों की भागीदारी इसमें नहीं बढ़ी, तो ये योजनाएं उन्हीं लोगों तक सीमित रह जाएंगी, जिनके पास पहले से संसाधन मौजूद हैं।

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