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जलवायु परिवर्तन से कृषि के बचाव हेतु 151 जिलों में नई अनुकूलन तकनीकें लागू

29 जुलाई 2024, नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन से कृषि के बचाव हेतु 151 जिलों में नई अनुकूलन तकनीकें लागू – जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे के मद्देनजर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) परियोजना के तहत कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत आकलन किया है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यसभा में जानकारी देते हुए बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण 651 कृषि प्रधान जिलों में से 573 जिलों का जोखिम और असुरक्षा का आकलन किया गया है। इसमें से 109 जिलों को ‘अत्यधिक’ और 201 जिलों को ‘काफी अधिक’ संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है।

फसल उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

एकीकृत कंप्यूटर सिमुलेशन मॉडलिंग अध्ययनों के अनुसार, यदि अनुकूलन उपाय नहीं अपनाए गए तो 2050 तक वर्षा आधारित चावल की पैदावार में 20 प्रतिशत और 2080 तक 47 प्रतिशत की कमी आ सकती है। सिंचित चावल की पैदावार 2050 में 3.5 प्रतिशत और 2080 में 5 प्रतिशत तक घटने की संभावना है। गेहूं की पैदावार 2050 में 19.3 प्रतिशत और 2080 में 40 प्रतिशत तक कम हो सकती है। खरीफ मक्का की पैदावार 2050 और 2080 में क्रमशः 18 से 23 प्रतिशत तक घटने की संभावना है। सोयाबीन की पैदावार में 2030 तक 3-10 प्रतिशत और 2080 तक 14 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।

जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए 151 जलवायु संवेदनशील जिलों के 448 गांवों में अनुकूलन उपाय किए गए हैं। इनमें जलवायु अनुकूल किस्में, सीधे बीज वाले चावल (डीएसआर), कुशल सिंचाई प्रणाली, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और पत्ती रंग चार्ट के अनुसार नाइट्रोजन का उपयोग, फसल अवशेषों को जलाने से बचना, फसल अवशेषों को मिट्टी में पुनर्चक्रित करना, बायोगैस और वर्मीकंपोस्टिंग का उपयोग, बेहतर चारा प्रबंधन प्रणालियों और सामुदायिक चारा बैंक के माध्यम से पशुओं से मीथेन उत्सर्जन को कम करना, कार्बन सिंक के रूप में कृषि वानिकी प्रणाली और टर्मिनल हीट स्ट्रेस से बचने के लिए जीरो टिल ड्रिल गेहूं का उपयोग शामिल हैं।

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए)

सरकार ने किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाने में सहायता करने के लिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) लागू किया है। इस मिशन के तीन प्रमुख घटक हैं – वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (आरएडी), खेत पर जल प्रबंधन (ओएफडब्ल्यूएम) और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एसएचएम)। इसके अलावा, मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी), परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई), पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडीएनईआर), प्रति बूंद अधिक फसल, राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) आदि नए कार्यक्रम भी शामिल किए गए हैं। मिशन का उद्देश्य कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला बनाने के लिए अनुकूलन और शमन पद्धतियों को विकसित करना और लागू करना है।

यह जानकारी केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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