राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

कश्मीर की सेब क्रांति: युवा किसान सोशल मीडिया के ज़रिए बिचौलियों को दे रहे चुनौती

21 जून 2025, नई दिल्ली: कश्मीर की सेब क्रांति: युवा किसान सोशल मीडिया के ज़रिए बिचौलियों को दे रहे चुनौती – कश्मीर की हरी-भरी घाटियों में एक चुपचाप बदलाव हो रहा है। यहां की नई पीढ़ी के सेब किसान सोशल मीडिया का सहारा लेकर पारंपरिक बाजार व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं। अब वे बिचौलियों और कमीशन एजेंटों पर निर्भर नहीं रहना चाहते, बल्कि सीधे ग्राहकों से जुड़कर अपने फल बेच रहे हैं — और इससे उन्हें बेहतर मुनाफा भी हो रहा है।

भारत में पैदा होने वाले सेबों का लगभग 75% हिस्सा कश्मीर से आता है, लेकिन वर्षों से किसान दिल्ली और आजादपुर जैसे बड़े मंडियों में एजेंटों के भरोसे थे, जो कीमत तय करते और भुगतान में देरी करते थे। अब हालात बदल रहे हैं।

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शोपियां के 28 वर्षीय किसान आदिल नज़ीर कहते हैं, “पहले हमें कमीशन एजेंट का इंतजार करना पड़ता था। वे आते, कीमत बताते और आधा मुनाफा खुद ले जाते। अब मैं दिल्ली और मुंबई के घरों तक सीधे सेब भेज रहा हूं।”

सोशल मीडिया इस बदलाव की रीढ़ बन चुका है। व्हाट्सएप पर किसान ऑर्डर लेते हैं, इंस्टाग्राम पर अपने फल दिखाते हैं, और फेसबुक व यूट्यूब से नई तकनीकें सीखते हैं। बडगाम के बागवानी स्नातक रऊफ अहमद अपने यूट्यूब चैनल पर ग्राफ्टिंग, कोल्ड स्टोरेज और ओलावृष्टि से बचाव पर वीडियो बनाते हैं। वह कहते हैं, “ये केवल ऑनलाइन होने की बात नहीं है, बल्कि अपने फैसलों पर फिर से नियंत्रण पाने की बात है।”

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2023 की फसल में बारामूला की एक सामूहिक संस्था ‘कश्मीर फ्रेश पिक्स’ ने इंस्टाग्राम के माध्यम से 30,000 किलोग्राम सेब सीधे ग्राहकों को बेचे, जिससे किसानों को पारंपरिक मंडी के मुकाबले लगभग 30% ज्यादा मुनाफा हुआ। किसान खुद पैकेजिंग से लेकर पेमेंट और डिलीवरी तक सब कुछ व्हाट्सएप और QR कोड्स के माध्यम से संभाल रहे हैं।

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नवंबर 2023 में जब एक बर्फीला तूफान फसलों को नुकसान पहुंचा गया, तो सोशल मीडिया ही किसानों के लिए आपसी समन्वय और नुकसान की रिपोर्टिंग का सबसे तेज़ माध्यम बना। उन्होंने सरकारी प्रक्रिया का इंतजार किए बिना मुआवज़े की मांगें उठाईं।

हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। बहुत से बुज़ुर्ग किसान डिजिटल उपकरणों का प्रयोग नहीं कर पाते। कई इलाकों में अब भी 4G इंटरनेट की सुविधा कमजोर है। केवल कश्मीरी भाषा बोलने वालों के लिए हिंदी और अंग्रेज़ी सामग्री समझना कठिन है। साथ ही, सोशल मीडिया पर गलत जानकारी का तेज़ प्रसार किसानों को भ्रमित कर सकता है। एक स्थानीय कृषि अधिकारी कहते हैं, “यह समझना मुश्किल हो जाता है कि क्या सही है और क्या झूठ।”

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह डिजिटल बदलाव तभी स्थायी होगा जब सरकार इसकी मदद को आगे आए। डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम, इंटरनेट सब्सिडी, और किसान-केन्द्रित प्रशिक्षण ज़रूरी हैं ताकि तकनीकी अंतर के कारण किसान समुदाय के बीच नई खाई न बन जाए।

हालांकि कठिनाइयाँ मौजूद हैं, लेकिन कश्मीर में उभरता यह डिजिटल मॉडल किसानों के आत्मनिर्भर होने का संकेत है। अब ये किसान सिर्फ सेब नहीं बेच रहे — वे अपनी पहचान, मुनाफा और निर्णय लेने का अधिकार भी वापस ले रहे हैं।

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