National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

अंतरिम बजट 2024: खेती में सब्सिडी कम होने के संकेत

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03 फरवरी 2024, नई दिल्ली(शशिकांत त्रिवेदी): अंतरिम बजट 2024: खेती में सब्सिडी कम होने के संकेत – लगातार जलवायु में हो रहे परिवर्तन से परेशान किसान निर्यात पर लगे प्रतिबंधों से और परेशान हुए हैं. उनकी हाल ही में पेश हुए अंतरिम बजट से रही सही उम्मीद पर भी पानी फिर गया है क्योंकि सरकार ने किसानों की कुछ ख़ास योजनाओं की धनराशि में कटौती की है |

बार होने वाले जलवायु झटकों और घरेलू खाद्य कीमतों पर नियंत्रण के लिए निर्यात प्रतिबंधों के कारण कृषि आय पर असर पड़ने के बावजूद, गुरुवार को पेश किए गए अंतरिम बजट में कुछ प्रमुख योजनाओं के लिए वित्त पोषण में कटौती की गई।

प्रमुख फसल बीमा योजना को 2024-25 (बजट अनुमान ) के लिए 14,600 करोड़ रूपये आवंटित किया गया है जो 2023-24 (संशोधित अनुमान ) में खर्च किए गए ₹15,000 करोड़ से कम है। मामूली कटौती पिछले साल कम बारिश के कारण हुई है और कुछ इलाकों में अधिक और कम बारिश के कारण किसानों को फसल का नुकसान हुआ है।

किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दलहन और तिलहन जैसी फसलों को खरीदने के लिए जरी एक दूसरी ख़ास योजना पीएम-आशा के लिए धनराशि को भी 2023-24 (संशोधित अनुमान) में ₹2,200 करोड़ से घटाकर 2024-25 (बजट अनुमान) में ₹1,738 करोड़ कर दिया गया। जबकि पिछले महीने ही सरकार ने दालों की खरीद के लिए एक पोर्टल लॉन्च किया है. अगर बजट दस्तावेज़ो ओर नज़र डाली जाए तो 2022-23 में मूल्य समर्थन योजना का वास्तविक खर्च ₹4,000 करोड़ से कहीं ज़्यादा था |

इसके अलावा, बजट में पीएम-किसान योजना के तहत किसानों को सालाना मिलने वाली नकद राशि जो उन्हें सीधे ट्रांसफर के ज़रिये मिलती है उसे भी नहीं बढ़ाया गया। यह व्यापक रूप से उम्मीद की गई थी कि सरकार कुछ महीनों में होने वाले आम चुनावों से पहले प्रत्येक पात्र किसान परिवार को मिलने वाली सालाना 6000 रूपये की राशि को बढ़एगी। बजट दस्तावेजों के अनुसार इसके लिए राशि ज्यों की त्यों यानी 60,000 करोड़ रूपये ही है |

इसी तरह खेती में रासायनिक खादों आदि के उपयोग को कम करके प्राकृतिक और पारम्परिक तरीके से खेती करने वाले किसानों के लिए जो राष्ट्रीय मिशन जारी है उसमें भी मामूली 366 करोड़ रूपये देने का प्रावधान किया गया है जो 2023-24 के बजट अनुमान में 459 करोड़ रूपये था|

संशोधित अनुमान बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष के दौरान इस योजना पर खर्च सिर्फ ₹100 करोड़ था। हमारा देश अभी अपने खाने के तेल की ज़रूरत का लगभग 60% दूसरे देशों से आयात करता है |

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा, “2022 में घोषित पहल के आधार पर, सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों के लिए ‘आत्मनिर्भरता’ (आत्मनिर्भरता) हासिल करने के लिए एक रणनीति तैयार की जाएगी।” उन्होंने कहा कि कृषिउन्नति योजना ज़्यादा पैदावार देने वाली किस्मों को विकसित करने, आधुनिक खेती की तकनीकों को अपनाने, उपार्जन (खरीद) और बाजार लिंकेज को बढ़ने के लिए लागू होगी।

बजट दस्तावेजों से पता चलता है कि तिलहन योजना इस कृषोन्नति योजना का एक हिस्सा होगी जिसे 2024-25 (बजट अनुमान) के लिए 7,447 करोड़ आवंटित किया गया था, जबकि 2023-24 (बजट अनुमान) में 7,066 करोड़ रूपये आवंटित किया गया था। कृषि अनुसंधान विभाग के लिए 9,941 करोड़ रूपये की राशि आवंटित की गई, जो 2023-24 (आरई) में आवंटित 9,877 करोड़ रूपये से थोड़ी ही अधिक है।

बजट में नई योजनाओं में, “नमो ड्रोन दीदी” योजना है जिसके लिए 500 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं. इस योजना के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों को 15,000 ड्रोन प्रदान किये जायेंगे। किसान महिलाओं द्वारा संचालित ड्रोन को किसान उर्वरक और कीटनाशकों का छिड़काव करने के लिए किराए पर ले सकते हैं।

भारत देश उर्वरकों की सब्सिडी पर हर साल 1.6 लाख करोड़ रूपये से अधिक खर्च कर रहे हैं जिसका पैदावार बढ़ने पर कोई खास असर नहीं दिख रहा है. यही कारण है कि जलवायु परिवर्तन के संकट और खाद्य पदार्थों की बढ़ती वैश्विक महंगाई से निपटने के लिए खेती के लिए ज़रूरी नवाचार और अनुसन्धान के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं हो पाता।

वित्त मंत्री ने अपने संक्षिप्त बजट भाषण में यह कहा कि नैनो यूरिया को ‘सफलतापूर्वक’ अपनाने के बाद किसानों को नैनो डीएपी अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। नैनो उर्वरकों को अधिक अपनाने का मतलब है उर्वरक सब्सिडी में कमी आएगी हालाँकि, कई किसान इन नैनों तत्वों का उपयोग करने में अनिच्छा जाता रहें और ख़बरों के मुताबिक वैज्ञानिकों ने भी इन उत्पादों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाया है। यह सरकार का अंतरिम बजट था क्योंकि अप्रैल मई माह में इस साल आम चुनाव है. यह व्यापक चर्चा है कि यदि मोदी सरकार सत्ता में बनी रहती है तो संभव है जुलाई में पूर्ण बजट में किसानों को कुछ नए विकल्प मिलें।

सब्सिडी कम करने पर किसानों को विकल्प उपलब्ध कराने पर ठोस रणनीति की ज़रूरत यही क्योंकि विकसित देश खेती के लिए बहुत ज़्यादा संरक्षण देते हैं |ज़रूरी यह है कि हम खेत पर ही बुनियादी ढांचे मुहैया करवाएं और किसानों को बदलते बाज़ार और लगातार बदलती जलवायु के लिए तैयार करें तभी उनकी आय में सुधार हो सकेगा |

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