Independence Day 2025: आजादी की लड़ाई के 5 बड़े किसान आंदोलन, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी
14 अगस्त 2025, नई दिल्ली: Independence Day 2025: आजादी की लड़ाई के 5 बड़े किसान आंदोलन, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी – भारत की स्वतंत्रता की कहानी केवल नेताओं के भाषणों और क्रांतिकारियों की वीरगाथाओं तक सीमित नहीं थी। इस संघर्ष में गांव-गांव के किसानों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार, जमींदारी प्रथा और शोषणकारी नीतियों के खिलाफ किसानों ने कई ऐसे आंदोलन किए, जिन्होंने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी। आजादी के 79वें वर्ष पर, आइए जानते हैं ऐसे 5 ऐतिहासिक किसान आंदोलनों के बारे में, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।
1. पाबना आंदोलन (1870-1880) – लगान के अन्याय के खिलाफ किसानों का विद्रोह
19वीं सदी के किसान आंदोलनों की मुख्य वजह सामंती व्यवस्था और जमींदारों का शोषण थी। पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के पाबना जिले के यूसुफशाही परगना में मई 1873 में कृषि लीग का गठन हुआ।
जमींदार किसानों से मनमाने लगान और भूमि कर वसूलते थे। साल 1859 के अधिनियम X के तहत किसानों को अपनी भूमि पर अधिभोग का अधिकार भी नहीं दिया जा रहा था। इससे नाराज होकर किसानों ने संगठित होकर हड़तालें कीं, आपस में चंदा जुटाया और आंदोलन को आसपास के जिलों में फैला दिया।
हालांकि आंदोलन का मूल स्वरूप कानूनी लड़ाई का था, लेकिन कुछ जगहों पर हिंसा भी हुई। पाबना आंदोलन को बंकिम चंद्र चटर्जी, आर.सी. दत्त और सुरेंद्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व वाली इंडियन एसोसिएशन का समर्थन मिला। 1885 में सरकार ने बंगाल काश्तकारी अधिनियम पारित कर अधिभोग अधिकारों में सुधार किया और आंदोलन समाप्त हुआ।
2. दक्कन विद्रोह (1875) – साहूकारों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार
दक्कन (महाराष्ट्र) में किसानों के विद्रोह की जड़ में रैयतवाड़ी व्यवस्था थी, जिसमें किसानों पर भारी भू-राजस्व का बोझ डाला गया। 1867 में करों में 50% की बढ़ोतरी ने हालात और बिगाड़ दिए। साहूकारों के अत्याचार से तंग आकर 1874 में किसानों ने सामाजिक बहिष्कार आंदोलन शुरू कर दिया।
किसानों ने साहूकारों की दुकानों से सामान खरीदना बंद कर दिया और खेतों में उनके लिए काम करने से इनकार कर दिया। नाई, धोबी और मोची जैसे अन्य पेशेवर वर्गों ने भी साहूकारों को सेवाएं देना बंद कर दिया। आंदोलन धीरे-धीरे पूना, अहमदनगर, सोलापुर और सतारा तक फैल गया और कुछ जगहों पर हिंसक रूप ले लिया।
1879 में अंग्रेज सरकार ने दक्कन कृषक राहत अधिनियम पारित कर स्थिति को शांत करने की कोशिश की, जिसमें किसानों के लिए कर्ज राहत की व्यवस्था की गई।
3. चंपारण सत्याग्रह (1917) – गांधीजी का पहला बड़ा आंदोलन
महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे और 1917 में बिहार के चंपारण में उनका पहला बड़ा भारतीय आंदोलन शुरू हुआ। यहां यूरोपीय नील बागान मालिक किसानों को उनकी जमीन के 3/20वें हिस्से पर नील उगाने और निर्धारित कीमत पर बेचने के लिए मजबूर करते थे।
किसानों के उत्पीड़न की शिकायत राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी तक पहुंचाई। गांधीजी ने चंपारण आकर जिला अधिकारी के छोड़ने के आदेश का उल्लंघन किया, जिससे अंग्रेज सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। जून 1917 में एक जांच समिति गठित की गई, जिसमें गांधीजी भी सदस्य थे। इसके बाद चंपारण कृषि अधिनियम 1918 लागू हुआ, जिसने किसानों को इस जबरन खेती से मुक्ति दिलाई।
4. खेड़ा सत्याग्रह (1918) – कर माफी की लड़ाई
1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में लगातार खराब मौसम के कारण फसलें बर्बाद हो गईं। किसानों ने भू-राजस्व माफी की मांग की, लेकिन अंग्रेज सरकार ने इनकार कर दिया। इसके बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल और महात्मा गांधी के नेतृत्व में किसानों ने कर न देने का निर्णय लिया।
खेड़ा का यह सत्याग्रह अहिंसक तरीके से चला और किसानों ने संगठित रहकर सरकार का दबाव झेला। अंततः ब्रिटिश सरकार ने उनकी मांगें मान लीं और राजस्व में छूट दी। यह आंदोलन किसानों की एकता और अहिंसा की ताकत का प्रतीक बन गया।
5. बारदोली सत्याग्रह (1928)
गुजरात के बारदोली में अंग्रेज सरकार ने भू-राजस्व में 30% की वृद्धि की घोषणा की। किसानों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में राजस्व देने से इंकार कर दिया। आंदोलन में अंग्रेजों ने मवेशियों और जमीन की कुर्की तक कर दी, लेकिन किसानों का हौसला नहीं टूटा।
एक महिला कार्यकर्ता ने इस संघर्ष के दौरान वल्लभ भाई को “सरदार” की उपाधि दी। अंततः जांच समिति की रिपोर्ट में कर वृद्धि को अनुचित बताया गया और इसे घटाकर 6.03% कर दिया गया।
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