पौधारोपण कर अगली पीढ़ी को दें उपहार
02 जुलाई 2024, भोपाल: पौधारोपण कर अगली पीढ़ी को दें उपहार – इस वर्ष भीषण गरमी के कहर से भारत का शायद ही कोई भूभाग अछूता रहा हो। गर्मी की ऋतु में पेयजल का संकट भी देश के अनेक भागों में देखा गया। भीषण गर्मी से सैकड़ों लोगों की मृत्यु भी हो गई। भूजल का अत्यधिक दोहन से भजल का स्तर भी काफी नीचे चला गया है जिससे कारण भूगर्भीय स्थिति में भी परिवर्तन होने की आशंका जताई जा रही है। पेयजल की कमी और भीषण गर्मी के मूल में जाकर देखेंगे तो इसका एक प्रमुख कारण वृक्षों की संख्या में अत्यधिक कमी होना भी है। जिन क्षेत्रों में पर्याप्त अनुपात में वृक्ष हैं, वहां गर्मी का प्रकोप कम रहा, भूजल स्तर सामान्य और पर्यावरण संतुलन भी बना रहता है जो कृषि और मानव के स्वास्थ्य और स्वभाव को सीधा प्रभावित करता है। पेड़ तापमान को नियंत्रित करने और मौसम की स्थिति को वर्षा के अनुकूल बनाने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे हवा से कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं, जिससे वायु शुद्ध हो जाती है, और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जो जीवन के निर्वाह के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, वे हमें लकड़ी, भोजन, ईंधन, कागज आदि भी प्रदान करते हैं, जो हमारे दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसके अलावा, वे सभी प्रकार के जानवरों और पक्षियों का भी घर होते हैं।
शहरों में तो आबादी के दबाव के कारण नई-नई कालोनियों और रहवासी क्षेत्र विकसित होने से कृषि भूमि का रकबा सिकुड़ता जा रहा है। इस कारण वृक्षों की कटाई भी हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी भी परिवारों के विघटन से कृषि भूमि का रकबा भी लगातार हर वर्ष कम हो रहा है। सीमित कृषि भूमि होने के कारण वृक्षों की कटाई भी होती है। ज़मीन की कमी होने के कारण नये वृक्ष भी बहुत कम लगाये जा रहे हैं। हालांकि शासन ने वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिये योजानाएं शुरू की हैं लेकिन इसके उत्साहनजक परिणाम नहीं दिखाई दे रहे हैं। सभी सरकारें हर साल वृक्षारोपण अभियान चलाकर करोड़ों पौधों का रोपण करवाती हैं लेकिन यह केवल वार्षिक कार्यक्रम बन कर रह जाते हैं। कुछ वर्ष पहले मध्यप्रदेश में एक दिन में सात करोड़ पौधे लगाने का अभियान चलाकर विश्व कीर्तिमान बनाया था। इनमें से कितने प्रतिशत पौधे जीवित रहे, इसकी कोई अधिकृत जानकारी नहीं है। यदि हर साल वृक्षारोपण अभियान के दौरान लगाये पौधों में से पचास प्रतिशत पौधे भी जीवित बच जाते तो आज देश में वृक्ष/जंगल और जमीन का अनुपात संतुलित रहता।
इन दिनों बारिश की मौसम शुरू हो चुका है। सरकार द्वारा इस वर्ष भी पौधारोपण अभियान चलाने की घोषणा के अनुपालन में वृहद वृक्षारोपण करने की तैयारी की जा रही है। शहरों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी वृक्षारोपण किया जायेगा। ध्यान रखना होगा कि पौधारोपण अभियान सरकारी कार्यक्रम बनकर न रह जाये। दरअसल पौधों का रोपण करने, तस्वीरें खिंचवाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने और आला अधिकारियों तक प्रमाण सहित रिपोर्ट भेजने मात्र से ही उद्देश्य पूरा नहीं जाता। पौधारोपण करने के बाद पौधे जीवित रहें, इसकी जिम्मेदारी सम्बंधित व्यक्ति, स्वयं सेवी संगठन, सरकारी विभाग सभी की हो जाती है। लेकिन देखा जा रहा है कि पौधारोपण करने के बाद पौधों की देखभाल ठीक से नहीं की जाती। परिणामस्वरूप काफी संख्या में पौधे जीवित नहीं रह पाते। इस सम्बंध में सरकार को स्पष्ट निर्देश जारी करने चाहिये कि पौधे जीवित रहे, इसके लिये जवाबदारी सौंपनी होगी। भले ही लाखों की संख्या न हो, हजारों में हों लेकिन जीवित पौधों का प्रतिशत शत प्रतिशत न सही, कम से कम 90 प्रतिशत तो होना ही चाहिये।
सबसे महत्वपूर्ण, पौधारोपण अभियान में खासतौर से अधिकाधिक बच्चों को शामिल करें और उन्हें पौधारोपण के महत्व के बारे में जानकारी दें। यह कार्य विद्यालयों द्वारा किया जाना चाहिये। स्थान के अनुसार विभिन्न प्रजातियों के छायादार और फलदार पौधों के साथ औषधीय पौधे लगाने चाहिये ताकि जब ये बच्चे जिम्मेदार नागरिक बनेंगे तब उन्हें पौधारोपण का महत्व समझ में आयेगा। ऐसे ही प्रयासों से पौधारोपण की यह परम्परा पीढ़ी-दर-पीढ़ी जारी रह सकेगी। सही मायने में यह प्रकृति के साथ समन्वय, पर्यावरण संतुलन और मानव के लिये उपहार ही सिद्ध होगा।
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