राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

खेत से थाली तक- कीटनाशक अवशेषों की ज़िम्मेदारी किसकी?

19 फ़रवरी 2025, नई दिल्ली: खेत से थाली तक- कीटनाशक अवशेषों की ज़िम्मेदारी किसकी? – भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने हाल ही में खाद्य वस्तुओं में कीटनाशक अवशेषों की निगरानी की चुनौतियाँ” विषय पर एक राष्ट्रीय हितधारक परामर्श बैठक का आयोजन विज्ञान भवननई दिल्ली में किया।

इस बैठक की अहमियत को देखते हुए क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया (CCFI) ने डॉ. अल्का रावसलाहकार (विज्ञानमानक और विनियम)राष्ट्रीय कोडेक्स-SPS संपर्क बिंदु, FSSAI को एक स्थिति-पत्र सौंपा। इस दस्तावेज़ में कीटनाशक उद्योग से जुड़े प्रमुख मुद्दों को उठाया गया।

कीटनाशक उपयोग के कानूनी प्रावधान

कीटनाशक अधिनियम, 1968 की धारा 38(1)(a) के अनुसार, यह कानून किसी व्यक्ति द्वारा अपनी खुद की कृषि भूमि पर कीटनाशकों के उपयोग को विनियमित नहीं करता। इसी तरह, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (FSS Act) भी किसानों द्वारा अपने खेतों में कीटनाशकों के उपयोग पर कोई कानूनी नियंत्रण लागू नहीं करता। ऐसे में सवाल उठता है कि अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) के अनुपालन की जिम्मेदारी किसकी होगी?

CCFI की कार्यकारी निदेशकसुश्री निर्मला पथरवाल ने इस मुद्दे पर कानूनी स्पष्टता की मांग करते हुए कहा, “मौजूदा नियामक ढांचा यह साफ़ नहीं करता कि MRL अनुपालन की ज़िम्मेदारी किसानों, व्यापारियों या नियामक एजेंसियों की है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक घरेलू खाद्य सुरक्षा और निर्यात मानक खतरे में बने रहेंगे।”

प्री-हार्वेस्ट इंटरवल (PHI) की समझ

प्री-हार्वेस्ट इंटरवल (PHI) उस न्यूनतम अवधि को दर्शाता है, जो अंतिम कीटनाशक छिड़काव और फसल की कटाई के बीच होनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि फसल में मौजूद कीटनाशक अवशेष स्वास्थ्य सुरक्षा मानकों के भीतर रहें। PHI का सख्ती से पालन करने से निर्यात में अस्वीकृति से बचा जा सकता है और वैश्विक बाज़ार में भारतीय कृषि उत्पादों की स्वीकार्यता बनी रहती है।

सुश्री पथरवाल ने इस विषय पर जोर देते हुए कहा, “किसानों को PHI के महत्व के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। इसका सही क्रियान्वयन कीटनाशक अवशेष उल्लंघन को काफी हद तक कम कर सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी और भारत की कृषि निर्यात साख मजबूत होगी।”

FSSAI कीटनाशक अवशेषों की निगरानी में क्या भूमिका निभाता है?

खाद्य सुरक्षा और मानक (प्रदूषकविषाक्त तत्व और अवशेष) विनियम, 2011 के तहत कीटनाशक अवशेषों को खाद्य संदूषक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ये वे पदार्थ होते हैं, जो भोजन में जानबूझकर नहीं मिलाए जाते, बल्कि कृषि या पर्यावरणीय कारणों से उसमें मौजूद रहते हैं।

इसके अलावा, FSS अधिनियम, 2006 की धारा 18(3) खेती की प्रक्रियाओं, फसलों और कृषि उत्पादों को इसके दायरे से बाहर रखता है। इसका अर्थ यह है कि खेतों में खड़ी फसलेंचाहे वे कटाई से पहले हों या बाद मेंखाद्य श्रेणी में नहीं आतीं। इसलिए खाद्य सुरक्षा निरीक्षकों को किसानों के खेतों से सीधे फसल के नमूने लेने का कानूनी अधिकार नहीं है।

CCFI ने केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (CIB&RC) तथा FSSAI से मिलकर नियामक खामियों को दूर करने की अपील की है। कई फसलें जैसे पपीतारागीसहजन और करी पत्ते अभी तक अधिकारिक रूप से पंजीकृत कीटनाशकों या निर्धारित MRLs के दायरे में नहीं आतीं। इस कारण, जब ये फसलें कीट आक्रमण का शिकार होती हैं, तो किसानों के पास कोई स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं होता, जिससे खाद्य सुरक्षा मानकों का उल्लंघन हो सकता है।

2015 में प्रस्तावित फसल समूह पहल (Crop Grouping Initiative) अभी तक लागू नहीं हुई है, जिससे MRL निर्धारण अधूरा रह गया है।

CCFI ने यह भी कहा कि FSSAI को सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता (SPS) उपायों को घरेलू और आयातित दोनों तरह की खाद्य/चारा वस्तुओं पर समान रूप से लागू किया जाए, जैसा कि WTO के SPS समझौते में उल्लेखित है। जबकि यूरोपीय संघ (EU) और अमेरिका नियमित रूप से भारतीय कृषि उत्पादों को MRL उल्लंघन के आधार पर अस्वीकार कर देते हैं, वहीं FSSAI ने अब तक आयातित खाद्य/चारा उत्पादों को MRL उल्लंघन के आधार पर अस्वीकार करने का कोई रिकॉर्ड नहीं बनाया है। इससे नियामकीय असंगति को लेकर चिंता बढ़ रही है।

CCFI का जागरूकता अभियान

परामर्श बैठक के दौरान CCFI ने PHI और MRL अनुपालन को लेकर सभी हितधारकों को जागरूक करने की आवश्यकता पर बल दिया। बैठक में CCFI के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकारडॉ. जे.सी. मजूमदार और वरिष्ठ सलाहकारश्री हरीश मेहता भी उपस्थित थे, जिन्होंने इन अहम मुद्दों को दोहराया।

अंत में, सुश्री निर्मला पथरवाल ने कहा, “नीतिगत निर्णयकर्ताओं, नियामकों और उद्योग हितधारकों के बीच सहयोग आवश्यक है, ताकि कीटनाशक अवशेष निगरानी के लिए एक मजबूत, निष्पक्ष और पारदर्शी प्रणाली बनाई जा सके। हमें नियामकीय खामियों को दूर कर उपभोक्ता स्वास्थ्य और किसान हितों की रक्षा करनी होगी।”

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