राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

किसान करेंगे स्वस्थ भारत का सपना पूरा!

05 नवंबर 2024, नई दिल्ली: किसान करेंगे स्वस्थ भारत का सपना पूरा! – केंद्र सरकार ने जिस तरह स्वच्छ भारत मिशन शुरू कर देश में स्वच्छता के प्रति जागरूकता की अलख जगाई है और इसके परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। उसी तरह स्वस्थ भारत के लिये भी स्वस्थ भारत मिशन चलाया जाना चाहिये। हालांकि केंद्र सरकार ने ईलाज के लिये आयुष्मान योजना शुरू की है और इसके तहत पांच लाख रूपये तक का ईलाज करवाया जा सकता है। आयुष्मान भारत योजना से देश के लाखों लोग लाभान्वित भी हुए हैं लेकिन इस योजना में भ्रष्टाचार भी बड़े पैमाने पर हो रहे हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सरकार कितनी ही अच्छी योजना लागू कर दे, स्वार्थी तत्व कल्याणकारी योजनाओं के कार्यांवयन में गड़बड़ी कर अवैध रूप से कमाई का जरिया बना लेते हैं।

रोटी, कपड़ा और मकान प्रत्येक व्यक्ति की बुनियादी जरूरतें होती हैं। इसी के साथ यह भी कहा जाता है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन होता है। देश में तमाम स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के प्रयासों के बाद भी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ निरंतर बढ़ते जा रही है। सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या अत्यधिक होने के कारण निजी अस्पताल भी मरीजों से भरे रहते हैं। निजी अस्पताल का भारी-भरकम खर्च के बावजूद जान बचाने की खातिर मध्यम और गरीब वर्ग के मरीज भी निजी महंगे अस्पतालों में ईलाज करवाते हैं।

ऐसी स्थिति में सबसे उत्तम उपाय यह है कि बीमार ही न पड़ें और बीमार हो भी जाएं तो प्रारम्भिक अवस्था में पता चलने पर उसका ईलाज घरेलु स्तर पर ही हो जाए। रसायनमुक्त खाद्यान्न, संतुलित भोजन, स्वच्छ पेयजल, नियमित दिनचर्या, स्वच्छ पर्यावरण, योग, प्राणायाम आदि स्वस्थ रहने के कारगर तरीके हैं। जीवन के लिये सबसे अहम भोजन होता है और इसके लिये खाद्यान्न का उत्पादन खेतों में ही कर सकते हैं। रासायनिक खादों और जहरीली दवाओं के प्रयोग से खाद्यान्न में भी इनके कुछ अंश पाये जाते हैं। इसलिये शहरी क्षेत्रों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग, उच्च रक्तचाप, थायराईड जैसी बीमारियां होने लगी हैं।

यदि देश के नागरिकों को स्वस्थ रखना है तो सबसे ज्यादा ध्यान रसायनमुक्त खाद्यान्न, स्वच्छ पेयजल, प्रदूषणरहित पर्यावरण का वातावरण होना जरूरी है। इसके अलावा आयुर्वेद के तहत औषधीय पेड़-पौधों की पहचान और इनके उपयोग के बारे में भी जन – जन तक जानकारी पहुंचाना आवश्यक है। शहरी क्षेत्रों में तो स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है लेकिन स्वच्छ पर्यावरण दूर की कौड़ी है। खाद्यान्न तो ग्रामीण क्षेत्रों से ही प्राप्त होगा इसलिए सबसे अधिक जिम्मेदारी ग्रामीण क्षेत्रों पर आ जाती है, विशेषकर किसानों पर। यह सैद्धांतिक रूप से ठीक तो लगता है लेकिन इसके कार्यांवयन को लेकर अनेक कठिनाईयां उत्पन्न हो सकती हैं। सबसे ज्यादा ध्यान जैविक खेती को बढ़ावा देने पर देना होगा। हालांकि केंद्र सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास शुरू कर दिये हैं और इस साल एक करोड़ किसानों को जैविक खेती से जोडऩे का लक्ष्य भी रखा है।

सरकार को जैविक खेती के साथ औषधीय पौधों की खेती करने और इनके विपणन पर भी ध्यान देने की जरूरत है। यदि सरकार इस दिशा में गम्भीरता से कार्य करे तो निश्चित ही किसानों को आर्थिक रूप से फायदा होगा और उन्हें औषधीय पेड़-पौधों के गुणों के बारे में भी जानकारी हो जाएगी। वे भी इनका अपने स्तर पर भी उपयोग कर सकेंगे। इसके साथ ही प्राथमिक से माध्यमिक कक्षा तक के विद्यार्थियों को भी औषधीय पेड़-पौधों की जानकारी और उनके उपयोग के बारे में एक विषय के रूप में पढ़ाने की भी व्यवस्था की जानी चाहिये ताकि जब वे युवा होंगे तब तक उन्हें औषधीय पेड़-पौधों के बारे में काफी कुछ जानकारी प्राप्त हो चुकी होगी। आज भी 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है तो आठवीं कक्षा तक की आयु के बच्चों की संख्या भी अधिक ही होगी। मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया है कि छठवीं से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को महीने में 10 दिन बिना बस्ते के स्कूल जाना होगा। इन दस दिनों के दौरान ये बच्चे कुम्हार से मिट्टी के बर्तन बनाना, बढ़ई से काष्ठकारी और माली से बागवानी के गुर सीखेंगे। इसके साथ ही इन दस दिनों में बच्चों को ऐतिहासिक स्थलों और धरोहरों का भ्रमण कराया जाएगा, ताकि इतिहास के बारे में विद्यार्थी जान सकेंगे। इन प्रयोगों से यह न सिर्फ किताबी ज्ञान और ज्ञान के उपयोग के बीच की सीमाओं को कम करने में मदद मिलेगी बल्कि बच्चों का कार्य क्षेत्र के लिए जरूरी कौशल से भी परिचय कराएगा। इसके इन सबके साथ ही साथ ही इन बच्चों को औषधीय पेड़-पौधों की जानकारी भी दी जानी चाहिये ताकि वे प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनमोल उपहार के बारे में यह जान सके कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं बल्कि सामंजस्य बनाकर रखने में ही मानव की भलाई है। ये विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार अपना केरियर भी बना सकेंगे। उन्हें रोजगार की तलाश में अन्य शहरों की ओर पलायन करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यह प्रयोग स्वस्थ भारत की आधारशिला रखने में मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है। अंतत: इसका सबसे अधिक लाभ किसानों का ही होगा।

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