राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव

10 अगस्त 2024, नई दिल्ली: प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव – भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की नेटवर्क परियोजना जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) ने जलवायु परिवर्तन के कृषि पर प्रभाव का आकलन करने के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। इस अध्ययन में, आईसीएआर ने आईपीसी (अंतर-सरकारी पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) के प्रोटोकॉल के अनुसार 651 मुख्य रूप से कृषि प्रधान जिलों में से 573 जिलों के जोखिम और सुरक्षा का विश्लेषण किया है।   

जानकारी से यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादकता पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है। कंप्यूटर सिमुलेशन मॉडलिंग अध्ययनों के आधार पर, निम्नलिखित संभावित प्रभावों का अनुमान लगाया गया है, कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 में वर्षा आधारित चावल की पैदावार में 20 प्रतिशत और 2080 में 47 प्रतिशत की कमी आ सकती है, जबकि सिंचित चावल की पैदावार 2050 में 3.5 प्रतिशत और 2080 में 5 प्रतिशत, गेहूं की पैदावार 2050 में 19.3 प्रतिशत और 2080 में 40 प्रतिशत, खरीफ मक्का की पैदावार 2050 और 2080 में क्रमशः 18 से 23 प्रतिशत तक घटने की संभावना है। सोयाबीन की पैदावार 2030 में 3-10 प्रतिशत और 2080 में 14 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है।  

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए किए गए अनुकूल उपायों में विविध प्रकार की प्रौद्योगिकियाँ और रणनीतियाँ शामिल हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के प्रयासों के तहत, 151 जलवायु संवेदनशील जिलों के 448 गांवों में कई महत्वपूर्ण उपायों को लागू किया गया है। जिनमें जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन जैसे जलवायु अनुकूल किस्में; सीधे बीज वाले चावल (डीएसआर); कुशल सिंचाई प्रणाली; मृदा स्वास्थ्य कार्ड और पत्ती रंग चार्ट के अनुसार नाइट्रोजन का उपयोग; फसल अवशेषों को जलाने से बचना, फसल अवशेषों को मिट्टी में पुनर्चक्रण करना; जीवाश्म ईंधन की जगह बायोगैस और वर्मीकंपोस्टिंग; बेहतर चारा प्रबंधन प्रणालियों और सामुदायिक चारा बैंक के माध्यम से पशुओं से मीथेन उत्सर्जन को कम करना; कार्बन सिंक के रूप में कृषि वानिकी प्रणाली और टर्मिनल हीट स्ट्रेस से बचने के लिए जीरो टिल ड्रिल गेहूं का उपयोग करना शामिल हैं। देश के 651 कृषि महत्वपूर्ण जिलों में जिला कृषि आकस्मिक योजना (डीएसपी) तैयार की गई और उसे लागू किया गया।

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए किसानों को समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करना है। इस मिशन के अंतर्गत, सरकार किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील और स्थिर कृषि पद्धतियाँ अपनाने में मदद करती है। इस मिशन के तीन प्रमुख घटक हैं – वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (एडी); खेत पर जल प्रबंधन (ओएफडब्ल्यूएम); और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एनएचएम)। इसके बाद, मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी), परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई), पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडीएनईआर), प्रति बूंद अधिक फसल, राष्ट्रीय बांस मिशन (एनएचएम) आदि नए कार्यक्रम भी शामिल किए गए हैं। राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) का प्रमुख उद्देश्य कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला और अनुकूल बनाने के लिए अनुकूलन और शमन पद्धतियों को विकसित करना और लागू करना है।  

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