भारतीय मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए उठाए गए ठोस कदम
05 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: भारतीय मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए उठाए गए ठोस कदम – भारत में दूध उत्पादन कृषि क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बढ़ती जनसंख्या और दुग्ध उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए मवेशियों की उत्पादकता बढ़ाना आवश्यक हो गया है। इस दिशा में केंद्र और राज्य सरकारों ने कई योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं। इनमें आनुवंशिक सुधार, नस्लों के संरक्षण, और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए तकनीकी उपाय शामिल हैं।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन: देशी नस्लों का उन्नयन और संरक्षण
- कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत, मवेशियों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान का विस्तार किया गया है। अब तक 7.3 करोड़ मवेशियों को कवर किया गया है और 10.17 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान किए गए हैं, जिससे 4.58 करोड़ किसान लाभान्वित हुए हैं।
- संतति परीक्षण और नस्ल चयन: गिर, साहीवाल, मुर्राह और मेहसाणा जैसी उच्च उत्पादकता वाली नस्लों के सांडों के चयन और उत्पादन के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। अब तक 3,988 उच्च गुणवत्ता वाले सांड तैयार किए गए हैं।इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ): देशी नस्लों को बढ़ावा देने के लिए 22 आईवीएफ प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। इनमें 22,896 व्यवहार्य भ्रूणों का उत्पादन किया गया, जिससे 2,019 बछड़े-बछड़ियों का जन्म हुआ है।
- सेक्स-सॉर्टेड वीर्य: गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में सेक्स-सॉर्टेड वीर्य उत्पादन सुविधाएं स्थापित की गई हैं। अब तक 1.12 करोड़ सेक्स-सॉर्टेड वीर्य खुराकों का उत्पादन किया गया है।
- जीनोमिक चयन: मवेशियों और भैंसों के आनुवंशिक सुधार को गति देने के लिए ‘गौ चिप’ और ‘महिष चिप’ विकसित की गई हैं।
- मैत्री योजना: 38,736 कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियनों को प्रशिक्षित किया गया है, जो किसानों के द्वार पर सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
राष्ट्रीय पशुधन मिशन:
पशुओं की आहार गुणवत्ता सुधारने के लिए बंजर भूमि और वन क्षेत्र में चारा उत्पादन बढ़ाने के कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। पशुधन स्वास्थ्य के लिए खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) और ब्रुसेलोसिस जैसी बीमारियों के टीकाकरण को प्राथमिकता दी गई है। अब तक एफएमडी के लिए 99.38 करोड़ टीके और ब्रुसेलोसिस के लिए 4.36 करोड़ टीके लगाए जा चुके हैं।
राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम:
सहकारी समितियों के माध्यम से दूध उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन के लिए ढांचागत विकास पर जोर दिया जा रहा है। इस योजना के तहत डेयरी किसानों को प्रशिक्षण, खनिज मिश्रण और दूध की गुणवत्ता जांच के लिए सहायता प्रदान की जा रही है।
मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयां (एमवीयू):
28 राज्यों में 4,016 मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयां कार्यरत हैं। अब तक 58.38 लाख किसानों को इन सेवाओं का लाभ मिल चुका है। टोल-फ्री नंबर 1962 के माध्यम से किसानों को पशु चिकित्सा सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी):
पशुपालन किसानों को कार्यशील पूंजी के लिए केसीसी की सुविधा दी जा रही है। यह सुविधा व्यक्तिगत किसानों के साथ-साथ स्वयं सहायता समूहों और किरायेदार किसानों को भी उपलब्ध है।
आनुवंशिक सुधार और प्रजनन नीति:
देशी और विदेशी नस्लों के क्रॉस-ब्रीडिंग के जरिए आनुवंशिक क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए संतति परीक्षण और जीनोमिक चयन जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
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