किसानों को दी सलाह, ताकि मिल सके मदद
17 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: किसानों को दी सलाह, ताकि मिल सके मदद – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है ताकि मौजूदा शीतकालीन मौसम में किसानों को मदद मिल सके। गौरतलब है कि संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा साप्ताहिक रूप से सलाह जारी की जाती है। सलाह दी गई है कि शीतकालीन फसलों और सब्जियों की बुआई, सिंचाई के साथ ही रोग प्रबंधन के लिए सही दिशा निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।
सलाह: जिन किसानों की गेहूं की फसल 21-25 दिन की हो चुकी है, वे अगले पांच दिनों तक मौसम शुष्क रहने की संभावना को ध्यान में रखते हुए पहली सिंचाई करें। सिंचाई के 3-4 दिन बाद उर्वरक की दूसरी मात्रा डालना सुनिश्चित करें। तापमान को देखते हुए पछेती गेहूं की बुवाई जल्द से जल्द पूरी कर लें। बीज दर 125 किलो प्रति हेक्टेयर रखें और उन्नत प्रजातियों जैसे एच.डी. 3059, एच.डी. 3237, एच.डी. 3271, एच. डी. 3369, एच. डी. 3117, डब्ल्यू. आर. 544, पी.बी.डब्ल्यू. 373 आदि का उपयोग करें।
बुवाई से पहले बीजों को बाविस्टिन @ 1.0 ग्राम या थायरम @ 2.0 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। दीमक प्रभावित खेतों में क्लोरपायरीफास (20 ईसी) @ 5.0 लीटर/हेक्टेयर की दर से पलेवा के साथ या सूखे खेत में छिड़क दे और नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों की मात्रा 150, 60 व 40 किग्रा./ हेक्टेयर होनी चाहिये।
सरसों की फसल : देर से बोई गई सरसों की फसल में विरलीकरण और खरपतवार नियंत्रण का काम करें। औसत तापमान में कमी के चलते सरसों की फसल में सफेद रतुआ रोग की नियमित निगरानी आवश्यक है।
गेंदे की फसल में पुष्प सड़न रोग की निगरानी करें और सापेक्षिक आर्द्रता के अधिक रहने की संभावना को ध्यान में रखते हुए फसल का उचित प्रबंध करें। तैयार खेतों में प्याज की रोपाई से पहले सड़ी हुई गोबर की खाद और पोटाश उर्वरक का प्रयोग करें। इससे फसल को पर्याप्त पोषण मिलेगा और उपज अच्छी होगी।
हवा में नमी बढ़ने के कारण आलू और टमाटर की फसलों में झुलसा रोग होने की संभावना है। ऐसे में नियमित निगरानी करें और लक्षण दिखने पर डाइथेन-एम-45 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर का छिड़काव करें। किसानों को सलाह है कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाऐ। क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण ज्यादा होता है, जिससे स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारियों की संभावना बढ जाती है। किसानों को सलाह है कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें इससे मृदा की उर्वरता बढ़ती है, साथ ही यह पलवार का भी काम करती है। जिससे मृदा से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है। नमी मृदा में संरक्षित रहती है। धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डी कंपोजर कैप्सूल का उपयोग @ 4 कैप्सूल प्रति हेक्टेयर किया जा सकता है।
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