8 मार्च विश्व महिला दिवस: विकसित भारत के संकल्प के संदर्भ में
कृषि कौशल एवं महिला कृषक
लेखक: आशालता पाठक, मो. 7583027573
04 मार्च 2025, नई दिल्ली: 8 मार्च विश्व महिला दिवस: विकसित भारत के संकल्प के संदर्भ में – भारत के कृषि उत्पादन में महिलाओं की अहम भूमिका है। भारतीय संविधान में लिंग पर आधारित समानता के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी है परन्तु वस्तुस्थिति में विकास और नियोजन में ये व्यवस्था अपूर्ण रही। प्रारंभ में परिणाम मूलक प्रयास ना होने से महिलाओं की स्थिति निरंतर जटिलता पूर्ण होती गई। स्वतंत्रता के पश्चात चरणबद्ध नियोजित विकास में महिलाओं के उन्नयन हेतु कार्य किये गये लेकिन उनकी भागीदारी के अनुरूप नहीं विशेषकर कृषि क्षेत्र में। 1950 में संविधान लागू होने के पश्चात 1974 में पहली बार स्टेटस ऑफ वूमेन रिपोर्ट प्रस्तुत हुई, जिसके आधार पर आठवीं पंचवर्षीय योजना से महिलाओं को लक्ष्य में रखकर योजनाएं बनाने के कार्यक्रम आरंभ हुये। महिलाओं के लिए विकास के स्थान पर विकास में महिलाओंं का दृष्टिकोण आया।
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भारत की जीडीपी में कृषि का योगदान 18 प्रतिशत
कृषि व संबद्ध क्षेत्रों जैसे उद्यानिकी, पशु पालन, मत्स्य,रेशमपालन में महिलाओं की महती भूमिका है। लगभग 47 प्रतिशत महिलाएं कृषि मजदूर के रूप में कार्य करती हैं।
संयुक्त परिवारों के एकल परिवार में टूटने से जोत का आकार छोटा हुआ, साथ ही लघु सीमांत कृषक परिवारों में महिलाओं पर घर के साथ-साथ खेतों में काम करने की जिम्मेदारी भी आ गई। आजीविका हेतु पुरूषों के पलायन के कारण महिलाओं की भूमिका कृषि उत्पादन में अहम होती गई। परन्तु कृषक महिलाओं के कृषि कौशल विकसित करने के कार्य मिशन मोड में नहीं किये गये। मध्यप्रदेश के संदर्भ में बात करें तो, वर्ष 1995 से 2005 तक बाह्य वित्त पोषित योजना के माध्यम से व इसके पश्चात् वर्ष 2007-08 से 2019 तक सभी लघु सीमांत कृषक महिलाओं के लिए मध्यप्रदेश कृषि में महिलाओं की भागीदारी योजना के माध्यम से कृषि कौशल विकास का कार्य किया गया। 2020 से महिलाओं हेतु क्रियान्वित एकमात्र योजना बंद कर दी गई।
केन्द्र सरकार की योजनाओं में महिलाओं हेतु 33 प्रतिशत जेंडर बजट का प्रावधान है परंतु बजट का उपयोग शत प्रतिशत नहीं हो पा रहा है। जेंडर बजट को संवेदनशीलता से लागू किये जाने के लिये आवश्यक है कि महिलाएं कृषि उत्पादन प्रक्रिया में कौन से कार्य कर रही हैं उसका गुणात्मक एवं संख्यात्मक जानकारी का विश्लेषण कर कृषि कौशल विकास हेतू तकनीकियों का चयन किया जाए । कुछ वर्षों पूर्व धान की निंदाई में लगने वाला कोनो वीडर यंत्र सरकारी योजना के माध्यम से कृषकों को वितरित किये गये। धान में निंदाई का कार्य महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। यंत्र वितरण के समय यह जानकारी को ध्यान में रखते हुए कोनो वीडर उपयोग का प्रशिक्षण महिलाओं को दिया जाता तो,यंत्रों का शत प्रतिशत उपयोग होता और निंदाई जैसे कठिन कार्य को महिलाएं आसानी से कर पातीं। वर्तमान में महिलाओं के कौशल प्रशिक्षण हेतु किये जा रहे प्रयास सीमित हैं। प्रभावशाली मूल्यांकन तथा थर्ड पार्टी मूल्यांकन से विभाग के परहेज के कारण धरातल पर वस्तुस्थिति का आकलन नहीं हो पाता है।
महिलाओं के लिए कृषि कौशल विकास कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने के लिए, यह आवश्यक है कि उनकी आवश्यकताओं, भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को ध्यान में रखा जाए। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं-
- महिलाओं के कृषि कौशल विकास: महिलाओं को कृषि उत्पादन, पशुपालन, रेशम पालन, उद्यानिकी क्षेत्रों में कौशल विकास करने के लिए पृथक से कार्य क्रम मिशन मोड में चलाये जा सकते हैं।
- समूह बनाकर कार्य करना: महिलाओं के समूह बनाकर कार्य करने से उन्हें अपने कौशल को विकसित करने और अपने उत्पादों को बाजार में बेचने में मदद मिल सकती है।
- गौशाला संचालन और मोटे अनाजों का मूल्य संवर्धन: महिलाओं को गौशाला संचालन और मोटे अनाजों का मूल्य संवर्धन करने के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
- तिलहनी फसलों को बढ़ावा देना: महिलाओं को तिलहनी फसलों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है और छोटी छोटी तेल निकालने की इकाइयां स्थापित की जा सकती हैं।
- फल व सब्जी परिरक्षण: महिलाओं को फल व सब्जी परिरक्षण के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
- गौकाष्ठ व गोबर के उत्पाद संबंधी कौशल का विकास: महिलाओं को गौकाष्ठ व गोबर के उत्पाद संबंधी कौशल का विकास करने के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि सरकार उनके लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करे। इसके लिए कृषि कौशल विकास हेतु तकनीकियों का चयन करना आवश्यक है, जिससे महिलाएं अपने कौशल को विकसित कर सकें और कृषि उत्पादन प्रक्रिया में अपनी भूमिका को मजबूत बना सकें।
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