राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

भारत में 6 नई यूरिया फैक्ट्रियां खुलीं, किसानों को क्या मिलेगा फायदा?

27 मार्च 2025, नई दिल्ली: भारत में 6 नई यूरिया फैक्ट्रियां खुलीं, किसानों को क्या मिलेगा फायदा? – भारत सरकार ने यूरिया और उर्वरक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें नई निवेश नीति (एनआईपी)-2012 एक अहम हिस्सा रही है। इस नीति के तहत देश में कुल 6 नई यूरिया इकाइयां स्थापित की गई हैं। इनमें से 4 इकाइयां सार्वजनिक उपक्रमों की संयुक्त उद्यम कंपनियों (जेवीसी) के जरिए शुरू की गईं, जबकि 2 इकाइयां निजी कंपनियों ने लगाईं। यह जानकारी केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में दी।

कहां-कहां बनीं नई यूरिया इकाइयां?

एनआईपी-2012 की शुरुआत 2 जनवरी 2013 को हुई थी, जिसे बाद में 7 अक्टूबर 2014 को संशोधित किया गया। इसके तहत तेलंगाना में रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (आरएफसीएल) की रामागुंडम इकाई, उत्तर प्रदेश में हिंदुस्तान उर्वरक और रसायन लिमिटेड (एचयूआरएल) की गोरखपुर इकाई, झारखंड में सिंदरी इकाई, बिहार में बरौनी इकाई और राजस्थान में चंबल फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (सीएफसीएल) की गड़ेपान-III इकाई स्थापित की गई। हर इकाई की सालाना उत्पादन क्षमता 12.7 लाख मीट्रिक टन है। इन इकाइयों ने मिलकर देश की यूरिया उत्पादन क्षमता को 76.2 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ाया है। नतीजतन, 2014-15 में 207.54 लाख मीट्रिक टन की कुल उत्पादन क्षमता 2023-24 में बढ़कर 283.74 लाख मीट्रिक टन हो गई।

ये नई इकाइयां आधुनिक तकनीक पर आधारित हैं, जिसके चलते इन्हें ऊर्जा कुशल माना जा रहा है। सरकार का दावा है कि इससे उत्पादन लागत में कमी और पर्यावरण पर असर को कम करने में मदद मिली है। हालांकि, इन इकाइयों के संचालन और रखरखाव की चुनौतियों पर अभी व्यापक चर्चा बाकी है।

फॉस्फेटिक और पोटासिक उर्वरकों का हाल

यूरिया के अलावा, सरकार ने फॉस्फेटिक और पोटासिक (पीएंडके) उर्वरकों के लिए 1 अप्रैल 2010 से पोषक तत्व आधारित सब्सिडी नीति लागू की है। इस नीति के तहत सब्सिडी की राशि सालाना या छमाही आधार पर तय की जाती है, जो उर्वरकों की पोषक तत्व सामग्री पर निर्भर करती है। पीएंडके क्षेत्र को नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया है, जिसके बाद उर्वरक कंपनियां अपने हिसाब से अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) तय कर सकती हैं। कंपनियां बाजार की मांग और आपूर्ति के आधार पर उत्पादन और आयात का फैसला लेती हैं।

आत्मनिर्भरता की राह कितनी दूर?

हालांकि यूरिया उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अभी भी उर्वरकों के आयात पर निर्भर है। खासकर पीएंडके उर्वरकों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करना बड़ी चुनौती बना हुआ है। सरकार ने निवेश को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनाई हैं, लेकिन निजी क्षेत्र की भागीदारी और बाजार की गतिशीलता इस लक्ष्य को कितना प्रभावित करेंगी, यह देखना बाकी है।

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