कम्पनी समाचार (Industry News)

पाम ऑयल आयात से उद्योग और किसान चिंतित, IVPA ने उठाई ड्यूटी अंतर की मांग

07 जून 2025, नई दिल्ली: पाम ऑयल आयात से उद्योग और किसान चिंतित, IVPA ने उठाई ड्यूटी अंतर की मांग – भारत में रिफाइन्ड पाम ऑयल के आयात में पिछले पांच महीनों में 80% की भारी बढ़ोतरी ने खाद्य तेल उद्योग और किसानों के लिए चिंता बढ़ा दी है. इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (IVPA) ने सरकार से कच्चे और रिफाइन्ड खाद्य तेलों के बीच ड्यूटी अंतर को मौजूदा 8.25% से बढ़ाकर 20% करने की मांग की है. यह कदम रिफाइनिंग उद्योग को बचाने, तिलहन किसानों को उचित मूल्य दिलाने और रोजगार के अवसरों को सुरक्षित करने के लिए जरूरी बताया जा रहा है.

क्यों बढ़ रहा है रिफाइंड पाम ऑयल का आयात?

पाम ऑयल के प्रमुख निर्यातक देश, जैसे इंडोनेशिया और मलेशिया, अपनी नीतियों के जरिए रिफाइन्ड पाम ऑयल के निर्यात को बढ़ावा दे रहे हैं. इन देशों ने कच्चे पाम ऑयल पर भारी निर्यात शुल्क और टैक्स  लगाए हैं, जबकि रिफाइन्ड पाम ऑयल पर टैक्स कम या जीरो रखा है. नतीजतन, भारत में रिफाइन्ड पाम ऑयल का आयात तेजी से बढ़ा है, जिससे देश की रिफाइनिंग क्षमता का उपयोग घट रहा है. IVPA का कहना है कि यह स्थिति न केवल उद्योग के लिए खतरा है, बल्कि तिलहन की कम मांग और कीमतों में गिरावट के कारण किसानों के लिए भी नुकसानदायक है.

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आंकड़ों के मुताबिक, जून-सितंबर 2024 के दौरान भारत ने 4.58 लाख मीट्रिक टन रिफाइन्ड पाम ऑयल (RBD पामोलिन) का आयात किया, जो कुल पाम ऑयल आयात का 14% था. वहीं, अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 8.24 लाख मीट्रिक टन हो गया, जो कुल आयात का 30% है. इस वृद्धि ने रिफाइनिंग उद्योग की स्थिरता को खतरे में डाल दिया है. IVPA का कहना है कि रिफाइन्ड तेल के आयात से व्यापारियों और वितरण चैनलों को मामूली लाभ हुआ, लेकिन उपभोक्ताओं को इसका कोई खास फायदा नहीं मिला.

उद्योग और किसानों पर असर

IVPA ने बताया कि रिफाइन्ड पाम ऑयल के बढ़ते आयात से भारत में मूल्य संवर्धन (वैल्यू एडिशन) की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है. अगर देश में रिफाइनिंग को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे उप-उत्पाद जैसे पाम फैटी एसिड डिस्टिलेट (PFAD) और पाम स्टीयरिन की उपलब्धता बढ़ेगी. ये उत्पाद बेकरी, साबुन और ऑलियोकैमिकल्स जैसे सहायक उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में जरूरी हैं.

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वर्तमान में, कच्चे पाम ऑयल पर 5% एग्रीकल्चर एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस (AIDC) लगता है, जबकि रिफाइन्ड तेल को इससे छूट दी गई है. इससे ड्यूटी अंतर 12.5% से घटकर 8.25% रह गया है. IVPA ने सुझाव दिया है कि रिफाइन्ड तेलों पर 10-15% AIDC लगाया जाए, ताकि स्वदेशी रिफाइनिंग को बढ़ावा मिले और उद्योग को समान अवसर मिलें.

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नीतिगत सुधार की मांग

एसोसिएशन ने सरकार से रिफाइन्ड खाद्य तेलों को ‘प्रतिबंधित सूची’ में शामिल करने का भी आग्रह किया है, जैसा कि पहले भी किया जा चुका है. इससे आयात की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. IVPA का मानना है कि नीतिगत सुधारों से रिफाइनिंग सेक्टर को मजबूती मिलेगी, तिलहन की मांग बढ़ेगी, किसानों को उचित दाम मिलेंगे और 3 लाख करोड़ रुपये के इस उद्योग में हजारों प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष नौकरियां सुरक्षित होंगी.

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