राजस्थान में टपक सिंचाई विधि से टमाटर की खेती
11 दिसम्बर 2022, पोकरण । राजस्थान में टपक सिंचाई विधि से टमाटर की खेती – आंचलिक पोकरण में टपक सिंचाई विधि से टमाटर की खेती विषयक एकदिवसीय असंस्थागत प्रशिक्षण का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र पोकरण द्वारा किया गया । केंद्र के अध्यक्ष डॉ. बलवीर सिंह ने बताया की टमाटर की रोग मुक्त खेती से किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। उन्होंने बताया कि कम पानी वाले क्षेत्रों में सूक्ष्म सिंचाई पद्धति से टमाटर की खेती करने पर इसमें खरपतवारों एवं रोगों प्रकोप कम होने के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाले फल प्राप्त होते है। उन्होंने टमाटर में लगने वाले रोग जैसे फफूंद जनित, फल सडऩ, अल्टरनेरिया धब्बा, जीवाणु धब्बा, मुरझान रोग, विषाणु जनित रोग, पिछेता झुलसा इत्यादि के लक्षणों एवं रोकथाम के उपायों पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी। कार्यक्रम में केंद्र के सस्य वैज्ञानिक डॉ. के. जी. व्यास ने टमाटर की खेती में नियमित रूप से नमी की आवश्यकता पर जोर देते हुए बताया कि बूंद विधि से हफ्ते-10 दिन पर सिंचाई करते रहें तथा ध्यान रहे कि खेत में बहुत अधिक पानी न लगे, वरना पौधों में उकठा रोग लग जाता है। एक एकड़ खेत में टमाटर की खेती करने के लिए 50 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।
पौध से पौध की दूरी 15 सेमी. रखते हैं। प्रसार विशेषज्ञ सुनील शर्मा ने टमाटर की मांग एवं खपत छोटे-बड़े शहर, गांव सभी जगहों पर होने एवं इसका व्यावसायिक रूप अर्थात् सॉस, जैम आदि बनाकर अच्छी आय कमाई जाने की बात कही।
प्रशिक्षण में पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. राम निवास ढाका ने एक एकड़ हेतु गोबर की खाद 2 ट्राली एवं वर्मी कम्पोस्ट 50 किग्रा. की आवश्यकता होने की बात कही। उन्होंने नर्सरी में डाले गए बीज से उगे पौधों की लम्बाई 4 से 6 इंच की हो जाने पर अर्थात् 21 से 22 दिन के पौध, जिनमें 4 से 6 पत्ते आ जाएं तो इसकी रोपाई खेत में पंक्तिवार की जाती है। खेत में खरपतवार उगने से पौधों की वृद्धि पर असर पड़ता है। इसलिए समय-समय पर खेत की निराई करते रहते हैं, जिससे पौधों को बढऩे का पूरा समय व जगह मिले। विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्रोत होने के कारण टमाटर कई रोगों में फायदेमंद सिद्ध होता है।
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