उद्यानिकी (Horticulture)

जायद में लगायें तरबूज

लेखक: डॉ. प्रशांत सिंह कौरव द्य कृतिका अलावे, पीयूष श्रीवास्तव, सहायक प्राध्यापक, कृषि संकाय, आरकेडीएफ विश्वविद्यालय, भोपाल, kouravprashantsingh@gmail.com

17 फ़रवरी 2025, भोपाल: जायद में लगायें तरबूज –

खेती का समय

तरबूज ग्रीष्मकालीन की महत्वपूर्ण फसल है। इसके कच्चे फलों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता हैं और पके हुए फल मीठे, शीतल एवं गर्मी में लाभकारी होते हैं। तरबूज की खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तामिलनाडु, पंजाब, राज्यस्थान और उत्तर प्रदेश में नदियों की तलहटी क्षेत्र में पुरातन काल से ही प्रचलित है। वर्तमान में तरबूज खेती तकनीकी रूप से की जाने लगी है। इसकी खेती कम सिंचाई में की जा सकती है अत: इसकी बुआई फरवरी के अंतिम सप्ताह से मध्य मार्च तक सफलता पूर्वक की जा सकती है।

भूमि और जलवायु

तरबूज की सफल खेती के लिए नदी किनारे की रेतीली दोमट मृदा, कार्बनिक पदार्थ युक्त मध्यम काली, रेतीली दोमट, उचित जल निकास वाली एवं तटस्थ मृदा (6.5-7 पीएच) उचित माना जाता है। मृदा में घुलनशील कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट क्षार उपयुक्त नहीं होते है। तरबूज फसल की वृद्धि और विकास के लिए गर्म और शुष्क जलवायु (30 डिग्री सेल्सियस) उचित मानी जाती है।

भूमि की तैयारी

गहरी जुताई के समय अच्छी तरह से विघटित गोबर या कम्पोस्ट खाद 15-20 टन प्रति हेक्टे. मृदा में मिला कर खेत साफ, स्वच्छ एवं भुरभुरा तैयार करने से अंकुरण अच्छा होता है, भूमि की तैयारी के बाद 60 सें.मी. चौड़ाई और 15-20 सें.मी. ऊंचाई वाली क्यारियां (रेज्ड बेड) 6 फीट का अंतर पर तैयार की जाती हैं, इसकी बोआई पंक्ति में की जाती है। क्यारियों को 4 फीट चौड़ाई के 25-30 माइक्रॉन मोटे मल्चिंग पेपर (लेटरल्स) से मल्च करें, क्यारियों पर मल्चिंग पेपर में बुआई/रोपण के कम से कम एक दिन पहले 30-45 सें.मी. की दूरियों पर छेद कर लें, इससे मृदा की गर्म हवा को बाहर निकाल सकते हैं। बुआई/रोपण से पहले क्यारियों की सिंचाई करना फायदेमंद होता है।

किस्में

सुगर बेबी, अर्का ज्योति,दुर्गापुर मीठा,अर्का मानिक,पूसा बेदाना।

बीज दर एवं बीजोपचार

तरबूज की उन्नत किस्मों के लिए बीज दर 2.5-3 कि.ग्रा. और संकर किस्मों के लिए 850-950 ग्राम प्रति हेक्टे. पर्याप्त होती है। बुआई के पहले बीज को कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में लगभग तीन घंटे तक डुबोकर उपचारित कर सकते हंै या थायरम 3 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें उसके बाद उपचारित किए हुए बीजों को नम जूट बैग में 12 घंटे तक छाया में रखें और फिर खेत में बुआई करने से अंकुरण शीघ्र होता है।

सिंचाई

बुआई/रोपण का काम सुबह या शाम के समय करने के पश्चात 30 मिनिट टपक सिंचाई विधि से सिंचाई करना उचित होता है। सिंचाई प्रबंधन फसल वृद्धि और विकास के अनुसार करें। सामान्यत: पहले 6 दिन मृदा प्रकार अथवा जलवायु के अनुसार सिंचाई करें (10 मिनट/दिन), तरबूज फसल सिंचाई के प्रति बहुत संवेदनशील होती है। प्रारंभिक स्थिति में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। वृद्धि और विकास अवस्था के अनुसार सिंचाई की जरूरत बढ़ जाती है। सामान्यत: परिपक्वता की अवस्था में 5-6 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। अनियमित सिंचाई से फल फटना एवं अन्य विकृतियों की आशंका होती है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

जैविक उर्वरक एजेटोबेक्टर 5 कि.ग्रा., पी.एस.बी. 5 कि.ग्रा. और टाइकोडर्मा 5 कि.ग्रा./ हेक्टे. रासायनिक उर्वरक प्रयोग से लगभग 10वें दिन के बाद देना उचित माना जाता है। पानी में घुलनशील जैव उर्वरक टपक सिंचाई विधि से भी दे सकते हैं। जैव उर्वरक का रासायनिक उर्वरक के साथ प्रयोग न करें। तरबूज फसल के लिए रासायनिक उर्वरक के रूप में प्रति हेक्टर 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की मात्रा (यूरिया 109 कि.ग्रा.), 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस (एस.एस.पी. 313 कि.ग्रा.) एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश (एम.ओ.पी. 83 कि.ग्रा.) बुआई/रोपण के समय दिया जाना चाहिए, शेष नाइट्रोजन की मात्रा 50 कि.ग्रा. (यूरिया 109 कि.ग्रा.) को बुआई के 30, 45 एवं 60 दिनों में समान भाग में दें। खाद का उपयोग मृदा में उपस्थित आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता एवं मृदा परीक्षण पर निर्भर रहता है।

फलों की तुड़ाई एवं उत्पादन

सामन्यत: तरबूज का उत्पादन 90-110 दिन पश्चात प्रारम्भ हो जाता है, अत: जब फल टैप करने पर मंद ध्वनि उत्पन्न करता है या जमीन के स्तर पर फल की सतह हल्के पीले रंग की दिखाई देने लगती है एवं इसके फलों में लगा डंठल सूखा दिखाई देने लगे, तब फलों की तुड़ाई कर लें। मध्य भारत में तरबूज का औसत उत्पादन 350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • तरबूज जल भराव के प्रति संवेदनशील होता है इसलिए जल निकासी का उचित प्रबंधन करें।
  • मल्चिंग न होने की स्थिति के प्रत्येक 15-20 दिवस के अंतराल पर निराई गुड़ाई आवश्यक होती है।
  • तरबूज के किस्म चयन के समय कम अवधि की किस्मों का चयन करें जिससे खरीफ की बुआई प्रभावित न हो।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements