उद्यानिकी (Horticulture)

‘मालवी गेहूं की उन्नत किस्म एचआई-8737 ‘पूसा अनमोल

पोषक तत्व, प्रोटीन, आयरन, जिंक से भरपूर

कृषि एवं इससे संबद्ध क्षेत्र, भारत की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए आजीविका का मुख्य साधन है कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है यह सकल  घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के निर्धारण में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है, खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन आदि के संदर्भ में स्थायी कृषि समग्र ग्रामीण विकास के लिए आवश्यक है। वर्तमान में भारतवर्ष की जनसंख्या में लगातार वृद्धि को देखते हुए यह माना जा रहा है कि कुछ वर्षों में हम चीन सें जनसंख्या में अधिक होंगे इसलिए बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्नों का उत्पादन करना अनिवार्य हो गया है, इस उद्देश्य की पूर्ति  हेतु कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान के माध्यम से अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्मों का विकास करने का कार्य सतत जारी है। इन विभिन्न फसलों मे गेहूूँ एक मुख्य खाद्यान्न फसल है गेहूँ अनुसंधान के क्षेत्र में देश का मुख्य प्रतिष्ठित संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली का क्षेत्रीय केन्द, इन्दौर अग्रणी भूमिका निभा रहा है, मध्यभारत का गेहूँ अनुसंधान का यह एक मुख्य केन्द्र है इस केन्द्र से अधिक उत्पादन देनेे वाली कई नवीन किस्में निकाली गई हंै, वर्ष 2014 मे विकसित कि गई किस्म  एचआई 8737 मध्य भारत में अधिक प्रचलित है यह मालवी/कठिया गेहूं की एक उन्नत प्रजाति है जो भारत के मध्य क्षेत्र में उपज बढ़ाने में हितकारी होगी।

यह प्रजाति मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा एवं उदयपुर एवं उत्तरप्रदेश के झांसी संभाग के लिए विकसित की गई है। यह किस्म मालवी गेहूं का अधिक उत्पादन लगभग 65-70 क्विंटल/हे. देने वाली समय पर बुवाई हेतु एवं सिंचित क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो रही है।
एचआई 8737 (पूसा अनमोल) से कैसे उत्पादन अधिक लें : सामान्यत: हरेक फसल से अत्यधिक उत्पादन हेतु फसल के फसल शास्त्र को समझना अधिक आवश्यक है। निम्नलिखित तरीकों से एचआई 8737 से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। तथा कृषक भाई अधिक उत्पादन के लिए निम्न कर्षण क्रियाओं को अपनायें ।

खेती का चयन एवं तैयारी: खेत के चयन हेतु मृदा परीक्षण करवाना साथ ही मृदा में उचित जल निकास का प्रबंध होना आवश्यक है, गेहूं फसल के लिए मध्यम से भारी मृदा उचित है।

बीज उपचार: इस किस्म में बीज जनित बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, अत: कवकनाशी से बीज का उपचार न करें। परंतु यदि खेत में दीमक का संक्रमण है तब बीज का उपचार अनिवार्य है, दीमक के संक्रमण से सुरक्षा हेतु बीज का उपचार इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरोपाइरीफॉस की 5 एम.एल. मात्रा प्रति किलोग्राम बीज के लिये उपयुक्त है। पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए जैविक उर्वरकों जैसे एजेटोबेक्टर से गेहूं बीज को बोवाई पूर्व उपचारित करें ।

बीज की मात्रा/बोने की विधि: वैज्ञानिकों के अनुसार प्रति हेक्टेयर गेहूं की बुवाई के लिए 100-125 किलो बीज प्रर्याप्त होता है, यदि बुवाई एक बीघा में की जा रही है तब बीज की मात्रा 20-25 किलो उपयोग करें, बुवाई हेतु डबल सीडड्रिल का प्रयोग करें, जिसमे पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-22 से.मी. निर्धारित होना चाहिए। अच्छी अंकुरण एवं वृद्धि के लिए भूमि में 2.5 से 3.0 इंच गहराई में बीज की बुवाई आवश्यक है। 

उर्वरक की मात्रा एवं समय: फसलों से भरपूर उत्पादन के लिए संतुलित उर्वरकों का समय पर उपयोग करना आवश्यक है। गेहूं फसल के सम्पूर्ण जीवनकाल मे नत्रजन 120-140 किलो/हे. स्फुर 60-70 किलो एवं पोटेशियम 30-35 किलो गा्रम की आवश्यकता होती है। मृदा की उर्वरता, मृदा के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक गुणों के साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बनाये रखने हेतु उपरोक्त रसायनों कि कुल मात्रा का आधा से अधिक मात्रा को जैविक खाद जैसे गोबर कि खाद, कम्पोष्ट, कैचुआ खाद आदि सें पूर्ति करें। खाद व बीज को कभी भी मिलाकर नहीं बोयें इससे अकुंरण क्षमता प्रभावित होती है।

बीमारियां एवं कीड़े:  एचआई 8737 (पूसा अनमोल) में प्रारम्भ से ही बीमारियों एवं कीटों के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की गई है। यह किस्म तीनों गेरुवा (तना, जड़, पत्ती) रोगों के प्रतिरोधी है अत: कोई भी नियंत्रण उपाय की सिफारिश नहीं की गई है। केवल कृषक  आवश्यकतानुसार अन्य किस्मों की भांति नियंत्रण उपाय अपना सकते हैं।

सिंचाई: फसलों में सिंचाई, फसल की क्रांतिक अवस्था को ध्यान में रखते हुये करें प्राय: देखा गया है कि गेहूं की मुख्य क्रांतिक अवस्था पर व मुख्य जड़़ निकलते समय सिंचाई करें अन्यथा गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। गेहूं फसल  को सम्पूर्ण  जीवनकाल में 4-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जैसे:-

पहली सिंचाई – मुख्य जड़ निकलते समय 20-25 दिन पर
दूसरी सिंचाई- कल्ले निकलने पर 40-42 दिन पर
तिसरी सिंचाई – गांठ बनने पर 60-65 दिन पर
चौथी सिंचाई – बालियां निकलते समय 80-85 दिन पर
पांचवी सिंचाई – दानों में दूध पडऩे पर 100-105 दिन पर

एचआई 8737 में पकने की अवस्था पर सिंचाई करने का सुझाव नहीं दिया गया है इसी अवस्था पर यदि बरसात होती है तो उत्पादन एवं बीज की गुणवत्ता प्रभावित होती है। 

फसल कटाई: सामान्यत: एचआई -8737 किस्म 115 से 120 दिन मे पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है परन्तु परिपक्वता की अवधि वातावरणीय कारकों पर अत्यधिक निर्भर करती है।

उच्च गुणवत्ता के लक्षण: एचआई 8737 पोषक तत्वों सें भरपूर किस्म है इस किस्म को रोटी के साथ-साथ दलिया या सूजी, पास्ता बनाने में उपयोग किया जाए तो यह पोषण का महत्वपूर्ण आधार साबित हो सकती है।
गुणवत्ता निम्न प्रकार है।

प्रोटीन-12 प्रतिशत 
लौह तत्व – 38.5 पीपीएम
जिंक – 40 पीपीएम
पीलावर्णक -5.38 पीपीएम
समस्त उत्कृष्टता अनुकूल क्षमता – 7.3

मालवी गेहूं का महत्व : मालवी गेहूं का उपयोग खेती में करना कई मायनों मे महत्वपूर्ण है यह गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली किस्म है, यह किस्म मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की भरपाई करती है, मालवी गेहूँ में रोग प्रतिरोध क्षमता अधिक होने के कारण गेरूआ रोग फसल को हानि नहीं पहुंचाता है इसके साथ ही मालवी गेहूं से प्रोटीन, विटामिन से भरपूर विभिन्न पोष्टिक व्यंजन, दलिया, बाटी, सूजी एवं पोषण प्रदान करने वाले अनेक व्यंजन बनाये जा सकते हैं। 

मालवी गेहूं का अस्वस्थ एवं गर्भवती महिलाओं एवं आंगनबाड़ी में कुपोषित बच्चे को सेवन करवाने से कई बीमारियों से सुरक्षा मिलती है अत: यह कुपोषण निवारण में सहायक है।

खरपतवार नियंत्रण: प्राय: देखा गया है कि खेत में फसल के साथ खरपतवार उगने पर यह आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं जिससे उत्पादन मे गिरावट होने की संभावना होती है इसलिए उचित समय पर खरपतवारों का नियत्रंण करें।जब गेहूँ फसल 4 से 8 सप्ताह की हो तभी एक या दो बार हाथ से खरपतवारों को निकाले, रसायनयुक्त खरपतवारों के उपयोग से बचना चाहिए क्योंकि यह भूमि कि उर्वराशक्ति को कम करता है।यदि श्रमिकों की उपलब्धता कम है फिर खरपतवारीनाशी का प्रयोग गेहूं के मामा (फेलेरिस माईनर) या जंगली जई के लिए करें।पेन्डीमिथालिन खरपतवारनाशी का प्रयोग बुआई के 3-4 दिवस पर 100 एम.एल. सक्रिय घटक को 500 लीटर पानी मे मिलाकर करें यह मात्रा एक हेक्टेयर (2.5 एकड़)  के सभी प्रकार के खरपतवारों के लिए पर्याप्त है।जब फसल 2-4 पत्ती अवस्था पर होती है, इस समय चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु 2-4-डी नामक खरपतवारनाशी की 0.5 किलोग्राम सक्रिय घटक मात्रा को या फिर मेटसल्फयूरान मिथाईल की 4 ग्राम सक्रिय घटक मात्रा को प्रति हेक्टेयर उपयोग करेंयदि केवल सकरी पत्ती के खरपतवारों का नियंत्रण करना हो तो क्लोडिनाफॉप प्रोपरगाइल की 60 ग्राम मात्रा को एक हेक्टेयर के लिए उपयोग करें।यदि खेत में कई खरपतवार वनस्पतियां उग रही हो तो इनके नियंत्रण के लिए  सल्फोसल्फयूरान की 25 ग्राम सक्रिय तत्व की मात्रा को एक हेक्टेयर में स्प्रे करें।
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