Horticulture (उद्यानिकी)

वैज्ञानिक तरीके से करें अदरक की खेती

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  • डॉ. दीपक कुमार वर्मा
    कृषि महाविद्यालय, इंदौर (म.प्र.)

7 अप्रैल 2022,  वैज्ञानिक तरीके से करें अदरक की खेती अदरक एक शाकाहारी बारहमासी पौधा है, जिसके प्रकंद का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है। भारत अनादिकाल से ‘मसालों का घर’ रहा है। यह बीज मसालों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है, जिसकी खेती देश में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में व्यापक रूप से की जाती है। प्रमुख बीज मसालों की फसल की खेती राजस्थान, गुजरात राज्य में और कुछ हद तक मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में की जाती है। भारत लगभग 9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 5-6 लाख टन के उत्पादन के साथ बीज मसालों का उत्पादन करता है। मसालों के इस समूह का देश में कुल क्षेत्रफल और मसालों के उत्पादन का लगभग 36 प्रतिशत और 17 प्रतिशत हिस्सा है।

अदरक का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है, क्योंकि इसमें एंटीस्पास्मोडिक, उत्तेजक, टॉनिक और कार्मिनेटिव गुण होते हैं। यह पेट फूलना एटोनिक अपच और दस्त में प्रशासित है और हैजा के लिए अनुशंसित है। यूनानी-पद्धति में, यह एक अच्छा मुंह धोने वाला है और ‘जीवन रक्षक सुधा’ और ’आयुर्वेदिक चूर्ण’ जैसे एक एंटीलिमेंटिक आयुर्वेदिक के रूप में मुख्य रूप से निर्धारित किया जाता है, जहां सिर दर्द, सीने में दर्द और पीठ दर्द के इलाज के लिए ‘जीवन रक्षक सुधा’ की सलाह दी जाती है। कब्ज और एसिडिटी आदि के इलाज के लिए निर्दिष्ट ‘आयुर्वेदिक चूर्ण’। अदरक के उपरोक्त औषधीय और पोषण गुणों को देखते हुए इसे आमतौर पर प्रसव के बाद महिलाओं को दिया जाता है।

जलवायु

अदरक की फ़सल के लिए उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंध जलवायु की आवश्यकता होती है। गर्मियों का मौसम अदरक की फसल के लिए अधिक उपयुक्त होता है, क्योकि गर्मियों के मौसम में इसके कंद अच्छे से विकास करते हैं।

यह मध्यम तापमान वाले क्षेत्रों और हवा में नमी में अच्छी तरह से बढ़ता है। अदरक की खेती समुद्र तल से 1500 मीटर ऊपर की जाती है। लेकिन यह समुद्र तल से 300 मीटर से 900 मीटर की ऊंचाई पर अच्छी तरह से बढ़ता है। वर्ष भर नियमित अंतराल पर 1500 से 3000 मिमी वर्षा प्रति वर्ष उपलब्ध वर्षा क्षेत्रों का चयन किया जाना चाहिए। यदि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में खेती की जाए तो नियमित अंतराल पर पानी दें।

मिट्टी

यह फसल अच्छे जल निकास वाली चिकनी, रेतली और लाल हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है। खेत में पानी ना खड़ा होने दें क्योंकि खड़े पानी में यह ज्यादा देर बच नहीं पाएगी। फसल की वृद्धि के लिए 6-6.5 पीएच वाली मिट्टी अच्छी मानी जाती है। उस खेत में अदरक की फसल ना उगाएं जहां पिछली बार अदरक की फसल उगाई गई हो। हर साल एक ही जमीन पर अदरक की फसल ना लगाएं।

खेत की तैयारी

मार्च-अप्रैल में खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद खेत को खुला धूप लगने के लिए छोड़ दें। मई के महीने में डिस्क हैरो या रोटावेटर से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं। अनुशंसित मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट और नीम की खली का सामान रूप से खेत में डालकर पुन: कल्टीवेटर या देशी हल से 2-3 बार आड़ी-तिरछी जुताई करके पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें। सिंचाई की सुविधा एवं बोने की विधि के अनुसार तैयार खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लें। अंतिम जुताई के समय उर्वरकों को अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें। शेष उर्वरकों को खड़ी फसल में देने के लिए बचा लेना चाहिए।

बीज (कन्द) की मात्रा

अदरक के कन्दों का चयन बीज हेतु 6-8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिन्हित करके काट लें अच्छे प्रकन्द के 2.5-5 सेमी लम्बे कन्द जिनका वजन 20-25 ग्राम तथा जिनमें कम से कम तीन गाँठें हो प्रवर्धन हेतु कर लेना चाहिये।

बीज उपचार

प्रकन्द बीजों को खेत में वुबाई, रोपण एवं भण्डारण के समय उपचारित करना आवश्यक हैं। बीज उपचारित करने के लिये (मैंकोजेब+ मैटालैक्जिल) या कार्बेन्डाजिम की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर के पानी के हिसाब से घोल बनाकर कन्दों को 30 मिनट तक डुबो कर रखें। साथ ही स्ट्रप्टोसाइकिलन/प्लान्टो माइसिन भी 5 ग्राम की मात्रा 20 लीटर पानी के हिसाब से मिला लेते हंै जिससे जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम की जा सके। पानी की मात्रा घोल में उपचारित करते समय कम होने पर उसी अनुपात में मिलाते जाय और फिर से दवा की मात्रा भी। चार बार के उपचार करने के बाद फिर से नया घोल वनायें। उपचारित करने के बाद बीज कों थोडी देर उपरांत बोनी करें।

किस्में

भारत के विभिन्न हिस्सों में कई किस्में उगाई जाती हैं। चीन और रियो-डी-जेनेरियो अदरक की दो आयातित किस्में हैं। उगाई जाने वाली अन्य महत्वपूर्ण किस्में मारन, असम, हिमाचल, कुरुप्पमपदी, वायनाडलोकल, सुप्रभा, सुरुचि, सुरवी, हिमगिरी, वरदा, महिमा, राजस्थान आदि हैं। विभिन्न उत्पादों के लिए उपयुक्त सर्वोत्तम किस्में हैं; आमतौर पर उनका नाम उन इलाकों के नाम पर रखा जाता है जहां वे उगाए जाते हैं।

बुवाई का समय

बीज बोने से पहले 25-30 प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद और 4 किलो/हेक्टेयर स्यूडोमोनास क्यारियों के ऊपर मिश्रण फैला दें। यदि 2 टन/हेक्टेयर नीम की खली का चूर्ण फैला दें तो यह जड़ सडऩ रोग से बचाता है। फिर बीज को 20-25 सेमी की दूरी पर बोया जा सकता है। रोपण करते समय अधिकतम 5 सेमी की गहराई में रोपाई करें। बुवाई की तिथि से मिट्टी के आधार पर नमी 25 से 35 दिन तक बढऩे लगती है।

सिंचाई

रुके हुए पानी को निकालने के लिए इंटर-पंक्तियों में उचित जल निकासी चैनल उपलब्ध कराए जाने चाहिए। आवश्यकता पडऩे पर 4- 10 दिनों के अलग-अलग अंतराल पर सिंचाई की जाती है।

खाद और उर्वरक

अदरक को भारी खाद की आवश्यकता होती है। प्रकंदों को गड्ढों में रोपते समय अच्छी तरह गाय का सडा गोबर या कम्पोस्ट ञ्च 2.5 से 3 टन/एकड़ का प्रयोग बेसल खुराक के रूप में किया जा सकता है। साथ ही नीम की खली 800 किग्रा/एकड़ की दर से लगाना भी वांछनीय है।

खुदाई

अदरक की खुदाई लगभग 8-9 महीने रोपण के बाद कर लेना चाहिये जब भूरी पत्तियाँ नीचे से ऊपर तक सूखने के बाद खुदाई की जा सकती हैं। खुदाई करने के बाद प्रकन्दों से पत्तीयो, मिट्टी तथा अदरक में लगी मिट्टी को साफ कर दें। यदि अदरक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अन्दर खुदाई किया जाए। प्रकन्दों को पानी से धुलकर एक दिन तक धूप में सुखा लेें। सूखी अदरक के प्रयोग हेतु 8 महीने बाद खोदी गई है, 6-7 घन्टे तक पानी में डुबोकर रखें इसके बाद नारियल के रेशे या मुलायम ब्रश आदि से रगडक़र साफ कर लें।

भण्डारण

ताजा उत्पाद बनाने और उसका भण्डारण करने के लिये जब अदरक कड़ी, कम कडबाहट और कम रेशे वाली हो, ये अवस्था परिपक्व होने के पहले आती है। सूखे मसाले और तेल के लिए अदरक को पूण परिपक्व होने पर खुदाई करें अगर परिपक्व अवस्था के बाद कन्दों को भूमि में पड़ा रहने दें तो उसमें तेल की मात्रा और तीखापन कम हो जाएगा तथा रेशों की अधिकता हो जायेगी। तेल एवं सौंठ बनाने के लिये 150-170 दिन के बाद भूमि से खोद लें। अदरक की परिपक्वता का समय भूमि की प्रकार एवं प्रजातियों पर निर्भर करता है। गर्मियों में ताजा प्रयोग हेतु 5 महीने में, भण्डारण हेतु 5-7 महिने में सूखे ,तेल प्रयोग हेतु 8-9 महिने में बुवाई के बाद खोद लेें। बीज उपयोग हेतु जब तक उपरी भाग पत्तियों सहित पूरा न सूख जाये तब तक भूमि से नहीं खोदें क्योंकि सूखी हुयी पत्तियाँ एक तरह से पलवार का काम करती हैं। अथवा भूमि से निकाल कर कवक नाशी एवं कीट नाशियों से उपचारित करके छाया में सुखा कर एक गड्ढे में दबा कर ऊपर से बालू से ढक देें।

उपज

ताजा हरे अदरक के रूप में 100-150 क्विं. उपज/हे. प्राप्त हो जाती है। जो सुखाने के बाद 20-25 क्विं. तक आ जाती हैं। उन्नत किस्मों के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज 300 क्विं./हे. तक प्राप्त की जा सकती है। अदरक को खेत में 3-4 सप्ताह तक छोडऩा पड़ता है जिससे कन्दों की ऊपरी परत पक जाती है। और मोटी भी हो जाती हैं।

तत्व मात्रा
तत्व मात्रा
प्रोटीन 2.30 प्रतिशत
वसा 0.90 प्रतिशत
जल 80.90 प्रतिशत
कार्बोहाइड्रेट 12.30 प्रतिशत
खनिज  1.20 प्रतिशत
कैल्शियम लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100
फास्फोरस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/00
लौह लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/00

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