पपीते की उन्नत खेती की कृषि कार्यमाला
लेखक: डॉ. रागनी भार्गव, शशांक भार्गव, (सहायक प्रोफेसर) कृषि विद्यालय, एकलव्य विश्वविद्यालय, दमोह, (जूनियर रिसर्च फेलो) जैव प्रौद्योगिकी विभाग, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर, ragnifor1988@gmail.com
11 फ़रवरी 2025, भोपाल: पपीते की उन्नत खेती की कृषि कार्यमाला – पपीता एक लोकप्रिय और पोषण से भरपूर फल है, जो अपने तेज विकास और कम लागत वाली खेती के कारण किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसका औद्योगिक उपयोग भी बढ़ता जा रहा है। पपीते की खेती से न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है, बल्कि यह स्वास्थ्य और पोषण के लिए भी महत्वपूर्ण है।
पपीता एक उष्णकटिबंधीय फल है, जिसे दुनिया भर में उसकी मिठास, रस और औषधीय गुणों के लिए सराहा जाता है। यह फल विटामिन ए, सी और एंटीऑक्सीडेंट्स का प्रमुख स्रोत है। पपीते का वानस्पतिक नाम ष्टड्डह्म्द्बष्ड्ड श्चड्डश्चड्ड4ड्ड है, और यह मूलत: मैक्सिको और मध्य अमेरिका का पौधा है। इसकी खेती अब उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर की जाती है। पपीते के फल का उपयोग ताजे फल के रूप में, सलाद, जूस, जैम और औषधीय उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। इसका प्रमुख औद्योगिक उत्पाद पपेन (क्कड्डश्चड्डद्बठ्ठ) है, जो मांस को नरम करने, औषधीय और सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
प्रजातियां
रेड लेडी- यह एक उन्नत हाइब्रिड किस्म है। तेज़ी से फल देने वाली और अधिक उत्पादन क्षमता वाली। प्रति पौधा 50-60 किलोग्राम फल देता है।
पूसा ड्वार्फ- कम ऊंचाई वाला पौधा। छोटे और मध्यम आकार के फल देता है।
पूसा डेलिशियस- यह किस्म स्वादिष्ट और रसीले फलों के लिए प्रसिद्ध है। बेहतर औद्योगिक उपयोग के लिए उपयुक्त।
ताइवान 786- अधिक उत्पादन और बड़ी फलों वाली किस्म। इस किस्म के फल लंबाई में बड़े और वजनदार होते हैं।
कोयम्बटूर 2- यह किस्म दक्षिण भारत में लोकप्रिय है। इसकी खेती मुख्य रूप से व्यावसायिक उत्पादों के लिए की जाती है।
गाइनिया गोल्डन- छोटे आकार और जल्दी पकने वाली किस्म। घरेलू उपयोग और छोटे किसानों के लिए लाभदायक।
मिट्टी- पपीते की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 6.5 के बीच होना चाहिए। अत्यधिक पानी रुकने वाली या खारी मिट्टी से बचना चाहिए।
बीज की मात्रा और उपचार:
- प्रति हेक्टेयर लगभग 250-300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक (कार्बेंडाजिम) से उपचारित करें।
- बेहतर अंकुरण के लिए बीजों को गिबरेलिक एसिड के 50 पीपीएम घोल में 24 घंटे तक भिगोना चाहिए।
पौधरोपण का समय: पपीते की खेती के लिए वर्षा ऋतु (जून-जुलाई) और बसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) सबसे उपयुक्त समय हैं।
बुवाई की गहराई: बीजों को 1-1.5 सेमी गहराई पर बोना चाहिए। गहराई अधिक होने पर अंकुरण में समस्या हो सकती है।
पौधों के बीच दूरी
- पंक्ति से पंक्ति की दूरी-2.5 मीटर।
- पौधे से पौधे की दूरी- 2 मीटर।
- यदि हाई-डेंसिटी खेती की जा रही है, तो 1.5 & 1.5 मीटर की दूरी भी रखी जा सकती है।
बुवाई की विधि: बीजों को नर्सरी में उगाकर 25-30 दिनों के बाद मुख्य खेत में रोपाई करें।
पपीते के लाभ
पाचन में सुधार: पपीता एंजाइम पपेन और फाइबर से भरपूर है, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है।
इम्यूनिटी बूस्टर: विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स की अधिकता शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
हृदय स्वास्थ्य: पपीता कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है और दिल को स्वस्थ रखता है।
त्वचा और बालों के लिए: पपीते में मौजूद विटामिन ए और एंटीऑक्सीडेंट्स त्वचा को निखारते हैं और बालों की गुणवत्ता सुधारते हैं।
डायबिटीज नियंत्रण: इसमें प्राकृतिक मिठास होती है और यह शुगर स्तर को नियंत्रित करने में सहायक है।
तुड़ाई – जब फल का आकार पूर्ण हो जाए और वह हल्के हरे रंग का हो, साथ ही उसके सिरे पर थोड़ा पीला रंग आ जाए, तब तुड़ाई करनी चाहिए। पहली तुड़ाई रोपाई के 14-15 महीने बाद की जा सकती है। एक मौसम में 4-5 बार तुड़ाई की जा सकती है।
पपीते की वैज्ञानिक खेती किसानों के लिए एक प्रभावशाली विकल्प है। इसका पोषण, औद्योगिक और आर्थिक महत्व इसे एक महत्वपूर्ण फसल बनाता है। उन्नत किस्मों और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके किसान अधिक उत्पादन और बेहतर आय प्राप्त कर सकते हैं। पपीता न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि पर्यावरण और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
पपीते के रोग और उनका नियंत्रण
लक्षण: पौधे के तने पर पानी जैसे गीले धब्बे दिखाई देते हैं। यह लक्षण धीरे-धीरे पूरे पौधे में फैल जाते हैं। पौधे की पत्तियां पूर्ण रूप से विकसित होने से पहले ही गिर जाती हैं।
नियंत्रण: इस रोग को नियंत्रित करने के लिए 150 लीटर पानी में टेबुकोनाजोल 10त्न + सल्फर 65त्न डब्ल्यूजी टेबुसुल 1 लीटर पानी में 5 ग्राम टेबुसुल। बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए 500 ग्राम प्रति एकड़ – पत्तियों पर छिड़काव की सलाह दी जाती है। उत्पाद के साथ उपयोग के लिए विस्तृत निर्देश दिए गए हैं। छिड़काव करें।
पाउडरी मिल्ड्यू
लक्षण: पत्तियों के ऊपरी हिस्से और मुख्य तने पर सफेद चूर्ण जैसा पाउडर दिखाई देता है। यह पौधे से पोषण लेकर उसे कमजोर कर देता है। अधिक संक्रमण की स्थिति में पत्तियां झडऩे लगती हैं और फल समय से पहले पक जाते हैं।
नियंत्रण: थायोफिनेट मिथाइल 70त्न ङ्खक्कञ्च 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
जड़ सडऩ या विल्ट:
लक्षण: यह रोग जड़ों को सड़ा देता है, जिससे पौधे मुरझा जाते हैं।
नियंत्रण: SAAF (कार्बेन्डाजिम 12त्न + मैंकोजेब 63WP@) 5ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर ड्रेंचिंग करें।
लक्षण: पौधों की शीर्ष युवा पत्तियों पर यह लक्षण दिखाई देता है।
नियंत्रण: इस रोग को नियंत्रित करने के लिए 150 लीटर पानी में इमिडाक्लोप्रिड 1 मिली लीटर प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
कीट और उनका नियंत्रण
एफिड
लक्षण: यह कीट पौधों का रस चूसता है और पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है। यह पौधों में रोग फैलाने में भी सहायक होता है।
नियंत्रण: इस कीट को नियंत्रित करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 1 मिली लीटर प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
फ्रूट फ्लाई
लक्षण: मादा कीट अपने अंडे फल के भीतर देती है। अंडे से निकलने के बाद लार्वा फल के गूदे को खाकर फल को नष्ट कर देता है।
नियंत्रण: इस कीट को नियंत्रित करने के लिए प्रोफेनोफास 1-2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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