किसानों की सफलता की कहानी (Farmer Success Story)

गांव की मिट्टी की खुशबू विदेश से खींच लाई नलखेड़ा के रामपाल को

गांव की मिट्टी की खुशबू विदेश से खींच लाई नलखेड़ा के रामपाल को

महानगरों की बेरुखी ने बढ़ाई खेती के प्रति इस युवक की दिलचस्पी

शहर की इस भीड़ में चल तो रहा हूं
जेहन में पर गांव का नक्शा रखा है

नामी शायर की लिखी इन पंक्तियों को हकीकत में बदलने के लिए मध्य प्रदेश के अगरमालवा जिले के रामपाल विदेशी नौकरी छोड़ कर अपने गाँव लौट आए।

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आगर मालवा जिले में बगलामुखी धाम नलखेड़ा के पास छोटे से गांव भैंसोदा के रहने वाले रामपाल तेजरा पाटीदार अफ्रीकी देश में अच्छे पद पर काम करते थे। 22 मार्च को जनता कफ्र्यू लागू होने के साथ कोरोना महामारी से कुछ महीनों पहले वो अपने गांव आए थे। पिछले कुछ दिनों से कई कंपनियों में जारी कॉस्ट कटिंग ने उन्हें भी परेशान कर रखा था। 24 मार्च को देश भर में लॉकडाउन की घोषणा हो गई और रामपाल ने पूर्ण रूप से तय कर लिया कि वो अब हमेशा अपने गांव में ही रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी से प्रभावित रामपाल बताते हैं, मेरी नौकरी पर तो कोई खतरा नहीं था लेकिन मेरे कई परिचितों की नौकरी पिछले कुछ महीनों में चली गई। वो लोग बहुत परेशान हैं। तभी से मेरे दिमाग में आ रहा था कि क्यों न गांव में ही रहकर कुछ काम किया जाए। मेरे पास जमीन भी है और गांव में घर भी है। कुछ दिनों बाद वापस अफ्रीकी देश लौटकर जाना था लेकिन कोरोना महामारी से समूचे विश्व को लडख़ड़ाते देखने के बाद अपने हुनर को हिंदुस्तान में दिखाने के लिए संकल्प लिया और यहीं से मैंने अपने बॉस को इस्तीफ़ा भेज दिया और अब गांव में ही रहूंगा और खेती करूंगा।

घरों में ही रोजगार के साधन

परियोजना संचालक आत्मा ए. के. तिवारी के निर्देशानुसार विकासखंड तकनीकी प्रबंधक आत्मा वेदप्रकाश सेन द्वारा कृषक संगोष्ठी में भाग लेकर उससे प्रेरित होकर 9-10 बीघा जमीन में नयी तकनीकी से खेती एवं नर्सरी तैयार कर रहे हे उन्होंने बताया की बीटीएम श्री सेन समय-समय पर खेत पर आकर मार्गदर्शन देते रहते हैं। 30 वर्षीय रामपाल को खेती करने का कोई अनुभव नहीं है, भले ही उनका बचपन गांव में बीता हो। बावजूद इसके, वो खेती की और क्यों और कैसे रुख़ कर रहे हैं? इस सवाल पर वो बताते हैं, नौकरी छोड़कर गांव आने का फ़ैसला इतना आसान नहीं है। व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई दिक्क़त भी नहीं थी नौकरी में। लेकिन अपने मां-पिताजी, परिवार, इष्ट मित्रों, भारत माता और अपनी गांव की वह मिट्टी की खुशबू ने मुझे विदेश के लग्जरी जीवन मैं व्यतीत कर रही नौकरी छोडऩे पर विवश किया और फिर उसके बाद पिछले 2 महीनों में पलायन की त्रासदी जो हम लोगों ने देखी, उससे ऐसा लगा कि क्यों न अपने घरों में ही रोजगार के साधन ढूंढ़े जाएं। विदेश से लौटने के बाद अपने गांव में लंबा समय बिता चुके रामपाल मानते हैं किसानी क्षेत्र में आधुनिकता के साथ लेकिन यू-ट्यूब और अन्य माध्यमों से कुछ अलग हटकर खेती करने की दिशा में योजना बना रहे हैं। कहते हैं कि इसी साल से इसकी शुरुआत कर देंगे।

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भजन मंडली से आधुनिक खेती की कंपनी तक

रामपाल गांव और उसके आसपास के क्षेत्रों में होने वाली सुंदरकांड और भजन के कार्यक्रमों में भी काफी रुचि लेते हैं वह बकायदा प्रोफेशनल यंत्रों को बखूबी बजा लेते हैं। मृदुभाषी रामपाल ने चाहे विदेशों में रहकर नौकरी की हो मगर आज बाक़ायदा गांव और किसानी के रंग में रंग कर संतरा, हरी मिर्ची, सब्जियां अच्छी क्वालिटी के गेहूं, सोयाबीन की खेती के साथ इसकी शुरुआत भी कर दी है। रामपाल बताते हैं कि जब मैं विदेश में था तो समुद्र किनारे बैठे-बैठे काफी दिनों तक इस बारे में सोच रहा था कि दस-बारह घंटे की मेहनत के बाद 40-50 हज़ार रुपया महीना कमाने से अच्छा है कि गांव में ही रहकर खेती और कुछ अन्य रोजगार किए जाएं। यहां जीवन-यापन भी अच्छे से होगा और सुकून भी रहेगा। लॉकडाउन के बाद तो जैसे मुझे मौका ही मिल गया। आगे बताते हैं कि आज वर्तमान में वे अपने गांव के साथियों के साथ मिलकर आधुनिक खेती में अपने पिता का हाथ बटा रहे हैं और भविष्य में वह अपनी खेती और गांव के आसपास के अन्य किसानों को ऑनलाइन माध्यम से जोड़कर अपने क्षेत्र में खेती में एक नई क्रांति करने का प्रयास करेंगे।

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जॉब सिक्योरिट

रामपाल कहते हैं, किसी भी प्राइवेट सेक्टर में 10-12 घंटे काम करने के बाद किसी तरह की जॉब सिक्योरिटी नहीं है। गांव में मेरे यहां अच्छी ख़ासी खेती है। मेरे पिता जी खेती करते हैं। हम लोगों को बचपन से ही नौकरी करने के लिए ही पढ़ाया जाता है। यह कभी नहीं सिखाया गया कि हम भी नौकरी देने वाले बन सकते हैं।

मैं ख़ुद भी गांव में आत्मनिर्भर बनना चाहता हूं और अपनी अगली पीढ़ी को भी यही बताना चाहता हूं कि वो जॉब देने की सोचें. रामपाल बताते हैं, मैं सीधे तौर पर भी और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर भी कऱीब कई एकड़ ज़मीन पर खेती करता हूं. मेरे साथ दर्जनों किसान जुड़े हुए हैं और सभी काफ़ी पढ़े-लिखे युवा हैं. खेती में मेहनत और तकनीक के साथ जो आमदनी है वह बाहर किसी भी नौकरी की तुलना में कहीं अच्छी है >

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