Editorial (संपादकीय)

अतिरिक्त बीज के उपयोग पर बंदिश जरूरी

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23 अक्टूबर 2022, भोपाल ।  अतिरिक्त बीज के उपयोग पर बंदिश जरूरी – वर्तमान में खेती को लाभकारी धंधा बनाने की कोशिश सभी संबंधितों द्वारा की जा रही है। खरीफ निपटने की कगार पर है, रबी दरवाजा खटखटाने वाला है, खेती को लाभकारी बनाने के लिये आदान पर होने वाले खर्च पर यदि नकेल लगा ली जाये तो खेती स्वयं से लाभकारी हो जायेगी। बंडों में भरे अनाज को बीज समझना सरासर गलत होगा अनुसंधानों के आंकड़े बतलाते हंै कि बंडों में भरे अनाज को केवल छन्ना लगाकर छान लें सूपड़ों से पछार कर मोटे-मोटे सुडोल दाने अलग कर लें और कुछ भी नहीं करवायें तो कम से कम दो प्रतिशत की अतिरिक्त उपज जरूर मिल सकेगी। छने-छटे बीज का उपचार यदि फफूंदनाशी से कर दिया जाये और बुआई कर ली जाये तो अंकुरण अच्छा होगा और अतिरिक्त उत्पादन मिल सकेगा। आखिर बीजोपचार क्यों किया जाये क्योंकि अनाज पर अनेकों प्रकार की फफूंदी रहती है जो हमें नहीं दिखती है और अनौपचारित बीज यदि बो दिया जाये तो ये फफूंदी अंकुरण क्रिया में बाधक होगी और एक बार यदि अंकुरण ही प्रभावित हो गया तो बात शुरू में ही बिगड़ जायेगी। खेत बीज में ही खराब हो जायेगा, कम अंकुरण कम पौधे प्रति इकाई, कम पौधे और कम कंसे, कम उत्पादन अतएव ये छोटी-छोटी कम पैसे वाली तकनीकी का अंगीकरण सभी कृषक करें तो क्या कहने अतएव अनाज को उपचारित करके उसे बीज की श्रेणी में लाना ही होगा। कृषि हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। गेहूं के बीज का अंकुरण परीक्षण तो हम बीच में राखी, भुजलिया के समय ही कर लेते हैं सदियों से निभाई जाने वाली यह प्रथा हमारी कृषि से कितनी अधिक जुड़ी है जाने-अंजाने सभी कृषक गांव-गांव में इसे करते हैं और निश्चित हो जाते हैं कि उनका गेहूं खराब नहीं हो रहा है बुआई लायक ठीक रहेगा। अन्य फसलों में जैसे चना, मटर, मसूर, सरसों इत्यादि भी समय-समय पर ऐसे परीक्षण संभव है। कुसुम  के बीज का छिलका कड़ा होता है यदि 24 घंटे पानी में भिगोकर निकाल कर, सुखाकर बीजोपचार करके लगाने से अच्छा अंकुरण-अच्छी पौध संख्या प्राप्त की जा सकती है। संतोषजनक पौध संख्या आपेक्षित उत्पादन की मुख्य बात होती है इस कारण कभी भी अतिरिक्त बीज प्रति इकाई क्षेत्र में नहीं डालना चाहिए केवल सिफारिश की मात्रा का ही उपयोग हो जैसे गेहूं में प्रति हेक्टर 100 किलो बीज डालना चाहिए परंतु देखा ऐसा गया है कि सामान्य रूप से देवड़ा और दुगना बीज डालकर प्रति इकाई क्षेत्र में कमजोर पौधे बना डालते हंै इससे उत्पादन प्रभावित होता है भूमि में पोषक तत्वों के लिए संघर्ष पैदा हो जाता है इसलिये अतिरिक्त बीज के उपयोग पर बंदिश जरूरी है। इस वर्ष अच्छी वर्षा हुई है भूमिगत जलस्तर बढ़ा है मिट्टी में अच्छी नमी है इस बात  का लाभ लेकर बारानी खेती के कृषकों को चाहिए कि सिफारिश के अनुसार भरपूर खाद, उर्वरक का उपयोग करंे ताकि अच्छा उत्पादन मिल सके। उर्वरक का उपयोग करना जरूरी है परंतु उससे भी जरूरी है उर्वरक की स्थापना की, उर्वरक के स्थापना हर हाल में बीज के नीचे होना चाहिए कभी भी बीज उर्वरक मिश्रण नहीं किया जाये ना ही उर्वरक को बिखेर कर दिया जाये। विशेषकर राखड़ खाद (स्फुर) को नहीं बिखेरें अन्यथा उसकी उपयोगिता नहीं ले पायेगें लागत बेकार चली जायेगी। कम लागत वाली तकनीकी अनाज को बीज बनाना, बीजोपचार करना तथा उर्वरक की स्थापना ठीक से करके अधिक उत्पादन लिया जाना असंभव नहीं है।

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