सोया मिल को सीधे किसानों से सोयाबीन खरीदने की अनुमति मिले
(डॉ. रवीन्द्र पस्तौर ) अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के सोयाबीन मिल मालिकों के संगठन ‘सोपा’ द्वारा शासन से यह माँग की गई कि सोया मिल को सीधे किसानों से सोयाबीन खरीदने की अनुमति दी जाए। यह एक सराहनीय मांग है जो सोयाबीन उत्पादक तथा प्रोसेसर दोनों के लिए इस व्यापार में बने रहने के लिए अनिवार्य है। |
मध्यप्रदेश में लगभग 55 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की फसल होती हैं। जो भारत में पहले स्थान पर है। सोयाबीन फसल सरकार द्वारा नोटीफाईड फसल होने से इस की खरीद एवं बिक्री केवल मंडी के माध्यम से ही की जा सकती हैं। इस कारण सभी उपज को मंडी यार्ड में किसानों को लाना होता है। लगभग 50 लाख टन सोयाबीन किसानों द्वारा मंडी में लाया जाता है। यदि किसान का प्रति क्विंटल औसतन रू. 50 का व्यय होता है तो हम आसानी से जान सकते हैं कि किसान अपनी उपज मंडी में विक्रय करने पर हर साल कितना व्यय कर रहा है। इसी तरह सोयाबीन मिल को मय मंडी टैक्स के लगभग रू. 142 प्रति क्विंटल का व्यय करना होता है। इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हमारे सोयाबीन उत्पादों का मूल्य अन्य देशों की तुलना में अधिक हो जाता है।
मंडी में सरकार किसान को तीन तरह की सुरक्षा देती है जिसमें किसान की उपज का सही दाम, सही तुलाई तथा समय पर भुगतान। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मंडी में किसानों को यह तीनों सुरक्षाएं मिल रही हैं या नहीं? पहले बात करते हैं खुली नीलामी की। जब किसानों से व्यापारी माल लेते है तो मंडी में खुली नीलामी की जाती है। नीलामी में बोली लगाने के पहले प्रत्येक व्यापारी किसानों की उपज का सेम्पल हाथ में उठा कर क्वालिटी का अपने मन में अनुमान लगाते हैं। लेकिन वे किसानों को कभी यह नहीं बताते है कि उनका फ़ेयर एवरेज क्वालिटी का फार्मूला क्या है, जब कि सोयाबीन मिल द्वारा यह पहले से निर्धारित होता हैं। जिस में यह निर्धारित किया रहता है कि प्रत्येक ग्रेड के सोयाबीन में कितनी नमी, कितना कचरा तथा कितना दागी या कटे-फटे दाने होंगे ? मिल मालिक प्रतिदिन उनके आढ़तियों को प्रत्येक ग्रेड की अधिकतम कीमत तथा भुगतान की शर्तों को भी बताते है। मंडी में व्यापारी इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए बोली लगाते हैं। जिसमें वह उनके द्वारा होने वाले व्यय तथा लाभ की राशि का ध्यान रखते हैं। जब मिल द्वारा पूर्व से अधिकतम क्रय मूल्य निर्धारित होता है, तो खुली नीलामी महज एक औपचारिकता ही रह जाती है।
यदि मंडी प्रशासन मिल द्वारा निर्मित फेयर एवरेज ग्रेडिंग को बिक्री का आधार बना दे तथा यह किसानों को पूर्व से बता दिया जाए तो किसानों की जिम्मेदारी होगी कि वह अपनी उपज को क्वालिटी मापदंड के हिसाब से ग्रेड कर हर ग्रेड का माल अलग-अलग तैयार कर बेचेंगे। यह प्रक्रिया उसी तरह होगी जैसे दूध फेट कंटेंट के आधार पर खरीदा बेचा जाता है। इस प्रक्रिया में किसानों को उपज की गुणवत्ता सुधारने का प्रोत्साहन रहेगा। यह नीलामी किसानों के सेम्पल के आधार पर होगी जिसमें पूरी उपज मंडी में लाने की आवश्यकता नहीं होगी और मंडी को ग्रेन लेस मंडी बनाया जा सकता है।
दूसरी बात सही तौल की है आज मंडी में किसानों की उपज नीलामी के बाद व्यापारी द्वारा क्विंटल – क्विंटल कर तौल की जाती है जिसमें किसानों को प्रति क्विंटल लगभग 300 से 400 ग्राम का नुकसान होता है। यदि सेम्पल से बिक्री के बाद उपज की डिलीवरी सीधे मिल के गोदाम में हो तो इलेक्ट्रॉनिक तौल काटे पर एक बार भरी ट्रॉली तौल कर तथा दूसरी बार खाली ट्रॉली तौल कर माल को एक बार में तौला जा सकता है। इससे किसानों को प्रति क्विंटल पर हो रहे नुकसान से बचाया जा सकता है तथा उपज के नुकसान तथा बार -बार की उठा -धरी के व्यय को कम किया जा सकता है। तीसरी बात भुगतान यदि क्रेता द्वारा राशि सीधे किसानों के खातों में तत्काल जमा करा कर बार -बार नकदी निकालने -गिनने आदि के व्यय को कम किया जा सकता है। इससे किसानों के सिविल स्कोर को बैंकों में सुधारने में मदद होने से ऋण लेने की समस्याओं के समाधान के अवसर पैदा होंगे। इस तरह से मध्यप्रदेश की बुरहानपुर की मंडी में केले की बिक्री अनेक सालों से सफलतापूर्वक प्रचलित है।
इस व्यवस्था को दूसरी मंडियों में आसानी से लागू किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में सौदा पत्रक की कानूनी प्रक्रिया पूर्व से निर्धारित है जिसके तहत आईटीसी को मंडी के बाहर सोयाबीन खरीदने की अनुमति पूर्व से ही है। इसके लिए मंडी अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता नहीं है। अत: सोपा की मांग सोयाबीन मिल तथा किसानों के हित में है। इससे इस व्यवसाय को डूबने से बचाया जा सकता है। किसानों का सोयाबीन के स्थान पर मक्का, धान तथा दलहन फसलों की तरफ रुझान तेजी से बढ़ रहा है जिससे आगे मिलों को पर्याप्त मात्रा में माल मिलने की गति को कम किया जा सकता है। मंडी के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को तेज किया जा सकता है।
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