Editorial (संपादकीय)

रबी सरसों की खेती

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मृदा व उसकी तैयारी
सरसों की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त होती है। भूमि का पी.एच. मान 7-8 के बीच अर्थात् उदासीन से हल्की क्षारीय मिट्टी सरसों की खेती के लिए अच्छा रहता है। सरसों की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। जिसके लिए खरीफ में ली गई फसल की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करनी चाहिए तथा इसके बाद कल्टीवेटर या रोटावेटर से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। साथ ही उत्पादन बढ़ाने के लिए 2-3 किग्रा. एजेटोबैक्टर एवं पी.एस.बी. कल्चर को 50 किग्रा सड़ी हुई तैयार गोबर की खाद या केंचुआ खाद में मिलाकर अंतिम जुताई से पूर्व खेत में डालना चाहिए।
किस्म
उन्नत किस्मों के प्रयोग से 20-25 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती है तथा इन किस्मों पर रोग व कीट का कम प्रकोप होता है। प्रचलित उन्नत किस्में – वरदान, वरूणा (टी-59), पूसा बोल्ड, पूसा जय किसान, बसुन्धरा (आर.एच.-9304), अरावली (आर.एन.-393), लक्ष्मी, स्वर्ण ज्योति, आशिर्वाद, कृष्णा, क्रान्ति, जवाहर-1 आदि प्रमुख हैं।
बीज की मात्रा
सरसों की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 5-6 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। बीज को खेत में बोने से पूर्व फफूंदनाशी रसायन जैसे कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज या थायराम 2.5 ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
बुवाई का समय
सरसों की बुवाई के लिए समय पर बुवाई करना खेती में सफलता की पहली सीढ़ी होती है। सरसों की बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिए। सरसों की बुवाई कतारों में 45 सेमी. और पौध से पौध की दूरी 15-20 सेमी. की दूरी पर करना चाहिए।
खाद व उर्वरक
सरसों की बुवाई के 3 से 4 सप्ताह पहले 10 से 15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में डालकर खेत की तैयारी करनी चाहिए। राई व सरसों की सिंचित फसल में 80 किग्रा नत्रजन, 30 से 40 किग्रा स्फुर व 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। भूमि में जिंक की कमी होने पर 5-10 किग्रा. जिंक सल्फेट के माध्यम से बुआई के समय देना बहुत लाभप्रद होता है। इसके साथ ही नत्रजन को अमोनियम सल्फेट तथा सिंगल सुपर फॉस्फेट के रूप में देने से फसल को सल्फर तत्व की पूर्ति हो जाती है, जिससे उपज व बीज में तेल की मात्रा दोनों में वृद्धि होती है।
सिंचाई
सरसों की फसल में 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई बोवाई के 30 से 40 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई 70-80 दिन की अवस्था में करनी चाहिए। सरसों में पुष्पागम और शिम्बी लगने का समय सिंचाई की दृष्टि से क्रांतिक अवस्था है, इस अवस्था पर नमी की कमी होने से दाने अस्वस्थ हो जाते हैं तथा उपज में तेल की मात्रा में भी कमी हो जाती है।
निराई-गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण
खेत में पौधों की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई के साथ पौधों की छटाई कर विरलीकरण कर देनी चाहिए। खरपतवारों के रसायनिक नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथालिन (स्टाम्प) 0.5-1.5 किग्रा को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण से पूर्व खेत में छिड़काव करना चाहिए।
किस्म के अनुसार सरसों की फसल 120 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। कटाई के बाद फसल को खलिहान में अच्छी तरह सुखाकर गहाई करते हैं।
उपज
असिंचित फसल में पज 10-12 क्विंटल तथा सिंचित फसल से 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है।

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