संपादकीय (Editorial)

रबी फसलों का उचित रखरखाव

5 दिसम्बर 2022, भोपाल । रबी फसलों का उचित रखरखाव – खेती में प्रबंधन का अपना अलग महत्व है बुआई से निपटने के बाद कटाई के इस लम्बे अंतराल में फसल का रखरखाव करना जरूरी बात होगी। प्रदेश में गेहूं की फसल का क्षेत्र सबसे अधिक है जो अमूमन चार स्थितियों में लगाया जाता है। सबसे पहले वर्षा आधारित गेहूं जिसकी बुआई भूमि में पर्याप्त नमी की समाप्ति के पहले ही कर दी जाती है इसका क्षेत्र सिंचित गेहूं से अधिक है जो उत्पादन के आंकड़ों पर विपरीत असर डालता है। खरपतवार इसके सबसे बड़े दुश्मन होते हैं जो अंकुरण के तुरंत बाद ही सक्रिय हो जाते हंै। इस कारण अंकुरण के 30-35 दिनों के भीतर ही दो कतारों के बीच के खरपतवारों को निकाल कर खाद के गड्ढों में डाल देना चाहिये। दो पौधों के बीच में छुपे खरपतवार को एक निंदाई हाथ से करके निकालना जरूरी होगा। खरपतवार भूमि से पोषक तत्वों का बंटवारा तो करते ही हैं भूमि में उपलब्ध कीमती नमी जो मुख्य फसल के द्वारा उपयोग में लाई जा सकती है। उसका पालन-पोषण तथा बढ़वार में सहायक हो सकती है ये खरपतावर चट करके मुख्य फसल को बहुत हानि पहुंचाते हैं। फसल जब बालों पर आने लगे तब 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिडक़ाव अवश्य रूप से किया जाये। दूसरी स्थिति होती है सीमित सिंचाई का गेहूं जिसमें भी खरपतवार निकालकर पहली सिंचाई बुआई के 30-35 दिन बाद की जाये और यूरिया की टाप ड्रेसिंग भी की जाये। कहना ना होगा कि सिंचाई पूर्व यूरिया को फेंकना उसकी उपयोगिता को कम करने के बराबर ही होगा इस कारण सिंचाई उपरांत ही यूरिया डालें और भरपूर लाभ उठायें इस महंगे आदान का। तीसरी स्थिति होती है समय से बुआई के साथ भरपूर उर्वरक उपयोग कर भरपूर सिंचाई और सिफारिश का उर्वरक दोनों आदान आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हंै इस कारण इनका भी उपयोग पूर्ण विवेक तथा वैज्ञानिक सोच के आधार पर ही किया जाना चाहिये ताकि भरपूर उपयोगिता (यूटीलाईजेशन) हो सके। इस परिस्थिति में भी खरपतवारों की छुट्टी बुआई के 30-35 दिनों के भीतर ही कर लें खरपतवारनाशी भी महंगा आदान है इसके छिडक़ाव का पूरा लाभ तब मिलेगा जब खरपतवारों की कोमल अवस्था में ही उसका छिडक़ाव कर दिया जाये, देरी करने से केवल मन का संतोष होगा खाना पूर्ति होगी लाभ नहीं हो पायेगा। इस परिस्थिति में फसल की क्रांतिक अवस्था में सिंचाई और उसके बाद यूरिया की टाप ड्रेसिंग का तभी पूरा-पूरा लाभ हो सकेगा। चौथी स्थिति विलम्ब से गेहूं की बुआई जिसके लिये एक सीमा वैज्ञानिक द्वारा निर्धारित है जो 25 दिसम्बर है इसके बाद प्रतिदिन की देरी से 30-35 किलो उत्पादन प्रतिदिन घटता जायेगा।

उल्लेखनीय है गेहूं के लक्षित उत्पादन के लिये 90 शीत दिवस अनिवार्य होते हैं तो विलम्ब से बोई जा रही फसल में सिफारिश की गई जाति का समावेश बहुत जरूरी होगा तथा बीज दर में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी और उर्वरक में 25 प्रतिशत की कमी करके उचित लाभ उठायें। रबी की अन्य फसल जैसे चना में साधारण भूमि में दो सिंचाई बुआई के 40-45 दिन बाद तथा दूसरी 60-65 दिनों बाद की जाये। जगह-जगह ञ्ज आकार की खूटियां लगाई जायें तथा रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग फूल/घेंटी अवस्था में ही किया जाये। तोरिया-सरसों की फसल में माहो के नियंत्रण की व्यवस्था पुख्ता हो ताकि फसल को हानि ना हो पाये। मटर की फसल को भभूतिया रोग का डर सबसे अधिक होता है यथासंभव उस पर अंकुश लगे। इस प्रकार रबी की विभिन्न फसलों को उचित रखरखाव देकर अधिक से अधिक उत्पादन लेकर स्वयं की, प्रदेश की, देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनायें।

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