Editorial (संपादकीय)

‘प्लग ट्रे’ सब्जी पौध उत्पादन की आधुनिक तकनीकी

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प्लग ट्रे पौध उत्पादन तकनीकी को शहरी क्षेत्रों के आसपास सब्जी पौध उत्पादन हेतु लघु उद्योग के रूप में अपनाया जा सकता है। इस विधि द्वारा सब्जी बीजों में शत- प्रतिशत अंकुरण एवं रोग रहित पौधे प्राप्त होते हैं। तथा इस विधि द्वारा अंकुरित पौधों का रख-रखाव भी आसानी से किया जा सकता है क्योंकि प्लग टे्र द्वारा पौध उत्पादन में बहुत ही कम जगह की आवश्यकता होती है।
इस विधि द्वारा तैयार पौधे सामान्य नर्सरी की तुलना में ज्यादा अच्छे और उच्च गुणवत्ता के होते हैं। एक प्लग टे्र से लगभग 100 पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं जिससे रख-रखाव एवं जगह दोनों की बचत होती है। तथा प्लग टे्र के खाने का आकार लगभग 1.0-2.0 वर्ग इंच होना चाहिए। प्लग टे्र में विभिन्न प्रकार की सब्जियों का पौध उत्पादन आसानी से किया जा सकता है जैसे -टमाटर, मिर्च, खीरा, तरबूज, खरबूजा, फूलगोभी, पत्तागोभी, शिमला मिर्च व अन्य सब्जी फसलें।
सब्जी के पौध उत्पादन के लिए प्रो-टे्र में विशेष प्रकार का माध्यम उपयोग किया जाता है जैसे कोकोपीट, परलाईट एवं वर्मीकुलाइट तथा इनके मिश्रण का अनुपात 3:1:1 रखा जाता है, इसके अलावा सिर्फ कोकोपीट का भी उपयोग किया जा सकता है परंतु कोकोपीट का उपयोग करने से पहले उसकी विद्युत चालकता (इ.सी.) का पता होना अति आवश्यक है। यदि कोकोपीट की विद्युत चालकता 1 या उससे ज्यादा है तो यह पौध उत्पादन में हानिकारक है, कोकोपीट की विद्युत चालकता को कम करने के लिए उसे केल्शियम नाइट्रेट (इ.सी.) से उपचारित किया जाता है तथा उसके बाद साफ पानी या वर्षा वाले पानी से कोकोपीट को धो लिया जाता है जिससे उसकी विद्युत चालकता 1 या उससे कम हो जाती है उसके बाद कोकोपीट को आसानी से उपयोग कर सकते हैं। तथा ये जो माध्यम लिये जाते हैं वे लगभग रोगमुक्त होते हैं। इसके बाद प्रो-टे्र के प्रत्येक छेद में कोकोपीट का मिश्रण डाला जाता है एवं प्रत्येक छेद में एक-एक बीज बोकर उसे वर्मीकुलाईट एवं परलाइट की एक पतली परत से ढंक दिया जाता है। सर्दी के मौसम में बीज अंकुरण के लिए बहुत ध्यान रखना आवश्यक होता है क्योंकि तापमान बहुत कम होता है इसके लिए ऐसे कमरे का चुनाव किया जाता है जिसका तापमान लगभग 25 डिग्री से. ग्रे. के आसपास हो ताकि बीजों का शत-प्रतिशत अंकुरण आ सके। जब प्लग टे्र में अंकुरण आ जाता है तो उसे वाकिंग टनल, ग्रीन हाऊस इत्यादि में रख दिया जाता है परंतु सबसे महत्वपूर्ण ध्यान देने योग्य बात ये होती है कि वाकिंग टनल, ग्रीन हाऊस इनकी नेट इन्सेक्ट, प्रूफ  होनी चाहिए तथा लगभग 40 मेश की होनी चाहिए जिससे सफेद मक्खी, थ्रिप्स इत्यादि संरक्षित क्षेत्र में न आ सके इसके लिए हरी नेट का उपयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसके सफेद मक्खी, थ्रिप्स आसानी से आ सकती है जिससे पौध में विषाणु जनित एवं दूसरे रोग आसानी से आ जाते हैं जैसे पत्तियों का मुडऩा आदि। अत: इससे बचने के लिए 40 मेश की इन्सेक्ट प्रूफ नेट का उपयोग किया जाता है।
कोकोपीट मुख्यत: नारियल के फल के रेशों से बनाया जाता है क्योंकि कोकोपीट में पौधों की जड़ें आसानी से वृद्धि करती हैं तथा कोकोपीट की पानी को रोकने की क्षमता भी बहुत अच्छी होती है। परलाइट की उत्पत्ति वोल्केनिक चट्टानों से निकले पदार्थ से होती है जिसका तापमान बहुत अधिक लगभग 980 डिग्री सें.ग्रे. होता है। इसका रंग लगभग सफेद होता है एवं वजन में यह बहुत ही हल्का होता है, परलाईट में भी पौधों की जड़ वृद्धि अच्छी होती है एवं जड़ों को आसानी से ऑक्सीजन उपलब्ध होती है।
वर्मीकुलाईट गंधमुक्त, अविषैला एवं स्टेराइल प्रवृति का होता है तथा जल्दी खराब भी नहीं होता है इसकी पानी को रोकने की क्षमता बहुत अधिक होती है तथा पौध की जड़ों के लिए हवा भी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। वर्मीकुलाईट में कुछ मिनरल्स भी उपलब्ध होते हैं जो पौध वृद्धि के लिए अति आवश्यक हैं। वर्मीकुलाईट का प्रयोग करने से पौध में फफूंद व सडऩ की समस्या नहीं आती है।
सर्दी के मौसम में पौध तैयार करते समय बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि तापमान बहुत कम होता है, अत: तापमान को नियंत्रित करने के लिए ग्रीनहाऊस या संरक्षित क्षेत्र में रात्रि के समय हीटर का उपयोग किया जा सकता है जिससे तापमान नियंत्रित हो सके। सर्दी के मौसम में पौध की शुरूआती अवस्था में 70 पी.पी.एम घोल जिसमें 1:1:1 में क्रमश: पोटाश, नत्रजन एवं फास्फोरस का उपयोग किया जाता है तथा पौध वृद्धि के बाद यह मात्रा 140 पीपीएम. प्रति सप्ताह तक बढ़ाई जा सकती है।
गर्मी के मौसम में बीज बोने के बाद प्लग ट्रे को कमरे में रखने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि तापमान कम नहीं होता है। तथा इसमें भी पौध में शुरूआती अवस्था में 70 पी.पी.एम. घोल जिसमें 1:1:1 में  क्रमश: पोटाश नत्रजन एवं फास्फोरस हो दिया जाता है। तथा यह घोल तभी दिया जाता है जब तापमान 20-30 डिग्री से.ग्रे. हो। प्लग ट्रे द्वारा पौधों को तैयार करने में लगभग एक महीना लगता है।
20 किग्रा माध्यम (3:1:1) में 50 ग्राम 19:19:19 शुरूआती दौर में मिला दिया जाता है जिससे लगभग पौध को 25 दिनों तक पोषण मिलता रहता है तथा पौध ओजयुक्त एवं अच्छी गुणवत्ता का होता है। प्लग ट्रे में पौध वृद्धि के लिए खाद तरल माध्यम से दिया जाता है। खाद एवं पानी देने के लिए  फव्वारा पद्धति या वाटर केन का उपयोग किया जा सकता है जिसमें सभी पौधों को एक समान मात्रा में खाद एवं पानी मिलता रहे तथा पौधों की गुणवत्ता बनी रहे।
हार्डनिंग- प्रो-ट्रे  में तैयार पौध को खेत में लगाने से पहले हार्डनिंग की प्रक्रिया की जाती है। जब पौध लगभग तैयार हो जाता है हार्डनिंग की प्रक्रिया की जाती है। इस प्रक्रिया में शुरूआती समय में प्लग ट्रे को दोपहर के बाद जब हल्की धूप हो तब बाहर सूर्य की रोशनी में रखा जाता है एवं फिर अगले दिन थोड़ी ज्यादा देर तक धूप में रखा जाता है यह प्रक्रिया लगभग 3-4 दिन तक की जाती है। तीसरे दिन आधे दिन की धूप तथा चौथे दिन पूरा दिन भर पौधे को बाहर रखते हैं जिससे वे बाहरी वातावरण के प्रति सहनशील बने।  अब जब हार्डनिंग के बाद पौधे तैयार हो जाते हैं तो उन्हें माध्यम सहित निकालकर खेत में रोपाई कर दी जाती है तथा पौधे आसानी से वृद्धि करते हैं क्योंकि उनकी जड़ का विकास भी बहुत आसानी से होता है तथा पौध की गुणवत्ता भी बहुत अच्छी होती है।

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