Editorial (संपादकीय)

जायद में तिलहनी फसलों की खेती, आज की आवश्यकता

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भारत भले ही उत्तरी अमेरिका, चीन तथा ब्राजील के बाद विश्व में चौथा वनस्पति तेल उत्पादक देश है, फिर भी उसे घरेलू खपत के लिए वनस्पति तेलों का आयात करना पड़ता है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि देश में खाद्यान्न तेलों की वर्ष 2022 तक आवश्यकता 332.0 लाख टन तक पहुंच जायेगी। तिलहनी फसलों के उत्पादन का वर्ष 2022 तक लक्ष्य 456.4 लाख टन का निर्धारित किया गया है, जिससे हमें 136.9 लाख टन खाद्यान्न तेल ही प्राप्त हो सकेगा। वर्तमान में हम प्रति वर्ष 73.1 लाख टन का ही उत्पादन कर पा रहे हैं।
कई प्रयासों के बाद भी हम तिलहनी फसलों की उत्पादकता में कोई सार्थक वृद्धि नहीं कर पाये हैं। इसका एक मुख्य कारण तिलहनी फसलों का वर्षा आधारित खेती पर निर्भर रहना है। इस कारण वर्ष प्रति वर्ष तिलहनी फसलों के उत्पादन में बहुत अधिक अन्तर देखने को मिलता है। उत्पादन बढ़ाने के लिए तिलहनी फसलों का रकबा बढऩा एक विकल्प हो सकता है परन्तु इसकी खरीफ तथा रबी मौसम में बढ़ाने की संभावना कम ही है। यदि हम यहां प्रयास कर बढ़ा भी दें तो इसका असर दूसरी फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा। इसका एक अच्छा विकल्प जायद मौसम में तिलहनी फसलों की खेती करना हो सकता है। जायद मौसम में मूंगफली, तिल, सूर्यमुखी तथा सोयाबीन की फसलें ली जा सकती हैं। सामान्यत: जायद/गर्मी के मौसम में कर्नाटक में 4.06, पश्चिमी बंगाल में 2.74, आंध्रप्रदेश में 2.40, तेलंगाना में 2.03, महाराष्ट्र में 1.33 तथा गुजरात में 1.12 लाख हेक्टेयर में तिलहनी फसलों की खेती की जाती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान को जायद/गर्मी में तिलहनी फसल लेने वाला क्षेत्र नहीं माना जाता है, परन्तु इन तीनों राज्यों में खासकर मूंगफली, तिल तथा सूर्यमुखी के जायद/गर्मी मौसम में लिये जाने की बहुत अच्छी सम्भावनाएं हैं। इन तीन फसलों की देश में पिछले पांच साल के औसत के आधार पर मूंगफली की 5.07 लाख, तिल की 3.03 लाख तथा सूर्यमुखी की 55 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जा रही है। यदि देश में वनस्पति तेलों के आयात को कम करना है तो जायद/गर्मी मौसम में तिलहनी फसलों की खेती कर इस उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। यदि ईमानदारी से प्रयास किये जायें और किसानों को समय पर उपयुक्त बीज उपलब्ध कराया जाये तो जायद/गर्मी मौसम में तिलहनी फसलों का क्षेत्र कई गुना बढ़ाया जा सकता है। तिलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए हमारे पास दूसरे उपाय भी नहीं है। यह प्रयास जितनी जल्दी आरम्भ किया जाये उतना अच्छा।

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