संपादकीय (Editorial)

किसानों का आक्रोश व सरकार

किसानों के उग्र प्रदर्शन

मध्यप्रदेश में किसानों के उग्र प्रदर्शन को दस दिन हो गये, इसमें छह किसानों की जीवन लीला ही समाप्त हो गई और सम्पत्ति को जो नुकसान पहुंचा वह अलग। इस प्रकार के उग्र प्रदर्शन को कोई भी किसान अपना समर्थन नहीं देता है। वैसे भी मध्यप्रदेश का किसान शांत प्रवृत्ति तथा ईश्वर से डरने वाला है और उग्रता प्रवृत्ति उसके स्वभाव में नहीं हैं।

भारतीय किसान संघ के जिससे लगभग 20 लाख किसान जमीनी स्तर पर जुड़े हैं के वाइस प्रेसिडेन्ट श्री प्रभाकर केलकर ने इस संबंध में कहा है कि यह प्रदर्शन सरकार की किसानों के प्रति बनाई गई नीतियों के कार्यावरण में विफलता के कारण हुआ है।

किसानों की नई पीढ़ी जो खेती को वैज्ञानिक तौर पर करना चाहती है और खेती को फायदे का सौदे के स्थान पर सरकार की नीतियों के कारण घाटे का सौदा के रूप में देख रही हैं तो उनमें आक्रोश होना स्वाभाविक है। जब किसान के अंदर पनप रहा आक्रोश गुस्से में परिणीत हो कर चरम सीमा पर पहुंच गया, तो उसका परिणाम हमें मंदसौर में देखने को मिला, जो दुर्भाग्यपूर्ण था।

भारतीय किसान संघ तथा अन्य समस्याओं ने भी सरकार को किसानों तथा कृषि की गिरती दशा के बारे में समय-समय पर अवगत कराया। सरकार कृषि तथा किसानों के उत्थान तथा कृषि आय को दुगना करने के राग अलापती रही। परंतु उसने किसानों की समस्याओं के निराकरण के लिये जमीनी स्तर पर कोई ठोस उपाय नहीं अपनाये। परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री का यह संकल्प कि हम खेती को मुनाफे का सौदा बनाएंगें किसानों को यह घाटे का सौदा लगने लगा। क्योंकि सरकार किसानों की फसल को उसके न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी क्रय करने में असमर्थ रही। फलस्वरूप किसान को कुछ फसलें जिनके लिए सरकार ने ही उन्हें प्रोत्साहित किया था, को उगने पर उन्हें उनकी लागत ही प्राप्त नहीं हो रही।

अच्छे उत्पादन के लिये सरकार किसानों के बूते पर कृषि कर्मण्य पुरस्कार लेकर अपनी पीठ तो थपथपा रही है, परंतु पुरस्कार दिलवाने वाले किसानों की उनका उत्पाद का उचित मूल्य न मिल पाने के कारण उनकी आर्थिक दशा बिगड़ती जा रही है। इनमें मुख्य रूप से अरहर, मूंग, चना, सरसों, आलू, प्याज तथा टमाटर उगाने वाले किसान हैं। आगामी खरीफ फसलों की बुआई की व्यवस्था के लिये किसान मजबूरन अपने उत्पादों को कम दामों में बेचने के लिए बाध्य हो रहे हैं। किसानों के इस आंदोलन का रुख क्या होगा यह समय ही बतायेगा।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश की शांति व किसान आंदोलन समाप्त करने के लिए उपवास में बैठना पड़ा। कृषि कार्यों के लिये, लिये गये कर्ज की माफी से समस्या का समाधान नहीं होगा। यह अकर्मण्य किसानों को प्रोत्साहित करेगी। किसान को फसल लागत के ऊपर उसका उचित मुनाफा मिलना आवश्यक है।

भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य का आधार पारदर्शी होना चाहिए व स्वामीनाथन कमेटी का सुझाव अनुसार यह फसल लागत का कम से कम 50 प्रतिशत से अधिक हो इसको तुरन्त लागू किया जाये व राज्य सरकारें किसान को यह मूल्य देने के लिये बाध्य हो।

केन्द्रीय सरकार की आयत- निर्यात नीति देश के उत्पादन अनुमान पर आधारित हो और निर्णय समय पर लिए जाये। व्यापारियों द्वारा किसानों का पोषण समाप्त हो और उनकी उपज का पैसा बेचते समय ही दिया जाये। राज्य सरकारें अपने बजट में पैसों का प्रावधान रखें ताकि कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होने पर वह किसान की उपज खरीद सकें।

सरकारों को किसानों की समस्याओं के अध्ययन तथा उनके तुरन्त निराकरण हेतु कुछ व्यवस्था करना आवश्यक है। अब किसान को अन्नदाता कहकर बहला देने से काम नहीं चलेगा। उनकी समस्याओं के निराकरण हेतु कुछ ठोस निर्णय लेने होंगे। अन्यथा किसानों का आक्रोश बढ़ाता ही चला जायेगा।

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