इस वर्ष देश में कपास उत्पादन के परिणाम उत्साहवर्धक प्राप्त हुए हैं। पिछले वर्ष जहां देश में कपास की फसल 118.81 लाख हेक्टर में लगाई गई थी तथा उत्पादन 350.70 लाख गांठों का हुआ, वहाँ इस वर्ष कपास की खेती 118.00 लाख हेक्टर जो पिछले वर्ष से 81 हजार हेक्टर कम है। परंतु इस वर्ष कपास का उत्पादन 365.00 लाख गांठें होने का अनुमान है जो पिछले वर्ष से 14.30 लाख गांठें अधिक हैं। कपास जैसी व्यापारिक फसल में इस प्रकार के परिणाम देश की अर्थव्यवस्था के हित में हैं। यह इस वर्ष कपास के लिए अनुकूल परिस्थितियों के कारण हुआ है जिससे इस वर्ष प्रति हेक्टर उत्पादकता 526 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्राप्त होने की संभावना है जो कि पिछले वर्ष 502 किलोग्राम प्रति हेक्टर थी। कपास उत्पादन राज्यों में कपास की प्रति हेक्टर उत्पादकता में बहुत अधिक अन्तर देखा गया है। इस वर्ष देश के 10 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में से जहां गुजरात में 651 किलोग्राम प्रति हेक्टर उत्पादकता का अनुमान है वहीं महाराष्ट्र में मात्र 310 किलोग्राम प्राप्त होने का अनुमान है। दस कपास उत्पादक राज्यों में से पांच राज्यों गुजरात (651), हरियाणा (510), तेलंगाना (580), मध्यप्रदेश (546), कर्नाटक (530) में उत्पादकता राष्ट्रीय औसत 526 किलोग्राम प्रति हेक्टर से अधिक होने की संभावना है वहीं हरियाणा (510), आंध्रप्रदेश (486), तमिलनाडु (393), पंजाब (383) तथा महाराष्ट्र (310) में यह राष्ट्रीय औसत से कम होने की संभावना है। कपास उत्पादन की दृष्टि से वर्ष 2013-14 सबसे उपयुक्त वर्ष था जब, देश का औसत उत्पादन 566 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्राप्त हुआ। उसी वर्ष गुजरात के किसानों ने 815 किलोग्राम प्रति हेक्टर उत्पादन प्राप्त किया। मध्यप्रदेश तथा राजस्थान की उत्पादकता भी क्रमश: 605 व 558 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्राप्त हुई थी। यदि मध्यप्रदेश का किसान इस 605 किलो ग्राम प्रति हेक्टर की स्थिरता प्राप्त कर ले तो यह सोयाबीन के प्रति किसान के मोहभंग होने की स्थिति में विकल्प के रूप में कहीं अच्छी फसल सिद्ध हो सकती है। जो किसान की आर्थिक दशा सुधारने में सहयोग देगी। इसके लिये कपास में आने वाली समस्याओं के निदान के लिये विस्तार अधिकारियों की टीम शासन को बनानी होगी जो कपास की खेती की विशेषज्ञ हो।
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