Editorial (संपादकीय)

मिट्टी को सुरक्षित, स्वस्थ रखना चुनौती

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गेहूं अनुसंधान केंद्र इंदौर ने मनाया स्थापना दिवस 

इंदौर। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र, इंदौर का 68वां स्थापना दिवस गत दिनों मनाया गया। इस अवसर पर जल शक्ति अभियान के तहत जल संरक्षण पर परिचर्चा भी आयोजित की गई। जिसमें विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ.ए.के. पात्रा, निदेशक,भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल, विशिष्ट अतिथि डॉ. ए.के. कृष्णा, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, इंदौर, डॉ. ए.एन. शर्मा, प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान केंद्र इंदौर, गेहूं अनुसन्धान केंद्र के अध्यक्ष डॉ. एस.वी.साई प्रसाद और कृषि वैज्ञानिक श्री ए.एन. मिश्र मंचासीन थे।

डॉ. एम.एन. राव स्मृति व्याख्यान के तहत डॉ. ए.के. पात्रा ने दृश्य – श्रव्य माध्यम से मिट्टी की मौजूदा स्थिति पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि मिट्टी को बनाया नहीं जा सकता इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। 95 प्रतिशत खाद्य मिट्टी से आते हैं। लेकिन मिट्टी में प्रदूषण बढऩे से खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य को खतरा बढ़ गया है। इसमें जलवायु परिवर्तन के अलावा उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ, कीटनाशक और प्लास्टिक का भी योगदान है।

बाढ़ से :

  • 100 लाख टन उपजाऊ मिट्टी बट जाती है।
  • 80 लाख टन पोषक तत्व बर्बाद

मिट्टी को सुरक्षित और स्वस्थ रखना गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। असंतुलित खाद के उपयोग से भी हालात बिगड़े हैं। हर साल बाढ़ में करीब 100 लाख टन मिट्टी बहने से जमीन के 80 लाख टन पोषक तत्व भी बर्बाद हो जाते हैं। इसके पूर्व श्री साई प्रसाद ने संस्थान  की 68 वर्षीय विकास गाथा का उल्लेख करते हुए कहा कि इस केंद्र ने 18 सालों में किसानों को 31 हजार क्विंटल गेहूं उपलब्ध कराया है। यहां की लोकप्रिय एचआई -1544 ,और पूर्णा जैसी किस्मों का जिक्र कर कहा कि संस्थान ने अब तक गेहूं की 35 प्रजातियां पेश की है, जो औसतन दो साल में एक है।

दूसरे सत्र में कृषि हेतु जल शक्ति अभियान के तहत परिचर्चा भी आयोजित की गई जिसमें डॉ. एम.के. गोयल, एसोसिएट प्रोफ़ेसर,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर, डॉ. रमना राव, केंद्रीय अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल, डॉ. ए .एन .शर्मा, डॉ. डी.वी सिंह, सोयाबीन अनुसन्धान केंद्र , इंदौर, डॉ. सिराज खान केंद्रीय भू जल बोर्ड, भोपाल, एग्रोनॉमिस्ट श्री मुरलीधरन अय्यर, जैन इरिगेशन और किसान श्री बने सिंह और श्री लक्ष्मीनारायण कुमावत, पोलायकलां जागीर (देवास) ने भी अपने विचार प्रकट किए।

बहस का सार बताते हुए डॉ. ए. एन.मिश्र ने कहा कि जल, मृदा संरक्षण के साथ मशीनों को भी एकीकृत करने की जरूरत है, तभी जल का प्रभावशाली तरीके से उपयोग हो सकेगा। उपयुक्त फसलों और किस्मों से उत्पादकता बढ़ेगी। इसलिए जल के प्रति जागरूकता को बढ़ाना ही होगा.स्वागत भाषण  एग्रोनॉमिस्ट  डॉ. के.सी. शर्मा ने दिया।  कार्यक्रम का संचालन डॉ. ए.के .सिंह ने कियाष। अंत में श्री साई प्रसाद ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए. आभार प्रदर्शन डॉ. जे. बी. सिंह ने किया।

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