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संपादकीय (Editorial)

15 जून बुर्जग र्दुव्यवहार जागरुकता दिवस

छूटते संस्कारो में बुर्जगो को आत्मसम्मान एंव अपनत्व की आस

आलेख: विनोद के. शाह,अंबिका हास्पीटल रोड, विदिशा,मप्र 464001, मोबा. 9425640778

14 जून 2025, भोपाल: 15 जून बुर्जग र्दुव्यवहार जागरुकता दिवस – कभी संयुक्त परिवार में अमूल्य धरोहर के रुप में सम्मानित देश के बुर्जुग, बदलते जीवन मूल्यो एंव आर्थिक उपार्जन में निर्बलता के कारण उपेक्षित, एकाकी एंव वृद्धाश्रम का जीवन गुजराने को मजबूर है। यह समस्या देश के अस्सी फीसदी बुर्जुगो की बन चुकी है। बुर्जगो को जितना बूढे शरीर एंव बीमारियो ने नही तोडा है,उससे कही अधिक उसे उस औलाद के र्दुव्यवहार ने तोड दिया जिसके लिए बुर्जग दंपति ने सब कुछ अर्पण कर दिया है। हेल्पेज इंडिया कि रिर्पोट कहती है कि देश का हर दूसरा बुर्जग प्रताडित हो रहा है।

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विनोद के. शाह

भारत देश जहॉ स्वयं पिंडदान के लिए बुर्जग दंपति कम से कम एक औलाद की चाहत रखते है,वही औलाद अब बूढे माता—पिता को दुत्कार रही है। उन्हे उनकी संपति से बेदखल कर रही है। हेल्पेज के आंकडे कहते है कि देश में 34 फीसदी बुर्जग अपने बेटे एंव 31 फीसदी अपनी बहुओ के व्यवहार से प्रताडित हेै। नीति आयोग कि भारत में वरिष्ठ नागरिक देखभाल—प्रतिमान परिकल्पना शीषर्क से प्रकाशित रपट कहती है कि सन् 2050 में भारत का हर चौथा व्यति बुर्जुग श्रेणी में होगा। वर्तमान में देश की आबादी में बुर्जगो की हिस्सेदारी 10.40 करोड की है। जो 2050 में जनसंख्या कि 19.5 फीसदी लगभग 35 करोड होगी।

सामाजिक मूल्यों में हो रहे क्षरण की चुनौति के साथ देश में बुर्जुगो के लिए एक ससम्मान सुरक्षित भविष्य को तलाशना देश एंव सरकार दोनो के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। आर्थिक बाजार का मंथन भी बुर्जग आबादी की देखभाल के लिए सेवा उध्धोग के उज्जवल भविष्य की भारत में परिकल्पना करता नजर आता है।

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वर्तमान में बुर्जुग आबादी को सशुल्क सेवा देने वाला उध्धोग 60 हजार करोड का है। आर्थिक समीक्षक इसका भविष्य कई गुना अधिक होकर स्टार्ट अप के माघ्यम से युवाओ को रोजगार देने की भविष्यवाणी कर रहा है। यह देश में सामाजिक मूल्यो की गिरावट के साथ बुर्जुगो के भविष्य की चुनौतियों के संकेत है। आर्थिक अवाश्यकताओ के लिए के लिए देश के 48 फीसदी बुर्जुग पूर्णता संतानो पर निर्भर है। उनके पास आय के संसाधन नही है। मात्र 34 फीसदी बुर्जुग आबादी को सेवानिवृत पेशन मिलती है। एक सामाजिक आंकलन यह भी कहता है कि तृतीय एंव चर्तुथ श्रेणी से सेवार्निवत अस्सी फीसदी बुर्जुगो को मिलने वाली पेंशन राशि उनकी संताने परिवार खर्चे के लिए छीन लेती है। हावी होती उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण 60 फीसदी बुर्जुग परिवारिक प्रताडना सहने को मजबूर है। मात्र 30 फीसदी ही अत्याधिक प्रताडना से तंग आकर पारिवारिक हिंसा की शिकायत दर्ज कराने कानून की चौखट तक पहुॅचते है। देश के बुर्जगों को पारिवारिक परिवेश सहित संस्थागत माहौल में भी र्दुव्यवहार का शिकार होना पड रहा है।

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मारपीट,चोट पहुॅचाना,मानसिक उत्पीडन,आर्थिक तंगी के हालात यह परिवार या निकटतम व्यति द्धारा पहुॅचाने वाली सर्वाधिक घरेलू हिंसा में शामिल है। लेकिन भारतीय न्याय व्यवस्था में भी इन अपराधो को सामान्य अपराध के रुप में ही तवज्जो दी जाती है। ग्रामीण क्षेत्रो में रहने वाले 75 फीसदी बुर्जुग पारिवारिक हिंसा के शिकार है। लेकिन उन्हें कानूनी संरक्षण भी नही मिल पाता है। पारिवारिक सदस्य दो जून रोटी के लिए उनसे मजदूरो की तरह काम लेते है। एक से अधिक बच्चे होने की स्थति में बेटे बुर्जग मॉ—बाप का ही बटवारा कर लेते है। दो जून की रोटी देने एक के हिस्से में मॉ रह जाती है् तो दूसरे के हिस्से में बुर्जुग पिता! इस ग्रामीण परांपरा में बुर्जुगों को दो जून रोटी की सुरक्षा तो उपलब्ध हो जाती है, लेकिन बरसो साथ रहने वाले बुर्जुग दंपति अलगाव की जिंदगी जीने को मजबूर होते है।

देश की राज्य सरकारे बुर्जुग ग्रामीण पुरुषो को पुर्नवास योजना के नाम पर ग्रामीण भजन मंडली बनाने मात्र गाने— बजाने वाले बाद्य यंत्र उपलब्ध कराती है। देश की सरकार बुर्जुग व्यतियो के बेहतर जीवन प्रबंध के लिए देश की कुल जीडीपी का मात्र 0.73 हिस्सा ही खर्च कर पा रही है। जिसमें 0.03 फीसदी राशि द्धारा सामाजिक न्याय एंव अधिकारिता मंत्रालय बुर्जुग पेशन योजना संचालित करता है। जिसमें राज्यो से मिलने वाले अंशदान से ही प्रति व्यति पेंशन राशि का निर्धारण होता है। देश के अलग—अलग राज्यो में प्रति व्यति पेंशन राशि 600 से रु 1200 तक मासिक है। जो तेजी से बढती महॅगाई के दौर में बुर्जुगो की मात्र दस दिवस की खाना— खुराक के लिए भी पयौप्त नही है।

भारत में अकेले बुर्जुग आबादी प्रतिबर्ष सत्तर हजार करोड रुपए की राशि स्वयं के लिए स्वास्थ्य सेवाए लेने एंव औषधी पर खर्च करती है। इलाज के लिए उन्हें एक अस्पाताल से दूसरे अस्पाताल एंव कई—कई शहरो में भटकना भी पडता है। एक सामाजिक सर्वे के अनुसार सेवानिवृत बर्जुगों की 20 फीसदी पेंशन राशि प्रति माह उनके स्वास्थ्य के नियमित आवश्यकताओ पर खर्च होती है। जबकि देश की 53 फीसदी बुर्जुग आबादी अपनी बचत जमा राशि को नियमित स्वास्थ्य खर्चो पर व्यय करने को मजबूर होते है।

ग्रामीण बुर्जुग आबादी का 45 फीसदी हिस्सा निवास स्थल के नजदीक प्राथमिक चिकित्सा सेवा न होने के कारण गॉव से दस से पचास किमी दूरी का सफर भी तय करता है। देश में सरकारी स्तर पर चलने वाली वरिष्ठ नागरिक योजनाए वीपीएल श्रेणी के बुर्जुगो की मात्र औपचारिक खनापूर्ति ही करती है। उन्हे आवश्यक मदद के साथ सेवा क्षेत्र में बहुत अधिक संरक्षण प्रदान नही करती है। देश के उप्र,विहार,झारखंड,छत्तीसगढ सहित मप्र वह राज्य है जहॉ बडी संख्या में जीवित बुर्जगो को शासकीय कागजो में मृत घोषित किया जा चुका है। इन राज्यो के सैकडों बुर्जुग अपने जीवित होने का प्रमाणपत्र हासिल करने तहसीलो से लेकर अदालतो के चक्कर काटने को मजबूर है। शासकीय कार्यालयो, बैंको में बुर्जुगो व्यतियों को अलग से सुविधाए नही मिल पाती है। उन्हें स्वयं ही सबिधाओं के लिए यहॉ—वहॉ भटकना पडता है। यात्रा दौरान भी अक्सर उत्पीडन का बुर्जुग शिकार होते है। रेल्वे में ऐसे असंख्य प्रकरण है जब यात्रा दौरान प्रारभिक चिकित्सा या यात्रा सुविधा न मिलने
से उन्हे अपने प्राणो से हाथ तक धोना पडा है।

भारतीय रेल ने तो अब बुर्जुग यात्रियो को मिलने वाली रेल किराया रियायत देना भी बंद कर दिया है। भारतीय कानून व्यवस्था बुर्जुग व्यतियों के जीवन को महत्व देने के बजाए निरर्थक ही मानता है। बुर्जुगो के साथ होने वाली दुर्घटनाओ में मुआवजे का निर्धारण करते समय बुर्जुग की आर्थिक उपयोगिता एंव भविष्य में उसके जीवित होने की संभावनाओ का आंकलन से क्षतिपूर्ति का निर्धारण भारतीय अदालते करती है। राष्टीय अपराध ब्यूरो की रपट 2022 में देश में हुई धोखाधडी,लूट,जालसाजी की घटनाओ में 23.9 फीसदी बुजुर्ग शिकार हुए थे। आत्महत्या के आंकडो में 1518 बुर्जुगो ने पारिवारिक कारणो एंव आर्थिक तंगी से परेशान होकर वर्ष 2022 में आत्महत्याऐ की थी। रपट कहती है कि पिछले एक बर्ष में बुर्जुगो के साथ अपराधो में 11.25 फीसदी की बडौत्तरी हुई है। अपराधो में साठ बर्ष से लेकर नब्बे बर्ष तक उम्र वाली बुर्जुग महिलाए शाररिक शोषण एंव ब्लात्कार जैसे शरर्मिदगी भरे अपराध का शिकार हुई है।

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देश में मध्यप्रदेश राज्य बुर्जुग महिलाओ के साथ घिनौने अपराधो में अव्वल रहा है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मुताविक साठ बर्ष से अधिक उम्र की भारतीय महिलाओ के साथ सार्वजानिक स्थानो पर 16 फीसदी की संख्या में अब भी घृणित र्दुव्यवहार होता है। बुर्जुग के साथ हो रहे अपराध एंव उनके आत्मघात जैसे कदम समाज एंव सरकार को शार्मिदा करने वाले है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष यूएनएफपीए की इंडिया एजिग रपट 2023 कहती है कि 2046 तक भारत की बुर्जुग आबादी उसके देश के बच्चो की आबादी के बराबर हो जायेगी। देश में 15 साल से कम उम्र के बच्चो की जनसंख्या में तेजी से गिरावट दर्ज हो रही है। जो परिवार में अधिक तनाव, फासला पैदा करने के साथ ही बुर्जुग के एकाकीपन में वृद्धि करने वाला है।

सामाजिक मूल्यो में गिरावट देश में बुर्जुगो के भविष्य को लेकर एक बडी चिंता खडी करती है। अर्थशास्त्र इसमें यह कहकर एक बडे निवेश की संभावनाओ को टटोल कर इसे युवाओ को रोजगार उपलब्ध कराने की समभावनाओं वाला सेवा उद्धोग का दर्जा भी देता है। बुर्जगो की मदद के बहाने रोजगार स्थापना के लगभग देढ सौं से अधिक स्टार्टअप इस सेवा क्षेत्र में आ चुके है। देश में वर्ष 2023 में बुर्जुग सेवा सेक्टर के नाम पर रोजगार स्थापित करने लगभग 210 करोड का निवेश हुआ है। बुर्जगो के साथ होने वाले र्दुव्यवहार को रोकने उन्हे संपति वापिस दिलाने एंव उन्हे

भरण—पोषण अधिनियम 2007 के तहत आश्रितो से भत्ता लेने का अधिकार दिया है। जहॉ जिले के कलेक्टर या एसडीएम को शीध्र एंव सुलभ न्याय देने के अधिकार दिए है। केन्द्र सरकार का हेल्पलाइन नंबर 14567 भी बुर्जगो को प्रताडना से बचाने मदद उपलब्ध कराता है। राज्यो में पुलिस काल सेवा 112 भी बुर्जगो को प्रताडना से बचाने मदद उपलब्ध करा रही है। मप्र के कुछ जिलो में स्थापित पुलिस पंचायत बुर्जगो को प्रताडना से बचाने एंव उन्हे न्याय उपलब्ध कराने में सहयोग कर रही है।
लेखक कृषि एंव उपभोक्ता मामलो के जानकार है I

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