उर्वरकों का संतुलित प्रयोग कब ?
भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उर्वरक उत्पादक देश है। देश में उर्वरकों का पूंजीकरण बाजार देश की जीडीपी का 25 प्रतिशत है। उर्वरकों की खपत में भी भारत चीन के बाद दूसरे नम्बर पर आता है। वर्ष 2017-18 में नत्रजन उर्वरकों की खपत 337.54 लाख टन,डीएपी की 127.64, नत्रजन फास्फोरस/ नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश उर्वरकों की 118.41, सुपर फास्फेट की 64.76 लाख टन तथा पोटाश की 49.34 लाख टन रही। देश में हम यूरिया (नत्रजन), डीएपी, अमोनियम सल्फेट तथा कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट का उत्पादन कर रहे हैं, परन्तु पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा का हमें आयात करना पड़ता है।
देश का किसान उर्वरकों के प्रयोग के प्रति जागरुक तो हुआ है, परन्तु आर्थिक कारणों व अज्ञानता के कारण वह उर्वरकों का संतुलित उपयोग नहीं कर रहा है। हम किसान को विभिन्न उर्वरकों के प्रयोग के समय, उर्वरक देने के तरीके व उसकी मात्रा को समझाने में असमर्थ रहे हैं। अनेक किसान आज भी डीएपी का उपयोग खड़ी फसल पर कर रहे हैं। उन्हें हम अभी तक यह नहीं समझा पाये हैं कि फास्फोरस युक्त उर्वरकों को खड़ी फसल में उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि फसल को यह तुरन्त उपलब्ध नहीं हो पाते, पौधों को इनके उपलब्ध होने में समय लगता है। यदि हमें किसान की आमदनी दुगुनी करने के लिए फसल की लागत को कम करना है तो उर्वरकों के इस प्रकार के प्रयोग को रोकना होगा। उर्वरकों के संतुलित उपयोग के लिए भी हमें किसानों को प्रेरित करना होगा।
मध्य प्रदेश में वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश का उपयोग प्रति हेक्टेयर 52.45, 27.66 तथा 3.49 किलोग्राम था, जबकि छत्तीसगढ़ में यह क्रमश: 61.36, 29.79 तथा 8.97 किलोग्राम तथा राजस्थान में यह क्रमश: 42.99, 17.83 तथा 0.74 किलोग्राम था। आज भी किसान फास्फोरस तथा पोटाश के उपयोग के प्रति जागरुक नहीं है जिसका प्रभाव फसल की उपज तथा भूमि में तत्वों के संतुलन पर पड़ता है। मिट्टी में तत्वों की जांच भले ही मृदा स्वास्थ्य कार्ड द्वारा उपलब्ध हो रही है परन्तु किसान पर आर्थिक व अन्य कारणों के करण से इसके आधार पर उर्वरकों का प्रयोग नहीं कर रहे हैं इसके लिए हमें किसान को इकाई मान कर प्रयास करने होंगे।
गेहूं में उर्वरकों की मात्रा एवं उनका प्रयोग