फसल की खेती (Crop Cultivation)

गेहूं में पीला रतुआ रोग से बचाव के लिए किसानों को क्या करना चाहिए?

30 नवंबर 2024, भोपाल: गेहूं में पीला रतुआ रोग से बचाव के लिए किसानों को क्या करना चाहिए? – गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग एक गंभीर समस्या है, जो उत्तर पश्चिमी मैदानी और उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे अधिक देखा जाता है। यह रोग फसल की पत्तियों पर पीले रंग के पाउडर के रूप में दिखाई देता है और तेजी से फैलकर उत्पादन में भारी गिरावट का कारण बन सकता है। किसानों के लिए समय पर इस रोग की पहचान और प्रभावी नियंत्रण बेहद जरूरी है। आईसीएआर- भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने पीला रतुआ रोग से बचाव और नियंत्रण के लिए कुछ महत्वपूर्ण सलाह दी है, जो फसल को सुरक्षित रखते हुए उपज में सुधार करने में मददगार हो सकती है। आइए जानते हैं विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए इन उपायों के बारे में।

पीला रतुआ रोग नियंत्रण

गेहूं की फसल में पीला रतुआ एक प्रमुख रोग है, जो उत्तर पश्चिमी मैदानी और उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। इस रोग की पहचान पीले रंग के पाउडर से होती है, जो छूने पर उंगलियों और कपड़ों पर लग जाता है। इस रोग के लक्षण दिखने पर नजदीकी आईसीएआर संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, राज्य कृषि विभाग या केवीके के विशेषज्ञ से संपर्क कर इसकी पहचान सुनिश्चित करें। इसके बाद प्रभावित क्षेत्रों में अनुशंसित कवकनाशकों जैसे प्रोपिकोनाजोल @ 0.1% या टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% @ 0.06% का छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव दोहराएं। इन उपायों से पीले रतुआ रोग के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सकता है और फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।

दीमक नियंत्रण

दीमक प्रभावित क्षेत्रों में फसलों को सुरक्षित रखने के लिए बीज उपचार एक प्रभावी उपाय है। बीजों का उपचार क्लोरोपाइरीफॉस @ 0.9 ग्राम ए.आई./किलो बीज (4.5 मिली उत्पाद डोज प्रति किलो बीज) के साथ करें। इसके अलावा, थायमेथोक्साम 70 डब्ल्यूएस (क्रूजर 70 डब्ल्यूएस) @ 0.7 ग्राम ए.आई./किलो बीज (4.5 मिली उत्पाद डोज प्रति किलो बीज) या फिप्रोनिल (रीजेंट 5 एफएस @ 0.3 ग्राम ए.आई./किलो बीज या 4.5 मिली उत्पाद डोज प्रति किलो बीज) का उपयोग भी अत्यधिक प्रभावी है। ये उपचार फसलों को दीमक के नुकसान से बचाने में मददगार हैं।

गुलाबी तना छेदक नियंत्रण

गुलाबी तना छेदक का प्रकोप चावल-गेहूं फसल प्रणाली में विशेष रूप से उन क्षेत्रों में अधिक देखा जाता है, जहां गेहूं को शून्य जुताई वाले खेतों में बोया जाता है। इस कीट के प्रबंधन के लिए, गुलाबी तना छेदक के शुरुआती लक्षण दिखाई देते ही क्विनालफोस (ईकालक्स) @ 800 मिली प्रति एकड़ की दर से पौधों पर छिड़काव करें। इसके साथ ही सिंचाई करने से भी कीट के प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है।

गेहूं की फसल के लिए क्षेत्रवार बुआई बीज दर एवं उर्वरक की मात्रा

क्षेत्रबुआई की स्थितिबीज दरउर्वरक की खुराक और प्रयोग का समय
एनडब्ल्यूपीजेड और एनईपीजेडसिंचित, देर से बोया गया125 किया/हैक्टर120:60:40 किया एनपीके हे (1/3 एन और पूर्ण पी और के बुआई के समय बेसल के रूप में और शेष एन पहली और दूसरी सिंचाई में दो बराबर भागों में)
सीजेड और पौजेडसिंचित, देर से बोया गया125 किया/हैक्टर90:60:40 किग्रा एनपीके है (1/3 एन और पूर्ण पी और के बुआई के समय बेसल के रूप में और शेष एन पहली और दूसरी सिंचाई में दो बराबर आगो में)

हालांकि धान की कटाई में देरी और तापमान में उतार-चढ़ाव की चुनौतियां थीं, फिर भी नवंबर के अंत तक गेहूं की बुवाई काफी संतोषजनक रही। जिन किसानों ने अब तक बुवाई नहीं की है, उनके लिए यह सुझाव दिया जाता है कि वे कृषि जलवायु परिस्थितियों और बुवाई के समय को ध्यान में रखते हुए, उपयुक्त किस्मों का चयन करें ताकि उत्पादन अधिकतम हो सके।

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