क्या है खुरासानी इमली? जानिए मांडू के बाओबाब पेड़ का ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व
23 दिसंबर 2024, भोपाल: क्या है खुरासानी इमली? जानिए मांडू के बाओबाब पेड़ का ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व – मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय वन मेले में मांडू इमली, जिसे खुरासानी इमली भी कहा जाता है, ने लोगों का ध्यान खींचा है। यह दुर्लभ और ऐतिहासिक वृक्ष बाओबाब का स्थानीय नाम है, जिसका संरक्षण अब मध्यप्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा है।
मध्यप्रदेश राज्य वन अनुसंधान संस्थान और राज्य जैव विविधता बोर्ड के सहयोग से इन वृक्षों के संरक्षण के लिए ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। मांडू इमली, जो अफ्रीका और अरब प्रायद्वीप की मूल प्रजाति है, अपने विशेष आकार, औषधीय गुणों और ऐतिहासिक महत्व के कारण चर्चा में है।
मांडू का बाओबाब: इतिहास में झलकता वैभव
बाओबाब वृक्ष, जिसे वनस्पतिक रूप से एडनसोनिया डिजिटाटा कहा जाता है, भारत में केवल मांडू क्षेत्र में पाया जाता है। धार जिले के ऐतिहासिक मांडू शहर में लगभग 1000 से 1200 बाओबाब पेड़ हैं। इतिहासकार मानते हैं कि 1400 ईस्वी के आसपास अफगान शासकों या अरब व्यापारियों द्वारा इसके बीज मांडू लाए गए थे।
मांडू के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को खुरासान के शासक ने बाओबाब पौधों के साथ तोते उपहारस्वरूप भेंट किए थे। इसका गूदा इमली जैसा खट्टा होता है, जिससे इसे खुरासानी इमली कहा गया। स्थानीय लोगों के लिए यह पेड़ आय का एक स्रोत भी है। इसके फल और गूदे को बेचकर लोग अपनी आजीविका चलाते हैं।
पेड़ का विशेष आकार और संरचना
बाओबाब को ‘उल्टा पेड़’ भी कहा जाता है क्योंकि इसका चौड़ा तना और शाखाओं का आकार उल्टा दिखता है। इसकी ऊंचाई 5 से 25 मीटर तक होती है, और तने का व्यास 10 से 14 मीटर तक बढ़ सकता है। इसकी छाल भूरे रंग की चिकनी होती है और गर्मियों में पतली परतों में निकलती है। फूल बड़े, सफेद और लटकते हुए होते हैं, जो 15 से 90 सेंटीमीटर लंबे हो सकते हैं।
इसके फलों का आकार गोल से बेलनाकार तक होता है। फलों का गूदा सूखकर खट्टा पाउडर बन जाता है, जिसे पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता है। यह पाउडर विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है।
दुनिया के सबसे लंबे जीवन वाले वृक्षों में शामिल
बाओबाब वृक्ष को अपनी दीर्घायु के लिए जाना जाता है। रेडियोकार्बन डेटिंग के अनुसार, जिंबाब्वे का पांक बाओबाब लगभग 2450 वर्षों तक जीवित रहा। भारत में, हैदराबाद के गोलकुंडा किले में एक बाओबाब पेड़ 430 वर्षों से भी पुराना है। बाओबाब पेड़ों में तने उगाने की क्षमता होती है, जिससे वे हजारों साल तक जीवित रह सकते हैं।
हाल के वर्षों में मांडू के बाओबाब पेड़ों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। इस समस्या को देखते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने इन पेड़ों के संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं। स्थानीय दुकानदार इन पेड़ों के फलों को स्मृतिचिन्ह के रूप में बेचते हैं, जिनकी कीमत 200 रुपये तक होती है। गूदे का पाउडर 10 से 25 रुपये प्रति पैकेट बिकता है।
लोककथाओं और परंपराओं से जुड़ा वृक्ष
बाओबाब के बारे में कई रोचक कहानियां और स्थानीय मान्यताएं प्रचलित हैं। गुजरात में इसे ‘चोरआम्बलो’ कहा जाता है क्योंकि इसके विशाल तने में चोरी का सामान छिपाने की बात कही जाती है। वहीं, मांडू में इसे ‘मांडू इमली’ कहा जाता है, जो यहां के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है।
बाओबाब का फल पारंपरिक अफ्रीकी भोजन का हिस्सा है। इसमें विटामिन सी की प्रचुरता के साथ पाचन तंत्र के लिए उपयोगी औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। इसका उपयोग पेट संबंधी विकारों के इलाज में होता है और यह एंटीऑक्सीडेंट्स का समृद्ध स्रोत है।
बाओबाब या खुरासानी इमली मांडू की धरोहर है, जिसे संरक्षित करना न केवल स्थानीय समुदाय बल्कि पर्यावरण के लिए भी आवश्यक है।
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