खेत मे यूपीएल ज़ेबा का उपयोग
3 जुलाई 2021, मुंबई: ज़ेबा क्या है? ज़ेबा स्टार्च आधारित जल का महा अवशोषक है। (पानी सोखने का काम करता है)
ज़ेबा कैसे काम करता है?
सोखे : ज़ेबा अपने वजन से 450 गुना पानी सोखता है।
पकड़े: ज़ेबा अवशोषित पानी का अपने अंदर संचय करता है।
छोड़े: ज़ेबा पौधे की आवश्यकता के अनुसार पानी प्रदान करता है।
जैव विघटन: ज़ेबा 6 महिनों तक ‘सोखे पकड़े छोड़ेÓ प्रक्रिया सक्रिय रखकर बाद में जैव विघटीत होकर नष्ट हो जाता है।
ज़ेबा के फायदे क्या हैं?
जल एवं पोषण संचय: बारिश एवं सिंचाई द्वारा दिया हुआ अतिरिक्त पानी एवं उसमे घुला हुआ पोषण ज़ेबा अपने अंदर संचय करके,पौधे को जब चाहे तब प्रदान करता है। जिस कारण फसल अनचाहे तनाव फिर चाहे पानी एवं पोषण कम मिलने से हो या ज्यादा मिलने से हो उस को आसानी से झेल के सुरक्षित एवं स्वस्थ जीवनचक्र पूर्ण करता है।
रिसाव (लिचिंग) को रोके: ज़ेबा की संचयन की यही खूबी पानी एवं पोषण का जड़ों की कक्षा से बाहर होने वाला रिसाव रोककर दोनों की बचत करता है।
सदैव भुरभुरी मिट्टी एवं नमी रहे बरकरार: अपने वजन से 450 गुना पानी सोखते वक्त ज़ेबा जेल स्वरूप बनकर मिट्टी के साथ अनुबंध बनाता है, जिस कारण मिट्टी मे हवा के छोटे छोटे क्षेत्र बन जाते है जो जमीन को भुरभुरा बनाते हैं। भुरभुरी मिट्टी जड़ एवं मृदास्थित मित्र जीवों को सक्रिय रखती है। जो पौधे को पानी एवं पोषण की आवश्यक मात्रा लेने मे सहायक होती है। जिस कारण सडऩ – गलन की बीमारी का प्रसार भी कम होता है।
जल एवं पोषण का सही इस्तेमाल: ज़ेबा के कारण जरूरत के अनुसार उपलब्ध होने वाला पानी एवं मिट्टी का भुरभुरापन पौधे की जड़ों को सक्रिय बनाकर पानी एवं पोषण का पूरा इस्तेमाल करते हंै, जो अंत में ज्यादा उपज में परिवर्तित होता है।
जैव विघटन के बाद बढ़ाये सेंद्रीय कर्ब: ज़ेबा स्टार्च निर्मित होने के कारण उसका जैव विघटन होकर उसका सेंद्रिय कर्ब जमीन में मिल के जमीन को स्वस्थ बनाता है।
सभी प्रकार की जमीन के लिए सुरक्षित: ज़ेबा का श्च॥ न्युट्रल याने 7 है एवं स्टार्च निर्मित होने के कारण ज़ेबा जमीन को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है।
ज़ेबा से किसान को क्या लाभ मिलता है?
- एक समान अंकुरण, सशक्त फसल स्थापना
- पानी एवं पोषण के तनाव के कारण फसल की कमजोरी, फूल एवं फल्लियों का गलना जैसी समस्या हो कम
- उम्मीद से ज्यादा उपज एवं गुणवत्ता
- पानी, पोषण एवं उनको उपलब्ध कराने का खर्चा हो कम
- उम्मीद से ज्यादा मूल्य
ज़ेबा की प्रयोग विधि |
मात्रा : 5 किग्रा/एकड़ |
ध्यान दे : ज़ेबा जमीन के अंदर 4 से 6 इंच जड़ों की कक्षा में जाना चाहिए |
बुआई से पहले – बेड तैयार करते वक्त खाद के साथ |
बुआई के वक्त – बीज एवं खाद डबल सीड ड्रिल के साथ, खाद समेत बीजों के कुंड में |
बुआई के बाद – ड्रिपर के नीचे – रिंग विधी – पिट विधी |
फसल | मात्रा प्रति एकड़ | प्रयोग की विधि |
कपास, मकई, सोयाबीन, | 5 किग्रा | – बुआई से पहले आखरी जुताई में |
मूंगफली, सरसो, उड़द, मूंग, | – खाद के साथ मिट्टी के अंदर, अथवा | |
अरहर, चना, गेहू, ज्वार, बाजरा, | – बुआई के वक्त बीज एवम खाद डबल | |
चारे की फसलें | – सीड ड्रिल के साथ, खाद समेत बीजों के कुंड में, अथवा | |
– बुआई के बाद 15-25 दिन में पहिली हलनी/बखर/डोरा चलाते वक़्त खाद क साथ | ||
धान पनेरी (नर्सरी) | 1 किग्रा | – पनेरी (नर्सरी) तैयार करते वक़्त DAP के साथ फाटा/ सुहागा मारते (प्लॅंकिंग) समय जमीन के नीचे |
धान (मुख्य खेत) | 5 किग्रा | – आखरी मचाई (पडलिंग) के वक्त |
गन्ना | 5 किग्रा | – रोपाई से पहले बनाई गई नाली में खाद के साथ, अथवा |
– रोपाई के बाद 60-90 दिन के बीच मिट्टी चढ़ाते वक्त खाद के साथ | ||
सब्जियां | 5 किग्रा | – मल्चिंग या बिना मल्चिंग दोनों के लिए |
– रोपाई से पहले बेड तैयार करते वक्त खाद के साथ मिट्टी के अंदर, अथवा | ||
– रोपन के बाद ड्रिप के नीचे मिट्टी के अंदर | ||
– पौध के बाजू से रिंग बना के मिट्टी के अंदर जड़ों की कक्षा में |
फसल | पौध/एकड़ | जेबा ग्राम/पेड़ |
आम, तेल पाम,लीची, काजू | 50-70 | 100-70 |
खजूर, चीकू, नारियल | ||
बादाम, सेब, नीबूवर्गीय, किन्नू | 80-140 | 60-40 |
अंजीर, कोकोआ, रबर | 160-180 | 30 |
अनार | 320 | 15 |
सुपारी | 500 | 10 |
अंगूर, केला, पपीता, कॉफी | 900-1235 | 7.5-5 |