फसल की खेती (Crop Cultivation)

सब्जियों की पौधशाला तैयार कर और अधिक लाभ कमाएं

सब्जियों की पौध तैयार करने से लाभ :

  • सब्जियों कि छोटे बीजो कि बुआई लम्बे क्षेत्रों में करने पर देखभाल संभव नहीं है जो छोटे स्थानों पर आसानी से किया जा सकता है।
  • पौधशाला में पौध तैयार करना आसान है इससे मेहनत, लागत, व्यय आदि की बचत होती है।
  • खेत की तैयारी हेतु पर्याप्त समय मिल जाता है।
  • उपयुक्त वातावरण प्रदान कर प्रतिकूल मौसम में पौध तैयार की जा सकती है।
  • पौध को बेच कर धन अर्जित किया जा सकता है।

पौधशाला हेतु स्थान का चुनाव:

  • पौधशाला के चयनित स्थान कि मिट्टी हल्की हो जैसे बलुई दोमट अथवा दोमट जिसका पी.एच. मान 7 के आसपास होना चाहिए जिससे बीज का जमाव सुचारू रूप से हो सके।
  • पौधशाला में उचित सिंचाई कि व्यवस्था होनी चाहिए।
  • पौधशाला का निर्माण जिस स्थान पर किया जा रहा है वहां सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता दिन भर बनी रहे इसका ध्यान देना चाहिए।
  • पौधशाला को आस-पास की जमीन से थोडा़ ऊंचा बनाना चाहिए ताकि जल निकास या जल भराव की समस्या से बचा जा सके।
  • पौधशाला का स्थान इस जगह सुनिश्चित करना चाहिए जहां देखरेख व निरीक्षण में आसानी हो।

पौधशाला की तैयारी:

  • पौधशाला बनाने वाली जगह की एक बार गहरी जुताई अवश्य करें। द्य पौधशाला वाले स्थल से सभी खरपतवारों को निकाल दें।
  • क्यारी में प्रति वर्ग मीटर की दर से 2 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट या 500 ग्राम केंचुएं की खाद मिलायें।
  • पौध की मिट्टी सख्त होने कि दशा में प्रतिवर्ग की दर से 2-3 किलोग्राम रेत अवश्य मिलायें इससे बीज के जमाव में सुगमता होती है।
    भूमि शोधन: हानिकारक जीवाणुओं से बचाव के लिए भूमि शोधन अत्यन्त आवश्यक है। यह कई प्रकार से किया जाता है-

 मृदा सोलेराइजेशन (मृदा सौर्यीकरण) :
पौधशाला की मृदा को सूर्य के प्रकाश में शोधन करने की प्रक्रिया को मृदा सोलेराइजेशन कहते हैं। इसके लिए सर्वप्रथम पौधशाला वाली जगह में क्यारी बना कर जुताई करें तथा सिंचाई कर मिट्टी को नम कर ले। अब क्यारी को 200 गेज वाली पारदर्शी पॉलीथिन की चादर से इस प्रकार ढंकते हैं कि अन्दर की हवा बाहर न निकले। यह कार्य ग्रीष्मकाल में करते हैं। ऐसा करने से क्यारी का तापमान 48-52 डिग्री से.ग्रे. तक पहुंच जाता है जिससे हानिकारक कीट जीवाणुओं का नाश होता है। 2-3 सप्ताह बाद इन चादरों को हटाकर बीज की बुवाई करते हैं। यदि मृदा सोलेराइजेशन के समय पॉलीथिन ढकने से पहले मिट्टी में सरसों कुल के पौधे को काट कर मिला दिया जाये तो फ्यूजेरियम, पीथियम तथा स्कलेरोसियम रोग का प्रभाव कम होता है। साथ ही मृदा में उपस्थित फॉस्फोरस, पोटाश व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता पौधे हेतु बढ़ जाती है।
जैविक विधि:
पौधशाला में डैम्पिंग ऑफ  बीमारी से बचाव के लिए यदि मृदा सोलेराइजेशन के बाद ट्राइकोडर्मा की विभिन्न प्रजातियां, स्यूडोमोनास तथा एस्परजिलस नाइजर आदि प्रयोग भूमि शोधन में करें तो फायदा प्राप्त होता है लेकिन इनके प्रयोग में कुछ सावधनियां बरतनी पड़ती है:-

  • पौध में कार्बनिक खाद की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए ताकि बढ़वार (जैव पदार्थ) अधिक हो सके।
  • जिस भी जैविक पदार्थ का उपयोग करने से पहले सुनिश्चित करें कि इसमें पर्याप्त नमी हो।
  • जैव पदार्थों को मिलाते समय यह ध्यान देना चाहिए कि मृदा में पर्याप्त नमी हो।
  • जैव पदार्थों के प्रयोग के बाद पौधशाला को वर्षा व धूप से बचाना चाहिए।
  • इन पदार्थों का प्रयोग 10-25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से करना चाहिए।

रसायनिक विधि:
यदि पौधशाला की उपरोक्त विधियों से शोधन नहीं किया गया है तो कीट नियंत्रण हेतु फ्यूराडान या क्लोरोपायरीफास दवा 5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से पौधशाला में मिलाना चाहिए साथ ही फफूंद जनित रोगों से बचाने हेतु कैप्टान या थीरम 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से पौधशाला में मिलायें।
बीज शोधन:
बीज शोधन कैप्टान या थीरम से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें। मिर्च व बैंगन के बीज का शोधन बाविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से करना लाभदायक है। सब्जियों के बीज जिनके छिलके कठोर हो जैसे टिण्डा, करेला, तरबूज आदि को कैप्टान के 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में भिगोकर बुवाई करें। भिगोने की अवधि करेले में 24-36 घण्टे, चिचिण्डा, तरबूज व टिण्डा में 10-12 घण्टे तक रखते हैं। बीज का शोधन ट्राइकोडरमा से भी कर सकते हैं। इसके लिए 6-10 ग्राम जैव पदार्थ बीज में इस प्रकार मिलावें कि यह बीज पर चिपक जाये इसके उपरान्त छाया में सुखा लें फिर बुवाई करें।
क्यारियां बनाना:
पौधशाला में क्यारियां मौसम के अनुसार अलग-अलग प्रकार से बनानी चाहिए। वर्षाकाल में क्यारियां जमीन से 15-20 से.मी. ऊपर रखनी चाहिए जबकि रबी मौसम में पौध समतल क्यारियों में उगा सकते हैं। क्यारियों की चौड़ाई 1 मीटर और लम्बाई आवश्यकतानुसार 3-5 मीटर रखते हैं।
बीज की बुवाई:  बीज की बुवाई प्रमुख रूप से दो प्रकार से की जाती है:-
(अ) छिटकवा विधि: क्यारियों में बीज की बुवाई किसान भाई ज्यादातर छिटक कर करते हैं जिससे बीज एक समान क्यारी में नही गिरते। जमाव होने पर किसी स्थान पर घना तो किसी स्थान पर विरल रूप में पौधे दिखते हैं। घना होने के कारण तने पतले व लम्बे हो जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पत्तियों के ज्यादा वजन होने पर पौधे गिरने लगते हैं। यदि छिटकवा विधि से ही बुवाई करनी हो तो जमाव के बाद इनका विरलीकरण करना लाभप्रद होता है।
(ब) पंक्तियों में बुवाई करना:  यह विधि सर्वोत्तम मानी जाती है। पौधे एक समान दूरी पर होने के कारण स्वस्थ होते हैं। इस विधि से बुवाई करते समय क्यारी के चौड़ाई के समान्तर 5 से.मी. दूरी पर 0.5 से.मी. गहरी पंक्तियां बना लेते हैं। बीज डालने के बाद इसको मिट्टी से ढक देते हैं। यदि पौधे सघन हो तो विरलीकरण करना चाहिए।
 क्यारी को पलवार से ढकना:
क्यारियों में बीजों के बोने के बाद उपलब्ध पलवार जैसे पुआल, सरकण्डा, सरपत, गन्ने के सुखे पत्ते, अन्य घास फूस की पतली तह से ढक देते हैं ताकि नमी बनी रहे, साथ ही पानी सीधे बीजों पर न पड़े। प्रारम्भ के 5-6 दिन हजारे कि सहायता से हल्की सिंचाई करें ताकि क्यारी की मिट्टी बैठ न जाये। यदि वर्षा का मौसम है तो इसको बरसात के समय क्यारियों को ढक दें। जैसे ही अंकुरण दिखाई दे इन पलवारों को बाहर निकाल देना चाहिए। यदि ऐसा न करेंगे तो पौध पलवार में फसेंगी, निकलते समय टूट जायेगी।
सिंचाई:
क्यारियों कि सिंचाई प्रारम्भ के 5-6 दिन हजारे से नियमित करें इसके बाद आवश्यकतानुसार पौधे निकलने से 4-5 दिन पूर्व सिंचाई बन्द कर दे ताकि पौधों में प्रतिकूल वातावरण सहन करने की क्षमता विकसित हो जाये व पौधे कठोर हो जाये। पौधे उखाडऩे से पहले हल्की सिंचाई कर लें इससे पौधे आसानी से बाहर निकल आते हैं। यदि खेत बहुत उपजाऊ है जिससे पौधा बहुत तेज विकास करता है तो सिंचाई कम करनी चाहिए।
खरपतवार नियन्त्रण व पोषक तत्व प्रबन्धन:
क्यारियों से खरपतवारों को हाथ से निकालते रहना चाहिए। यदि व्यावसायिक स्तर पर पौधशाला तैयार कर रहें हो तो पेन्डीमिथालीन की 5 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर बीज में बुवाई के 48 घण्टे के अन्दर करें। सामान्य रूप से पौध तैयार करते समय उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा प्रतीत हो कि तैयारी के समय खादों के प्रयोग के बाद भी पौध बढ़वार नहीं ले रहा है घुलनशील उर्वरक एन.पी.के. की 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोलकर एक सप्ताह के अन्दर पर पर्णीय छिड़काव करें।

Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *