फसल की खेती (Crop Cultivation)

उड़द, मूंग की खेती और खरपतवार प्रबंधन

उड़द, मूंग की खेती और खरपतवार प्रबंधन

उड़द, मूंग की उत्पादकता दुगुनी करें – भारत वर्ष में दालें मानव आहार के रूप में विशेष रूप से देश की शाकाहारी जनसंख्या हेतु भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। टिकाऊ कृषि हेतु मृदा की उर्वराशक्ति में वृद्धि करने एवं आहार तथा चारे के विभिन्न रूपों में उपयोग आदि दलहनी फसलों के लाभ हैं। अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों द्वारा यह स्पष्ट दर्शाया जा चुका है कि उन्नतशील उत्पादन प्रौद्योगिकी अपनाकर उड़द मूंग एवं अरहर की वर्तमान उत्पादकता को दोगुना तक किया जा सकता है। दलहनी फसलों के पौधों की जड़ों पर उपस्थित ग्रंथियां वायुमण्डल से सीधे नत्रजन ग्रहण कर पौधों को देती हैं, जिससे भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है। दलहनी फसलें खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा अधिक सूखारोधी होती हैं। भारत वर्ष में अरहर, उड़द एवं मूंग की खेती क्रमश: 44.59, 50.31, 40.20 लाख हे. में की जाती है, इनकी उत्पादकता क्रमश: 937, 467 एवं 653 किग्रा./हे. है (2017-18)। खरीफ की दलहनी फसलों में उड़द मूंग एवं अरहर प्रमुख है। मध्य प्रदेश में उड़द मूंग एवं अरहर को लगभग 22.50 लाख हेक्टेयर भूमि में बोया जाता है (2017-18)।

उड़द एवं मूँग की उन्नत उत्पादन तकनीक

जलवायु : उड़द एवं मूंग की फसल को नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। उड़द को 50-60 से.मी. वर्षा क्षेत्र में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसकी वनस्पतिक बढ़वार के लिये 25-30 डिग्री से.ग्रे. तापमान उपयुक्त होता है। फूल अवस्था पर अधिक वर्षा होना हानिकारक है। फली पकने की अवस्था पर वर्षा होने पर दाना खराब हो जाता है। उड़द एवं मूंग की खरीफ एवं ग्रीष्मकालीन खेती की जा सकती है।

भूमि का चुनाव एवं उसकी तैयारी : उड़द एवं मूंग की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। लेकिन इसकी खेती के लिये अच्छे जल निकास एवं 7.0 पी.एच. मान वाली दोमट भूमि अत्यधिक उपयुक्त है। हल्की एवं कम उपजाउ भूमि पर भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। उड़द एवं मूंग के लिये क्षारीय व अम्लीय भूमि उपयुक्त नहीं है। देशी हल अथवा कल्टीवेटर से एक बार आड़ी-खड़ी जुताई करें। इसके बाद एक बा बखर चला कर पाटा लगा कर खेत को समतल करें।

बोने का समय : मानसून की वर्षा 3-4 इंच हो जाये तब उड़द एवं मूंग की बोनी करें। जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के द्वितीय सप्ताह तक उड़द एवं मूंग बोने का उपयुक्त समय है। ग्रीष्मकालीन बुवाई मार्च के प्रथम सप्ताह से तृतीय सप्ताह तक करें।

बीजोपचार : बीज जनित रोगों से बचाव के लिए फफूंदनाशक दवाओं से बोने के पूर्व बीजोपचार अवश्य करें। कार्बेन्डाजिम थायरम 3 ग्रमा/किलो (1:2) अथवा वीटावैक्स पावर (कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत+थायरम 37.5 प्रतिशत) 3 ग्रा./कि. (1.5:1.5) ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्रमा/कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें। इसके पश्चात राइजोबियम (राइजोबियम फैजियोलाई) कल्चर 5.0 ग्राम पी.एस.बी. कल्चर 5.0 ग्राम/किलो बीज की दर से कल्चर से संवर्धित करें। कल्चर से संवर्धित बीज को छाया में सुखाकर बोनी करें।

बीज दर : उड़द एवं मूंग की अधिक पैदावार लेने के लिये 3.3 लाख पौधे/हे. होना चाहिये। उपर्युक्त पौध संख्या प्राप्त करने हेतु खरीफ में बीज की मात्रा 20 कि.ग्रा./हे. एवं ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 25 कि.ग्रा./हे. की दर से बोयें।

खाद एवं उर्वरक : उड़द एवं मूंग की अच्छी पैदावार लेने के लिये खरीफ फसल में गोबर खाद 5 टन/हे. के साथ 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से पूरी मात्रा बोनी के समय में बीज के नीचे या कूड़ में 5-7 से.मी. कहराई पर डालें। बीज एवं खाद को मिलाकर न बोयें, अलग-2 बोंये, जिससे अंकुरण प्रभावित नहीं होगा और खाद का उपयोग भी पूरा होगा।

बोने की विधि: उड़द एवं मूंग की बोनी दुफन या सीड कम फर्टि ड्रील से 30-45 से.मी. पर मेड-नाली/कूड़ पद्धति से 3-5 सें.मी. गहराई पर बोयें। पौधों का अंतराल 10-15 से.मी. रखें। ग्रीष्मकालीन उड़द फसल को 20-30 से.मी. कतार दूरी पर बोयें। पौध अंतराल 10 से.मी. का रखें। खरीफ मौसम में अनुकूल वातावरण मिलने से पौधों की वृद्धि अच्छी होती है। इसलिये कतार एवं पौध दूरी अधिक रखी जाती है। 20 कतारों के बाद एक कूड जल निकास तथा नमी संरक्षण हेतु खाली छोडऩा चाहिये।

अंतरवर्तीय फसल प्रणाली : म.प्र. में उड़द एवं मूंग की तिल, ज्वार एवं मक्का के साथ मिश्रित खेती पारम्परिक पद्धति के रूप में हो रही है। क्योंकि यह फसल अन्य सह फसल से प्रतिस्पर्धा नहीं करती है। म.प्र. में निम्न अन्त: फसल पद्धति लाभदायक है –

उड़द/मूंग – ज्वार (2:2 कतार अनुपात)
उड़द/मूंग – मक्का (2:1 कतार अनुपात)
उड़द/मूंग – तिल (3:1 कतार अनुपात)
उड़द/मूंग – अरहर (2:1 कतार अनुपात)

फसल चक्र : उड़द एवं मूंग खरीफ मौसम की कम अवधि में पकने वाली फसल है। इसलिये रबी मौसम में उगाई जाने वाली सभी फसलों के फसल चक्र में उगाई जा सकती है। निम्न फसल चक्र लाभदायी है –

उड़द / मूंग – चना
उड़द / मूंग – मसूर
उड़द / मूंग – सरसों
उड़द / मूंग – गेहूं
उड़द / मूंग – मटर

जल प्रबंधन एवं जल निकास : खरीफ उड़द एवं मूंग में सिंचाई देने की आवश्यकता नहीं होती है। परंतु समुचित जल निकास आवश्यक है। उड़द एवं मूंग जल भराव के प्रति बहुत संवेदनशील है। उड़द एवं मूंग को मेड़ों पर बोने से नमी संरक्षण एवं जल निकास दोनों ही होते है। उड़द एवं मूंग की 20 कतारों के बाद एक कूड़ छोडऩा चाहिए, जिससे अधिक वर्षा होने पर अतिरिक्त जल निकल जायेगा और कम वर्षा होने पर कूड़ को बंद करके नमी संरक्षण कर सकते हैं। फूल एवं फली बनने की अवस्था पर नमी की कमी होने पर एक सिंचाई देने से पैदावार अच्छी बढ़ जाती है। ग्रीष्मकालीन उड़द एवं मूंग में 5-6 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है।

कटाई, गहाई एवं भण्डारण : फसल पकने पर ही कटाई करें। जब पत्तियां काली पडऩे लगे, 80 प्रतिशत फलियां काली पड़कर सूखने लग जाये, दानों में 14-16 प्रतिशत नमी हो, दानों में कड़ापन का आभास हो तब फसल की कटाई करें। कटाई सुबह के समय करेें। खरीफ फसल सितम्बर-अक्टूबर तथा ग्रीष्मकालीन फसल मई-जून में पककर कटाई योग्य हो जाती है। कटाई के बाद 3-4 दिन तक धूप में सुखाकर ट्रैक्टर या बैलों से दावन करें या पैडल थ्रेसर से गहाई करें। हाथ पंखे से औसाई कर दानों की सफाई करें। खरीफ में शुद्ध फसल की उपज 12-14 क्विं./हे. तथा ग्रीष्मकालीन फसल की उपज 10-12 क्विं./हे. तक प्राप्त होती है। बीजों को 2-3 दिन तक धूप में सुखाकर भण्डार करें। सुरक्षित भण्डारण के लिए दानों में नमी 8 प्रतिशत से अधिक नहीं हो।

खरीफ दलहनी फसलों की कम उत्पादकता के मुख्य कारण

  • सीमांत भूमि का बोनी हेतु उपयोग करना।
  • वर्षा आधारित खेती करना।
  • फली छेदक कीट, फली मक्खी, उकठारोग, पीला मोजेक विषाणु रोग आदि कीट एवं रोगों का अत्यधिक प्रकोप।
  • खरपतवार प्रबंधन एवं पौध संरक्षण के समुचित उपाय नहीं अपनाना।
  • उन्नत किस्मों के बीज की अनुपलब्धता तथा अनुत्पादक बीजों का प्रयोग।
  • निम्नस्तरीय फसल प्रबंधन करना।
  • बीजोपचार, राइजोबियम कल्चर एवं संतुलित उर्वरक उपयोग नहीं करना।
  • शीघ्र अवधि एवं कीट-व्याधि निरोधक प्रजातियों का अभाव।
  • मौसम की प्रतिकूलता अर्थात् सूखा पडऩे की समस्या।
  • भरपूर एवं उचित पौध संख्या की कमी।
  • मशीनीकरण का अभाव अर्थात् कृषि यंत्रों का नहीं या बहुत कम उपयोग।
  • उन्नत एवं वैज्ञानिक तकनीकी ज्ञान का अभाव।

खरपतवार प्रबंधन : उड़द एवं मूंग फसल के साथ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे – महकुआ, जंगली चौलाई, सफेद मुर्ग, जंगली जूट, हजारदाना, कैना संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे – सावां जंगली ज्वार घास, बनरा बनरी, डायनेबरा (काटन घास) एवं मोथा परिवार के खरपतवार जैसे – मोथा आदि खरपतवार उगते है। उड़द एवं मूंग के खेत की बोनी के 30-35 दिन तक खरपतवार सेे मुक्त रखें। उड़द एवं मूंग में निम्नलिखित खरपतवारनाशक दवाईयों के प्रयोग से प्रभावी नियंत्रण होता है। दवाओं का उपयोग 500 लीटर पानी /हे. के साथ करें।

रासायनिक नामव्यवहारिक नामउपयोग का समय मात्रा ली./हे.
पेंडीमिथाईलिन 30 ईसीस्टांप, पेंडीस्टारअंकुरण से पूर्व3
फ्लूक्लीरालिन 45 ईसीबासालिन बुवाई से पूर्व 1.5
एलाक्लोर 50 ईसीलासो, कैच, अटैकअंकुरण से पूर्व3
ऑक्सीपल्यूओरफेन 23.5 ईसीगोल ऑक्सीगोल्डअंकुरण से पूर्व0.8
क्वीजालोफाप ईथाइल 5 ईसीटरगासुपर बुवाई के 14-18 दिन बाद 1
इमाजेथापायर 10 एसएलपरस्यूट बुवाई के 14-18 दिन बाद0.7
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