फसल की खेती (Crop Cultivation)

लहसुन से लें डबल उत्पादन

औषधीय गुणों से भरपूर लहसुन

औषधीय गुणों से भरपूर लहसुन के निर्यात से अपार विदेशी मुद्रा अर्जन की प्रबल संभावनायें हैं क्योंकि लहसुन उत्पादन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश देश में अव्वल है। परंतु हमारी उत्पादकता काफी कम है, जिसके मूल में कृषकों की उन्नत तकनीकों के प्रति जानकारी का अभाव है।

भूमि

मध्यम काली दोमट भूमि जिसमें जीवों में पदार्थ तथा पोटाश भरपूर हो, साथ ही जहां जल निकासी सही हो।

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भूमि की तैयारी

खेत तैयार करने के लिए ट्रैक्टर या देशी हल की सहायता से भूमि की हल्की जुताई करें क्यों लहसुन की जड़ें भूमि में 10-12 सेमी से अधिक गहरी नहीं जाती है। इसके बाद आड़ा बखर चलाकर भूमि को भुरभुरा बनाएं और पाटा चलाकर खेत समतल कर लें। इस प्रकार तैयार खेत में अपनी सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियां और सिंचाई की नालियां बना लें।

प्रमुख किस्में

एग्रीफाउण्ड सफेद (जी-41), यमुना सफेद (जी-1), यमुना सफेद-2 (जी-50),  यमुना सफेद-3 (जी-282), एग्रीफाउण्ड पार्वती, यमुना सफेद-4 (जी-323)

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खाद एवं उर्वरक

लहसुन की अच्छी पैदावार लेने के लिए 15-20 टन प्रति हैक्टेयर पकी हुई गोबर खाद को खेत में अंतिम तैयारी के समय भूमि में मिला देना चाहिए। इसके अलावा 260 किलो यूरिया, 375 किलोग्राम फास्फोरस एवं 60 किलोग्राम पोटाश एवं 375 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नाइट्रोजन की एक तिहाई तथा फास्फोरस एवं पोटाश की संपूर्ण मात्रा बुआई के समय दें। शेष नाइट्रोजन की मात्रा को बराबर हिस्सों में बुआई के 20-25 एवं 40-45 दिन बना देना लाभदायक है।

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लहसुन की उत्पादन वृद्धि में सूक्ष्म तत्वों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। बोरेक्स का 10 किग्रा/ हेक्टेयर की दर से उपयोग कंदों का आकार तथा उत्पादन को बढ़ाता है।

बीज एवं बुआई

सामान्यत: सितम्बर-अक्टूबर लहसुन लगाने का उचित समय है। लहसुन की बुआई इसकी कलियां द्वारा होती है। प्रत्येक कंद में औसतन 15-20 कलियां होती हैं। बुआई से पूर्व कलियों का सावधानीपूर्वक अलग कर लें। परंतु ध्यान रखें कि कलियों के ऊपर की सफेद पतली झिल्ली को नुकसान न हों। बुआई के लिए 8-10 मिमी, रोगरहित, सुगठित कलियों का ही चुनाव करें। प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि कलियों से अधिकतम उपज प्राप्त होती है। इस बात का ध्यान अवश्य रखें की कंद के बीच लंबी, बेलनाकार कलियों को न लगाएं क्योंकि इस प्रकार की कलियों से अल्प विकसित कंद प्राप्त होते है। बुआई से पूर्व कलियों को फफूंदनाशक दवा (बाविस्टीन) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 2 मिनट तक ड़ुबोकर उपचारित करें। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए लगभग 4.5-5 क्विंटल कलियों की आवश्यकता होती है।

तैयार क्यारियों में 10-15 सेमी दूरी पर लाइने बना लें इन लाइनों में 8-10 सेमी दूरी पर कलियों की बुआई करें। कलियों को 5 से 7 सेमी की गहराई पर नुकीला भाग ऊपर रखकर बुवाई करते हैं।

सिंचाई

लहसुन की बुआई के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य करना चाहिए ताकि कलियों का अंकुर अच्छा हो सकें। ध्यान रखे की पौधों की प्रारंभिक अवस्था में भूमि में नमी की कमी न हो वरना पौधे की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लहसुन की कोशिकायें बड़ी या पतली सतह वाली होने के कारण इसके पौधों से जल का उत्स्वेदन अधिक होता है। अत: पौधों से हुई जल की कमी की पूर्ति के लिए शीघ्र सिंचाई करने की आवश्यकता है।

खरपतवार नियंत्रण  

खेत को खरपतवार रहित रखने के लिए पहली निराई-गुड़ाई बुआई के 20-25 दिन बाद तथा दूसरी 40-50 दिन बाद करनी चाहिए। पेंडीमिथालीन 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्व लहसुन की बुआई के एक दिन बाद डालने से खरपतवार नियंत्रित होते हैं तथा कंदों की अच्छी उपज प्राप्त होती है।

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खुदाई

लहसुन के कंद 130-180 दिन में खोदने वाले हो जाते है। इसका पौध जब ऊपर से सूखकर झुकने या गिरने लगता है तो यही अवस्था लहसुन की खुदाई के लिए उपयुक्त होती है। इस अवस्था में प्राप्त कंद अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं।

  • डॉ. आईएस नरुका
  • डॉ. आरके शर्मा 
  • डॉ. आरपी पटेल,  मो. : 9425977306 
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