फसल की खेती (Crop Cultivation)

राइजोबियम कल्चर से मिलते हैं अच्छे परिणाम   

  • गिरिराज  चौधरी
    राजमाता विजियाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर
  • हंसा चौधरी    
    बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी    

 

14 नवम्बर 2022, राइजोबियम कल्चर से मिलते हैं अच्छे परिणाम  – भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसमें लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। भारत दलहनी फसलों का एक प्रमुख उत्पादक देश है, विश्व में दलहन उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है। जिसमें विभिन्न प्रकार के दलहनी फसलों की खेती की जाती है जैसे चना, मूँग, मटर, उड़द, अरहर, लोबिया, मूँगफली, सोयाबीन इत्यादि,  जो शाकाहारी भोजन में प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत है, दलहनी फसलों में जैव उवर्रकों के प्रयोग करने से वायुमंडल में उपस्थित नत्रजन पौधों को नाइट्रेट के रूप में सुगमता से उपलब्ध होती है तथा मृदा में पहले से मौजूद अघुलनशील पोषक तत्व जैसे फास्फोरस आदि घुलनशील होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं। चूंकि जीवाणु प्राकृतिक है, इसलिए इनके प्रयोग से भूमि की उवर्राशक्ति बढ़ती है और पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव भी नहीं पड़ता। जैव उर्वरक रसायनिक उवर्रकों के पूरक भी है, रसायनिक उर्वरक के पूरक के रूप में जैव उर्वरक के प्रयोग से हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।

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जैव उर्वरक

जैव उर्वरक एक जीवित उर्वरक है जो सूक्ष्मजीव जैसे जीवाणु, कवक आदि किसी नमी धारक पदार्थ के साथ मिश्रित होते हैं जो भूमि में डालने पर उसकी उपज बढ़ाने के साथ साथ उर्वराशक्ति में भी वृद्धि का कार्य करते हैं। सूक्ष्मजीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ के साथ तैयार किये जाते हैं यह प्राय: ‘कल्चर’ के नाम से बाजार में उपलब्ध है।

राइजोबियम क्या है ?

दलहनी (फलीदार) पौधों की जड़ों में ग्रंथियां पाई जाती हंै उनमें राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की पैदावर बढ़ाने के साथ-साथ उसकी उर्वरा शक्ति भी बढ़ाने में सहायक है। जो दलहनी फसलों में प्रयोग किया जाता है।                                                                                                                                                                       

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राइजोबियम कल्चर के लाभ

राइजोबियम जीवाणु वातावरण मे व्याप्त नत्रजन का स्थिरीकरण कर पौधों की जड़ों तक घुलनशील अवस्था में पहुंचाते हैं। अत: दलहनी फसलों में रसायनिक खाद की कम आवश्यकता  होती है। राइजोबियम के प्रयोग से दलहन  की उपज में कई प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होती है (अपवाद=राजमा)। राइजोबियम के प्रयोग से भूमि में नत्रजन की मात्रा बढ़ जाती है तथा उर्वरा बनी रहती है। दलहनों की जड़ों में विद्यमान जीवाणुओं द्वारा संचित नत्रजन अगली फसल द्वारा ग्रहण किया जाता है। राइजोबियम द्वारा यौगिकीक्रत नत्रजन कार्बनिक रूप में होने के कारण पूर्ण रूप से पौधों को प्राप्त होता है

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सावधानियाँ
  • प्रत्येक दलहन विशेष को उसके विशेष कल्चर से ही उपचारित करें।
  • कल्चर के पैकेट पर लिखी अंतिम तिथि से पहले  प्रयोग करें।
  • बीज उपचारित करने की सारी तैयारियाँ करने के बाद कल्चर का पैकेट खोलें।
  • बीजों को उपचारित करके कुछ समय के लिए छायादार जगह पर सुखाएँ, फिर सुखाने के तुरंत बाद बुवाई करें।
  • यदि बीजों को कल्चर के साथ-साथ कीटनाशक व फफूंदनाशक रसायनों से उपचारित करना हो तो क्रमश: फफूंदनाशक, कीटनाशक और अंतत: राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।
  • गुड़ और पानी का घोल ठंडा होने के उपरांत उसमें धीरे-धीरे कल्चर को डालें।
  • बीज उपचार करते समय हाथों के दस्ताने व मुँह पर मास्क   अवश्य पहनें।
बीज उपचारित करने की विधि
  • बोने से पूर्व बीज को साफ पानी से धोकर सुखा लें।
  • बीज उपचारित करने से पहले 100 ग्राम गुड़ आधा लीटर पानी में डालकर पन्द्रह मिनट तक उबालें। यदि गुड़ न हो तो गोंद का भी प्रयोग किया जा सकता है।
  • घोल को अच्छी तरह ठंडा होने पर इस घोल में एक पैकेट राइजोबियम जीवाणु कल्चर का घोल डालें, और अच्छी तरह कल्चर को घोल में मिलायें।
  • आधा एकड़ के लिए पर्याप्त बीज को कल्चर के घोल में डालकर साफ हाथों से अच्छी तरह मिला दें।
दलहनी फसलों में प्रयोग होने वाली राइजोबियम की विभिन्न प्रजाति

कल्चर                                      फसल

 राइजोबियम मेलीलोटी            मेथी, रिजका

राइजोबियम टाइफोली             बरसीम

राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम      मटर, मसूर

राइजोबियम फेसीयोली            सेम

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राइजोबियम जेपोनिकम           मूँगफली,,सोयाबीन अरहर, लोबिया आदि

 

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