बाजरे की लाभकारी खेती
- राजसिंह , शैलेन्द्र कुमार , भगवान सिंह,
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद,
नई दिल्ली
12 जुलाई 2021, बाजरे की लाभकारी खेती – बाजरा शुष्क क्षेत्र में अनाज वाली प्रमुख फसल है। बाजरा वर्षा पर आधारित असिंचित एवं सिंचित क्षेत्रों में खरीफ ऋतु में उगाया जाता है अनाज के साथ यह चारे की भी अच्छी उपज देता है। बाजरा पौष्टिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण फसल है। इसमें 155 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा एवं 67 प्रतिशत कार्बोहाइट्रेट पाया जाता है। राज्य के पश्चिमी भाग में बाजरे की फसल 23 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती है, लेकिन इसकी औसत उपज बहुत ही कम है। निम्न उन्नत तकनीकियों के प्रयोग द्वारा बाजरे की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
भूमि एवं उसकी तैयारी
बाजरे की खेती दोमट, बलुई दोमट एवं बलुई भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है। भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिये। अधिक समय तक खेत में पानी भरा रहना फसल को नुकसान पहुंचा सकता हैं। वर्षा के पश्चात प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिये। इसके पश्चात हैरो द्वारा एक क्रौस जुताई करके पाटा लगा कर खेत को ढेले रहित एवं समतल कर दें।
बीज दर एवं बुवाई की विधि
बाजरे की बुवाई का समय किस्मों के पकने की अवधि पर बहुत निर्भर करता है। बाजरे की दीर्घावधि (80-90 दिनों) में पकने वाली किस्मों की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में कर देें। मध्यम अवधि (70-80 दिनों) में पकने वाली किस्मों की बुवाई 40 जुलाई तक कर दें तथा जल्दी पकने वाली किस्मों (65-70 दिन) की बुवाई 10 से 20 जुलाई तक की जा सकती है। बाजरे की फसल के लिए 4-5 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। अच्छी उपज के लिए खेत में पौधों की उचित संख्या हो। बाजरे की बुवाई पंक्तियों में 45 से 50 सेमी. की दूरी पर तथा पौधे से पौधे की दूरी 40 से 45 से.मी. रखें।
खाद एवं उर्वरक
फसल के पौधों की उचित बढ़वार के लिए उचित पोषक प्रबंधन का होना आवश्यक है। अत: भूमि की तैयारी करते समय बाजरे की फसल के लिए 5 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद प्रयोग करें। इसके पश्चात बाजरे की वर्षा आधारित फसल में 40 किग्रा. नाइट्रोजन व 40 किग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
बुवाई करते समय 44 किग्रा. यूरिया एवं 250 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट या 97 किग्रा. डी.ए.पी. व 9.5 किग्रा. यूरिया खेत में प्रति हेक्टेयर की दर से दें। उर्वरक सीड कम फर्टिलाइजर ड्रील के द्वारा बुवाई के साथ देना लाभप्रद रहता है। शेष 20 किग्रा. नाईट्रोजन देने के लिए फसल जब एक महिने की हो जाये तो निराई-गुड़ाई करने के पश्चात यदि खेत में उचित नमी हो तो 43 किग्रा यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिडक़ाव कर देें। जहाँ पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो उस स्थिति में 60 किग्रा. नाईट्रोजन एवं 40 किग्रा. फास्फोरस की मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिये। ध्यान रहे उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की जांच के आधार पर ही करेें।
फसल चक्र
बाजरे की फसल से अधिक पैदाकर प्राप्त करने के लिए उचित फसल चक्र आवश्यक है। असिंचित क्षेत्रों के लिए बाजरे के बाद अगले वर्ष दलहन फसल जैसे ग्वार, मूंग या मोठ लें। सिंचित क्षेत्रों के लिए बाजरा – सरसों, बाजरा – जीरा, बाजरा – गेंहू फसल चक्र प्रयोग में लेें।
जल प्रबंध
पौधों की उचित बढ़वार के लिए नमी का सबसे महत्वूपर्ण स्थान है। वर्ष द्वारा प्राप्त जल के अधिक उपयोग के लिए खेत का पानी खेत में रखना आवश्यक है। इसके लिए खेत की चारों तरफ मेड़बन्दी करें। इसके द्वारा खेत का पानी बाहर बहकर नहीं जायेगा तथा भूमि का जल कटाव से बचाव भी किया जा सकेगा। भूमि में उपलब्ध नमी का वाष्पीकरण द्वारा नुकसान को रोकने के लिए फसल की पंक्तियों के बीच बिछावन का प्रयोग लाभप्रद रहता है। बिछावन के लिए खरपतवार या फसल के अवशेषों को प्रयोग में लिया जा सकता हैं। इसके अतिरिक्त फसल की बुवाई, मेड एवं कूंड विधि द्वारा वर्षा जल गहरे कूडों में इक_ा जो जाता है तथा खेत में नमी अधिक दिनों तक संचित रहती है। जिसके द्वारा फसल की अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
सिचिंत क्षेत्रों के लिए जब वर्षा द्वारा पर्याप्त नमी न प्राप्त हो तो समय समय पर सिंचाई करें। बाजरे की फसल के लिए 3-4 सिंचाई पर्याप्त होती हैं ध्यान रहे दाना बनते समय खेत में नमी रहे। इससे दाने का विकास अच्छा होता हैं, एव दाने व चारे की उपज में बढ़ोतरी होती है।
अच्छी अदरक की फसल कैसे प्राप्त करें
पपड़ी प्रबंधन
फसल की बुवाई के बाद उगने से पहले वर्षा आ जाये तथा वर्षा के बाद तेज धूप निकल जाये तो भूमि की उपरी सतह सख्त हो जाती है, तथा सूखकर पपड़ी बनने के कारण बीज अंकुरित होकर बाहर नहीं आ पाता। पपड़ी बनने का मुख्य कारण भूमि की भौतिक संरचना है। पपड़ी की समस्या से बचने के लिए कूंडों में 8-10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करनालाभ दायक रहता है।
सकुल किस्में | |||
किस्म | पकने की अवधि | अनाज की औसत | चारा की औसत |
(दिनों में) | उपज (कि.ग्रा./हे.) | उपज (कि.ग्रा./हे.) | |
राज 171 | 82-87 | 1200-1500 | 4000-4200 |
सी जेड पी 9802 | 74-82 | 1400-1800 | 4000-4500 |
आईं सी टी पी 8203 | 70-75 | 1500-2000 | 3500-4000 |
एम पी 383 | 75-80 | 1500-2000 | 3500-4000 |
संकर किस्में | |||
किस्म | पकने की अवधि | औसत अनाज | उपज |
(कि.ग्रा./हे.) | (कि.ग्रा./हे.) | ||
एच एच बी 67 | 65-70 दिन | 1200-1500 | 2000-2500 |
जी एच बी 538 | 70-75 दिन | 1700-1800 | 3000-3500 |
आर एच बी 121 | 75-80 दिन | 1800-2200 | 3200-3500 |
जी एच बी 719 | 70-75 दिन | 1500-1800 | 3500-4000 |
आई सी एम एच-356 | 75-80 दिन | 1500-1800 | 3500-4000 |