गुलाबी तना छेदक से बचाव: ICAR ने दिए समाधान के व्यावहारिक सुझाव
20 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: गुलाबी तना छेदक से बचाव: ICAR ने दिए समाधान के व्यावहारिक सुझाव – आईसीएआर भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, ने गेहूं की फसल में गुलाबी तना छेदक के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए किसानों के लिए व्यावहारिक सुझाव जारी किए हैं। यह कीट, विशेष रूप से चावल-गेहूं प्रणाली में शून्य जुताई वाले खेतों में, फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाता है और पौधों की वृद्धि और उपज को प्रभावित करता है। संस्थान द्वारा सुझाए गए ये समाधान किसानों को इस कीट से बचाव के प्रभावी और टिकाऊ उपाय अपनाने में मदद करेंगे, जिससे फसल को सुरक्षित रखते हुए उत्पादन बढ़ाया जा सके।
गुलाबी तना छेदक नियंत्रण
गुलाबी तना छेदक कीट का प्रकोप अधिकतर उन खेतों में देखा जाता है जहां चावल-गेहूं प्रणाली के तहत गेहूं की शून्य जुताई वाली खेती की जाती है। इस कीट से प्रभावित पौधे पीले हो जाते हैं और आसानी से उखड़ जाते हैं। पौधे की जड़ों पर गुलाबी रंग के कैटरपिलर देखे जा सकते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए, गुलाबी तना छेदक दिखने पर क्विनालफोस (ईकालक्स) 800 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करें। इसके अलावा, समय पर सिंचाई भी इस कीट से होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक होती है।
अन्य सामान्य सुझाव
1. क्षेत्र और परिस्थितियों के अनुसार उपयुक्त किस्म का चयन करें– अपने क्षेत्र और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, देर से बुवाई के लिए उपयुक्त गेहूं की किस्म का चयन करें ताकि फसल की वृद्धि और उपज पर कोई प्रभाव न पड़े।
2. अन्य क्षेत्रों की किस्मों से बचें– रोगों की संवेदनशीलता और संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए, अन्य क्षेत्रों की किस्मों को न उगाएं।
3. पानी और लागत की बचत के लिए विवेकपूर्ण सिंचाई करें– खेतों में समय पर और सावधानीपूर्वक सिंचाई करें ताकि पानी की बचत हो और लागत में कटौती हो। फसल को उर्वरक, सिंचाई, शाकनाशी और कवकनाशी का संतुलित उपयोग करते हुए प्रबंधित करें।
4. मौसम पर ध्यान दें– सिंचाई से पहले मौसम का पूर्वानुमान अवश्य जांचें। यदि बारिश की संभावना हो, तो सिंचाई टाल दें ताकि जलभराव से फसल को नुकसान न हो।
5. फसल के पीलापन पर ध्यान दें– अगर फसल में पीलापन दिखाई दे तो नाइट्रोजन (यूरिया) का अधिक उपयोग न करें। कोहरे या बादल वाले मौसम में भी नाइट्रोजन का प्रयोग करने से बचें।
6. पीले रतुआ की नियमित निगरानी करें– फसल पर पीले रतुआ रोग का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करें। यदि संक्रमण दिखाई दे तो नजदीकी कृषि विशेषज्ञ, एसएयू या केवीके से सलाह लें।
7. फसल अवशेषों का प्रबंधन करें– फसल अवशेषों को जलाने के बजाय मिट्टी में मिला दें या खेत में ही रहने दें। अवशेषों की उपस्थिति में गेहूं की बुवाई के लिए हैप्पी सीडर या स्मार्ट सीडर का उपयोग करें।
8. संरक्षण खेती में सही समय पर उर्वरक का प्रयोग करें– संरक्षण खेती के तहत, सिंचाई से पहले यूरिया का टॉप ड्रेसिंग करें ताकि पोषण का अधिकतम लाभ फसल को मिल सके।
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