प्लास्टिक मल्चिंग – खेती की नई तकनीक
प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग सब्जी उत्पादकों और बागवानी करने वाले किसानों के लिये वरदान साबित हो सकता है। इस नई तकनीक अपनाने वालों को 10 से 80 प्रतिशत तक अधिक उपज मिलने की संभावना ज्यादा होती है। हालांकि मल्चिंग का तात्पर्य उस क्रिया से है जिसके अंतर्गत पौधे की जड़ के चारों ओर की भूमि को इस प्रकार ढका जाय कि पौधे के पास की भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी संरक्षित रहे, खरपतवार न उगे एवं पौधे के थाले का तापमान सामान्य बना रहे। मल्ंिचग प्राकृतिक एवं प्लास्टिक फिल्म दोनों प्रकार का हो सकता है।
बागवानी में प्लास्टिक मल्चिंग के फायदे – मल्चिंग के उपयोग से खरपतवारों को उगने से रोका जा सकता है, इससे पानी की बचत होती है। मिट्टी का तापमान नियंत्रित होने के कारण पौधों के विकास के लिये अनुकूल वातावरण बनता है और जड़ों का बेहतर विकास होता है। जमीन को कठोर होने से बचाया जा सकता है। यही नहीं बीज का जल्द अंकुरण और उपज बढ़ाने में भी प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक की अहम भूमिका होती है।
प्लास्टिक मल्चिंग– आमतौर पर पारदर्शी एवं काली फिल्म का प्रयोग बागवानी में मल्चिंग हेतु किया जा रहा है, जिसका लाभ खरपतवार की वृद्धि को रोकने में अधिक सफल पाया गया है. पारदर्शी फिल्म की अपेक्षा काली फिल्म अल्ट्रावायलेट के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती है जिससे पारदर्शी फिल्म की तुलना में काले रंग की फिल्म में हृास की दर बहुत कम होती है। काले रंग की फिल्म सरल रखरखाव के साथ अधिक आयु वाली होती है। मिट्टी में जड़ के आसपास का तापक्रम बहुत महत्वपूर्ण होता है जिसका ध्यान प्लास्टिक मल्च द्वारा फसल प्रबंधन के दौरान रखा जाता है। जड़ों के आस-पास की भूमि पर कई कारकों का प्रभाव पड़ता है और उसको अनुकूल बनाने के लिये प्लास्टिक फिल्म के प्रयोग का अपना महत्व है।
प्लास्टिक मल्च फिल्म का चुनाव– प्लास्टिक मल्च फिल्म का रंग काला, पारदर्शी, दूधिया, प्रतिबिम्बित, नीला, लाल आदि हो सकता है।
काली फिल्म – काली फिल्म भूमि में नमी संरक्षण, खरपतवार से बचाने तथा भूमि का तापक्रम को नियंत्रित करने में सहायक होती है। बागवानी में अधिकतर काले रंग की प्लास्टिक मल्च फिल्म प्रयोग में लायी जाती है।
दूधिया या सिल्वर युक्त प्रतिबिम्बित फिल्म – यह फिल्म भूमि में नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ भूमि का तापमान कम करती है।
पारदर्शी फिल्म– यह फिल्म अधिकतर भूमि के सोलेराइजेशन में प्रयोग की जाती है। ठंडे मौसम में खेती करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
फिल्म की चौड़ाई – प्लास्टिक मल्ंिचग के प्रयोग में आने वाली फिल्म का चुनाव करते समय उसकी चौड़ाई पर विशेष ध्यान रखना चाहिए जिससे यह कृषि कार्यों में भरपूर सहायक हो सके। सामान्यत: 90 से.मी. से लेकर 180 सें.मी तक की चौड़ाई वाली फिल्म ही प्रयोग में लायी जाती है।
फिल्म की मोटाई – प्लास्टिक मल्चिंग में फिल्म की मोटाई फसल के प्रकार व आयु के अनुसार होनी चाहिए।
प्लास्टिक मल्च फिल्म को बिछाने की विधि– सामान्यत: प्लास्टिक फिल्म को फसल की बोआई या पौध रोपण के समय पौधों के चारों ओर की जमीन में बिछाया जाता है। प्लास्टिक फिल्म को बीज बोने की क्यारी के बनाने के साथ ही बिछा देना चाहिए और फिल्म के किनारों को सही तरह से मिट्टïी में दबा देना चाहिए जिससे वह हवा से इधर-उधर न उड़ सके। नये फलदार वृक्षों के रोपण के बाद प्लास्टिक फिल्म को बिछाना चाहिए। पुराने बागों में वृक्षों के थाले के आकार के बराबर की प्लास्टिक मल्च फिल्म का टुकड़ा काटकर बिछाना चाहिए। बिछाने के बाद अच्छी तरह चारों तरफ से उसे मिट्टी से दबा देना चाहिए ताकि फिल्म हवा से न उड़ पाये।
सिंचाई प्रबंधन– प्लास्टिक मल्चिंग के उपरांत बाग व खेत में सिंचाई और खाद डालने का सर्वोत्तम साधन ड्रिप सिंचाई प्रणाली ही है। यदि जहां पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली न लगा होतो वहां पर एक तरफ से फिल्म को खुला छोड़ कर नाली के सहारे सिंचाई करना चाहिए।
बागवानी में प्लास्टिक से उपज में वृद्धि– खेतों व बाग-बगीचों में प्लास्टिक मल्चिंग के उचित प्रबंधन से उत्पादन में 10 से 80 प्रतिशत से अधिक वृद्धि की जा सकती है। भारत एवं विश्व के विभिन्न भागों से इन परिणामों की पुष्टिï हो चुकी है। प्लास्टिक मल्व का प्रयोग विभिन्न प्रकार की फसलों में किया जासकता है। जिसमें फलदार, सब्जियाँ, कंद वर्गीय फसलें, व्यवसायिक फसलें, चारा फसलें, पुष्प, बागवानी फसलें, औषधीय और सुगंधीय पौधे आदि प्रमुख हैं।
प्लास्टिक मल्च फिल्म फैलाव का क्षेत्र विस्तार (% में) |
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विस्तार क्षेत्र (%) | सिफारिश की गई फसलें |
20 | लतावाली फसलें |
40 | फलदार वृक्षों का प्रारंभिक वर्ष |
40-60 | फलदार वृक्ष व कद्दूवर्गीय सब्जियाँ |
70-80 | पपीता, अनानास तथा सब्जियाँ |
100 | भूमि के सोलेराइजेशन हेतु |